नेतरहाट से लौट कर प्रवीण कुमार
रांची/नेतरहाट : नेतरहाट के पाट इलाके के किसान बेहद निराश एवं परेशान हैं. हजारों एकड़ में लगी आलू की फसल बर्बाद होने से सैकड़ों किसान तबाही की मार झेल रहे हैं. लाखों का नुकसान हुआ है. बारिश ज्यादा होने के फसल खेतों में सड़ गयी. मुनाफा और मजदूरी की बात तो छोड़ दिजिये, लागत भी नहीं निकल सकी है. इलाके के किसानों की 10 हजार से एक लाख तक की पूंजी डूब गयी है. पाट इलाके के किसान अपने नुकसान की भरपाई को लेकर परेशान हैं. सीएम के तीन दिनी दौरे ने उनमें उम्मीद जगायी है. मुख्यमंत्री पिछले दो दिन से इलाके में हैं. किसानों से मिल रहे हैं. कई लोगों ने अपनी समस्या उन्हें बतायी है. मुख्यमंत्री के जनता दरबार में भी कुछ किसानों ने अपनी व्यथा रखी है. उन्हें उम्मीद है मुख्यमंत्री उनके लिए कुछ करेंगे.
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सिमट रहे हैं नेतरहाट के चर्चित नाशपाती के बाग
अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए देश-दुनिया में विख्यात नेतरहाट के पाट इलाके के किसानों की अजीविका बरसाती फसलो पर ही निर्भर है. इनमें मुख्य फसल है, बरसाती आलू. बरसाती आलू की उपज नेतरहाट के पठार में ही होती है. इस इलाके के लगभग सभी किसानों की आजीविका का मुख्य जरिया बरसाती आलू की खेती ही है. इसके अलावा मक्का, गोंदली, मडुआ और गोड़ा धान की खेती भी होती है. कुछ किसानों के पास नाशपाती के बाग भी हैं. लेकिन नाशपाती के बागानों का दायरा अब सिमट रहा है. यहां आदिम जनजातियों की भी काफी आबादी बसती है, जिनका जीवन कृषि और पशुपालन से चलता है.
पाट इलाके में पीने का पानी बड़ी समस्या है
पीने का साफ पानी यहां के लोगों की बड़ी समस्या है. इस पहाड़ी इलाके में लोग दूर-दूर से पानी ढोकर लाने को मजबूर हैं. कुल मिलाकर पाट इलाके में रहनेवाले उरांव, मुंडा जैसी जनजातियों एवं असुर ,बैगा, बिरिजिया एवं किसान जैसी आदिम जनजातियों का जीवन काफी दुःसाध्य है. इन दुर्गम इलाके के अधिकांश लोग दूसरे राज्यों के ईंट- भट्टों में काम करते हैं. इस कारण हर साल यहां से बड़ी संख्या में जनजातीय परिवारों का पलायन होता है. साल में करीब 6 माह तक वे बाहर रहते हैं. खेती का समय आता है, ये परिवार भी वापस अपने गांव लौट आते हैं. वापस आ जाते हैं.
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ब्रिटिश काल से ही होती है बरसाती आलू की खेती
झारखंड के अधिकांश लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होगी कि कि लातेहार जिले में बरसाती आलू की फसल नेतरहाट के पकरी पाठ, ओरसापाठ, टुटूआ पाठ, रमुंडा, चपी पाठ आदि स्थानों पर सर्वाधिक होती है. जानकारों के अनुसार बरसाती आलू की खेती ब्रिटिश काल से ही होती आ रही है.
क्या कहते हैं किसान
नेतहाट से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर हुरमुंडा टोली है. यहां करीब 52 मुंडा एवं 3 असुर परिवारों की बसाहट है. खेती नहीं होने पर इलाके में लोगों को किसी तरह का कोई अन्य काम नहीं मिल पाता है. मनरेगा योजना की बात करने पर ग्रामीण कहते है जॉब कार्ड तो बना है, लेकिन काम नहीं मिलता.
कल हुरमुंडा टोली के बुजुर्ग किसान मितू मुंडा अपने खेतों के बगल से गुजरते जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के काफिले को उम्मीद भरी नजरों से देख रहे थे. मितू मुडा सहित गांव के सभी लोगों की पूंजी आलू की फसल खराब होने के कारण डूब गयी है. जिस खेत में 11 सौ रुपये बीच डाला था, उसमें 11सौ की पैदावार भी नहीं हो सकी.
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50 हजार का बीज, 30 हजार की फसल
वहीं थोड़ी दूर पर शोभा कुसन अपने दूधूमुंहे बच्चे को बेतरा में लेकर भारी मन से फसल की कोड़ाई कर रही थी. फसल कैसी हुई है, इसके जवाब में कहती है- 50 हजार का सिर्फ बीज लगा है. मजदूरी और बाकी खर्चा इसमें नहीं है. इस साल बारिष ने सभी की फसल बरबाद कर दी. उनके खेत से मात्र तीस हजार की पैदावार हुई है. शोभा चाहती है कि उसके गांव में पेयजल की व्यवस्था की जाये. दिन भर काम करने के बाद शोभा को घर से तीन किलोमीटर दूर जाकर पहाड़ी के नीचे से पानी लाना होगा, तब जाकर उसके घर खाना पकेगा.
सीएम सर, हमें पीने का पानी दे दीजिये
संत टेरेसा उच्च विद्यालय महुआडांड़ में 11वीं की छात्रा कमला कुमारी कहती है- आलू की फसल खराब हो जाने से हमारे परिवार को काफी नुकसान हुआ है. सीएम महुआडांड़ आये हैं. हम लोगों को बाद में इसकी जानकारी हुई. हम सीएम से कहना चाहते हैं कि हमारे गांव में पीने का पानी, बेहतर शिक्षा, बिजली एवं इलाके में रोजगार के साधन सृजित किये जायें, ताकि हम लोग भी बेहतर जीवन जी सकें. सरकार को किसानों के नुकसान का भरपाई करनी चाहिए. विशुनपुर के टाना भगतो के अगुवा जनार्दन भगत कहते हैं- पाट इलाके में आलू की फसल अत्यधिक बारिश से खराब हो गयी. किसानों को लाखों का नुकसान हुआ. सरकार को चाहिए कि वह दुर्गम इलाके में रहनेवाले इन किसानों की फसल के नुकसान की भरपायी करे. पाट इलाके में बरसाती फसल पर ही लोगों की निर्भरता है. अब किसानों के पास खेती के लिए पूंजी नहीं बची है. सरकार को इस पर विचार करना चाहिए.
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