Ranchi: राज्य में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सत्तारूढ़ यूपीए गठबंधन ने दुमका और बेरमो दोनों सीटों पर कब्जा जमा लिया है. जनता ने हेमंत सरकार के पिछले 10 महीने के कामकाज पर मुहर लगा दी है. भाजपा को एंटी इन्कमबेंसी की उम्मीद थी, लेकिन उसकी उम्मीदों पर वोटरों ने पानी फेर दिया.
इन दोनों सीटों पर जीत-हार से सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था और ये दोनों सीटें पहले भी सत्तारूढ़ खेमे के पास ही थीं. लेकिन दोनों सीटों पर जीत से सत्तारूढ़ खेमे का उत्साह यकीनन बढ़ा होगा.
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पिता की विरासत को संभालने में कामयाबी
बेरमो सीट पर लंबे समय तक कांग्रेस के दिग्गज नेता स्व. राजेंद्र सिंह का दबदबा रहा. पिछले चुनाव में भी जनता ने उन्हें जिताया था. राजेंद्र सिंह के निधन के बाद उनके पुत्र जयमंगल सिंह उर्फ अनूप ने यहां से उपचुनाव लड़ा. जनता ने उत्तराधिकारी के रूप में उनपर मुहर लगा दी. उप राजधानी दुमका राज्य की हॉट सीट है. यह गुरुजी शिबू सोरेन के परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है. गुरुजी की विरासत को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आगे बढ़ाया. पिछले चुनाव में वह दुमका और बरहेट दोनों सीट से विजयी रहे थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद दुमका सीट छोड़ दी थी.
इस उपचुनाव में अपने छोटे भाई बसंत सोरेन को मैदान में उतारा. बसंत सोरेन ने कामयाबी हासिल की और परिवार की विरासत को और आगे बढ़ाया है.
अंकगणित में सरकार मजबूत
विधानसभा के अंकगणित में सरकार बनाने के लिए 41 विधायकों की जरूरत होती है. हेमंत सोरेन वाली गठबंधन सरकार (झामुमो, कांग्रेस व राजद) को पहले से ही 44 विधायकों का साथ है. दोनों सीटों की जीत ने गठबंधन को और मजबूत कर दिया है.
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दोनों पक्षों की प्रतिष्ठा थी दांव पर
दुमका और बेरमो उपचुनाव में जीत-हार से सरकार पर कोई असर नहीं पड़ रहा था. यह चुनाव सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच प्रतिष्ठा की जंग थी. एक ओर सरकार के कामकाज और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की साख की परीक्षा थी, तो दूसरी तरफ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश और झाविमो से भाजपा में शामिल हुए बाबूलाल मरांडी की प्रतिष्ठा को भी इस चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा था.
दोनों के नेतृत्व में यह पहला चुनाव था, लेकिन नतीजों से भाजपा की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है.
कई संदेश दे गया चुनाव परिणाम
दुमका और बेरमो उपचुनाव का परिणाम कई संदेश दे गया. सरकार पर लगातार…. वार करनेवाली भाजपा जनता के बीच अपनी बातों को रखने में सफल नहीं रही. भाजपा ने जिन मुद्दों को चुनाव प्रचार में उठाया, जिन बातों का जिक्र किया, उससे जनता संतुष्ट नहीं हुई. यहां तक कि भाजपा अपने पूर्व के पांच साल के शासन की उपलब्धियों को भी भुनाने में भी नाकाम रही.
वहीं गठबंधन सरकार के अल्प समय के कामकाज से जनता ने उसे एक और मौका देने का मन बनाया. हेमंत सोरेन और उनके गठबंधन के नेता पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की कमियों को उजागर करने में सफल रहे.
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