Brijendra Dubey
कहावत है कि राजनीति में न कोई दोस्त होता है और न स्थाई दुश्मन. पिछले नौ साल से देश पर शासन कर रहे भाजपानीत एनडीए पर यह कहावत इन दिनों सौ फीसदी लागू हो रही है. ढाई दशक से मजबूत सहयोगी रहे शिवसेना, जनता दल यू और शिरोमणि अकाली दल के साथ छोड़ने और विपक्षी एकता की कोशिशों ने भाजपा को सतर्क कर दिया है. इसी सिलसिले में भाजपा ने 18 जुलाई को दिल्ली में एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) की बैठक बुलाई है. लोकसभा चुनाव में करीब नौ महीने बचे हैं. भाजपा को जीत के लिए यूपी, महाराष्ट्र, बिहार और पश्चिम बंगाल को साधना जरूरी है. पिछले चुनावों में इन राज्यों की 210 में से 162 सीटें एनडीए ने जीती थी. हिमाचल और फिर कर्नाटक चुनाव से मिली हार के बाद से भाजपा सहयोगियों को विश्वास में लेने का प्रयास कर रही है. साथ ही बिछड़े साथियों की घर वापसी की कोशिशों में भी जुटी है. भाजपा जानती है कि धुर कांग्रेस विरोधी दलों को जोड़ कर ही वह हैट्रिक लगा सकती है. विपक्ष के महागठबंधन से चिंतित भाजपा नेतृत्व अब नए सिरे से अपने पुराने साथियों को जोड़ने की मुहिम में जुट गई है. 18 जुलाई की प्रस्तावित बैठक में भाजपा कितने दलों को एक मंच पर ला पाती है, ये देखने वाली बात होगी.
भाजपा की नजर उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र पर ज्यादा है. इन राज्यों के छोटे-छोटे दलों को वह अपने साथ लाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगी. इसी का नतीजा है कि बिहार-झारखंड के नेता रहे नागमणि कुशवाहा को भी भाजपा में बड़ी तरजीह दी जा रही है. भाजपा बिहार-झारखंड में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के सभी विरोधियों को अपने साथ जोड़ने में जुट गई है. जिस नेता के पास एक या दो प्रतिशत वोट है, उसे भाजपा साथ लाकर जातीय समीकरण अपने पक्ष में करना चाहती है. उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान, सुदेश कुमार महतो जैसे नेता इस समय भाजपा के लिए हॉट केक बने हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस के लिए 2024 का लोकसभा चुनाव जीवन-मरण का प्रश्न है. ये अपने तूणीर का कोई भी तीर खाली नहीं जाने देना चाहते. उधर, विपक्ष का महागठबंधन भी पटना बैठक में 16 दलों वाला था तो अब बेंगलुरु में उसके साथ 24 दल जुड़ने जा रहे हैं. यही नहीं, यूपीए की चेयरपर्सन रहीं सोनिया गांधी भी अब फ्रंट पर आ गई हैं. सोनिया गांधी खुद बेंगलुरु की बैठक का नेतृत्व कर सकती हैं. कुल मिला कर 2024 का लोकसभा चुनाव भाजपा, कांग्रेस या अन्य पार्टियां नहीं, बल्कि दो महागठबंधनों के बीच की जोर आजमाइश का होगा. देश की राजनीति के लिए इसे एक तरह का शुभ संकेत माना जा सकता है. बशर्ते कि इन गठबंधनों में लोकतंत्र कायम रहे.
याद कीजिए, वर्ष 1996 के चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी. पार्टी को सरकार बनाने का मौका भी मिला. लेकिन बहुमत न जुटा पाने पर अटल बिहारी वाजपेई ने विश्वास हासिल करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया. इसके बाद 1998 के चुनाव के बाद वाजपेई फिर प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने सहयोगी दलों को साथ लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का गठन किया. वाजपेई के नेतृत्व में राजग की सरकार भी पूरे 5 साल तक चली. गठबंधन के बनने के बाद से एनडीए की नियमित बैठक होती थी, लेकिन 2014 में भाजपा अपने बूते सत्ता में आई तो इसकी बैठकें कम होने लगीं. संसद सत्र के दौरान सदन में रणनीति बनाने के लिए बैठकें होती हैं, लेकिन गठबंधन की औपचारिक बैठक पिछले पिछले लोकसभा चुनाव से पहले यानी 2019 में हुई थी. इसके चार साल बाद अब बैठक होने जा रही है. हां, ये बात जरूर है कि अटल जी के दौर में एनडीए के संयोजक जॉर्ज फर्नांडीस हुआ करते थे और सहयोगी दलों की बैठक लगातार होती रहती थी. अटल बिहारी वाजपेई को इस बात का भी क्रेडिट दिया जा सकता है कि उन्होंने कांग्रेस विरोधी दलों को एकजुट करके पूरे पांच साल तक अपने नेतृत्व में केंद्र की सरकार चलाई.
पिछले साल भाजपा की पुरानी सहयोगी शिवसेना में हुई टूट के बाद तथा चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त एकनाथ शिंदे की शिवसेना भी एनडीए की इस बैठक में शामिल होगी. इसके साथ ही कुछ दिन पहले ही अजित पवार के नेतृत्व में राकांपा से अलग हो बड़ा धड़ा भी एक नए सहयोगी के रूप में इस बैठक में शामिल होगा.
ये दल और नेता रह चुके हैं एनडीए के साथ : समता पार्टी-जॉर्ज फर्नांडीज, शिवसेना-बाल ठाकरे, डीएमके-एम करुणानिधि, टीएमसी- ममता बनर्जी, बीजद- नवीन पटनायक, टीडीपी- चंद्रबाबू नायडू,अकाली दल- प्रकाश सिंह बादल, नेशनल कांफ्रेंस- फारूक अब्दुल्ला
इन दलों पर भाजपा की नजर: टीडीपी-चंद्रबाबू नायडू- वोट शेयर2.64- 03,अकाली दल- सुखबीर सिंह बादल-वोट शेयर 0.62-02, जद (से.)-एचडी देवेगौड़ा- वोट शेयर 0.56- 01, हम-जीतनराम मांझी- वोट शेयर0.16-00, लोजपा (रामविलास) चिराग पासवान वोट शेयर-0.16-01
भाजपा की खास नजर बिहार और महाराष्ट्र पर है. पिछले चुनाव में भाजपा ने शिवसेना के साथ मिल कर महाराष्ट्र की 48 में से 41 सीटें जीती थीं. बिहार में भाजपा ने जदयू और लोजपा के साथ मिल कर 40 में से 39 सीटों पर कब्जा जमाया था. इस बार महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव गुट) और बिहार में जदयू से गठबंधन टूटने की वजह से भाजपा का दोनों राज्यों पर विशेष जोर है. देखने वाली बात होगी कि ऊंट किस करवट बैठेगा.