New Delhi : जाने-माने राजनीति शास्त्री और टिप्पणीकार प्रताप भानु मेहता ने बीते मंगलवार को अशोक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पद से इस्तीफा दे दिया. वह दो साल से कम समय तक इस विश्वविद्यालय के कुलपति भी रह चुके हैं. पिछले कुछ वर्षों से मेहता केंद्र में सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी के मुखर आलोचक रहे हैं. पिछले साल ‘द वायर’ को दिये एक साक्षात्कार में मेहता कहा था कि भाजपा और उसकी सरकार फासीवादी भाषा बोल रहे हैं.
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इस्तीफे पर सवाल को टाल गया विश्वविद्यालय
अंगरेजी समाचारपत्र द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, यह पूछे जाने पर कि क्या मेहता के इस्तीफे से उनके राजनीतिक विचारों और लेखन का कोई लेनादेना है, तो अशोक विश्वविद्यालय के प्रवक्ता इस सवाल को टाल गये. विश्वविद्यालय द्वारा दिया गया एकमात्र बयान था, “कुलपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान और संकाय के सदस्य के रूप में उन्होंने विश्वविद्यालय में काफी योगदान दिया है. अशोक विश्वविद्यालय भविष्य के प्रयासों के लिए उन्हें शुभकामना देता है.”
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गुहा ने ऊपरी दबाव के संकेत दिये, ट्रस्टियों पर आरोप
हालांकि, मेहता ने अपने इस्तीफे के कारणों के बारे में बात करने से इनकार कर दिया. लेकिन इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने संकेत दिया है कि मेहता ने ऊपरी दबाव में यह फैसला लिया. गुहा ने विश्वविद्यालय के ट्रस्टियों पर फिजूलखर्ची का आरोप लगाया और कहा कि ” वे झुकने के लिए कहने पर रेंगने लगे.” अशोक विश्वविद्यालय के एक स्वतंत्र छात्र अखबार द एडिक्ट ने छात्रों को संबोधित एक ईमेल में, इसे दिल से लिया गया फैसला बताया है. मेहता ने कहा कि मौजूदा हालात के बारे में विश्वविद्यालय से चर्चा करने के बाद स्पष्ट हो गया कि मेरे लिए यहां से जाना ही बेहतर है.
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2019 में छोड़ दिया था विश्वविद्यालय के वीसी का पद
मेहता ने जुलाई 2017 में अशोक विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में अपना कार्यकाल शुरू किया था. इससे पहले उन्होंने न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ लॉ में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च एंड प्रोफेसर के अध्यक्ष सहित कई प्रतिष्ठित पदों पर कार्य किया. जुलाई 2019 में उन्होंने वीसी का पद छोड़ दिया था लेकिन कहा था कि वह प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवा जारी रखेंगे. ङस समय लिखे छात्रों को लिखे एक पत्र में मेहता ने कहा था कि वह पूर्णकालिक शैक्षणिक जीवन में लौटना चाहते हैं. यूनिवर्सिटी के सूत्रों ने द वायर को बताया कि उस समय मेहता के अखबारों में लिखे गये लेखों पर ट्रस्टियों की नाराजगी थी. इसलिए उन्होंने लिखना बंद करने के बजाय वीसी के पद से इस्तीफे को चुना.
सरकार की नीतियों के मुखर आलोचक रहे हैं मेहता.
जनवरी 2020 में करण थापर को दिये अपने साक्षात्कार में मेहता ने स्पष्ट किया था कि वे मोदी सरकार को फासीवादी क्यों मानते हैं. उन्होंने कहा था कि सरकार भले ही सत्ता में बने रहने के लिए चुनाव जीतने के लिए प्रतिबद्ध है, मगर हर तरह से यह फासीवादी गुणों पर खरी उतरती है. उन्होंने कहा था कि बोलचाल की भाषा में यह एक फासीवादी सरकार है. इसलिए इस शब्द का उपयोग करना कहीं से गलत नहीं है.
इंडियन एक्सप्रेस के अपने नियमित कॉलम में मेहता सरकार की नीतियों से असहमति को लेकर मुखर रहे हैं. 4 दिसंबर, 2020 को, प्रोजेक्ट 39 ए द्वारा आयोजित एक सार्वजनिक व्याख्यान में मेहता ने बताया था कि भारतीय न्यायपालिका किस तरह असहमति के अपराधीकरण के लिए जिम्मेदार है.
अगस्त 2016 में मेहता ने नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय के कार्यकारी समिति के सदस्य के पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने कहा था कि जिस तरह से एक राजनीतिक संपर्क वाले नौकरशाह को इसका निदेशक बनाकर संस्थान की प्रतिष्ठा और अखंडता से समझौता किया गया, उनका इस्तीफा उसके विरोध में था.