Brijendra Dubey
लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी दो लोकसभा सीट वायनाड और रायबरेली से मैदान में उतरे थे और उन्हें इन दोनों ही सीटों पर भारी मतों से जीत भी मिली. इसके बाद 17 जून को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आधिकारिक घोषणा भी कर दी कि राहुल गांधी रायबरेली से सांसद रहेंगे और प्रियंका अपना पहला चुनाव केरल की वायनाड सीट से लड़ेंगी. प्रियंका गांधी ने भी कहा कि इस सीट पर भले ही राहुल न हों, लेकिन कांग्रेस उनकी कमी महसूस नहीं होने देगी. उनके इस बयान में 1999 की सोनिया गांधी की एक झलक नजर आती है. दरअसल सोनिया गांधी ने चुनावी राजनीति में एंट्री दक्षिण भारत की सीटों से ही ली थी. उस दौरान कर्नाटक की बेल्लारी सीट से नामांकन भरते हुए उन्होंने भी कुछ ऐसा ही बयान दिया था. सोनिया ने उस वक्त कहा था, इस बार मैं बेल्लारी से मैदान में उतर रही हूं, दक्षिण भारत हमेशा मेरी सास को प्रिय रहा है. अब ऐसा लग रहा है कि प्रियंका भी उसी भूमिका में हैं. प्रियंका को दक्षिण की वायनाड सीट से उम्मीदवार उतारा जा रहा है. ये कांग्रेस के लिए उत्तर से लेकर दक्षिण तक पार्टी को बढ़ाने का अच्छा मौका होगा. दिलचस्प बात यह है कि दक्षिण की राजनीति में प्रियंका का गांधी स्वागत भी शुरू हो गया है. दरअसल उनके वायनाड से मैदान में उतरने की खबरे आने के बाद ही केरल में कांग्रेस की साथी आईयूएमएल के नेताओं ने कहा है कि प्रियंका के वायनाड से चुनाव लड़ने से गठबंधन को ताकत मिलेगी.
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने उत्तर के कुछ राज्यों में पहले दो चुनाव की तुलना में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है. इतना ही नहीं, कांग्रेस को भी पिछले चुनाव से ज्यादा सीटें मिली हैं. ऐसे में कांग्रेस अब दक्षिण के राज्यों में अपनी बढ़त बनाने की कोशिश में लगी है. माना जा रहा है कि आने वाले समय में राहुल उत्तर में और प्रियंका दक्षिण में पार्टी को आगे बढ़ाने पर करने पर काम करेंगी. बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दक्षिण राज्यों पर पूरी तरह फोकस किया था. पीएम मोदी ने भी तमिलनाडु जैसे राज्यों में बहुत जोर लगाया, लेकिन तमाम रैलियों और रणनीतियों के बाद भी तेलंगाना और आंध्र प्रदेश छोड़ दिया जाए, तो बाकी राज्यों में पार्टी का बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा. वहीं दूसरी तरफ इन राज्यों में कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन ने क्लीन स्वीप किया. अगर कांग्रेस दक्षिणी राज्यों में बेहतर रणनीति के साथ आती है, तो अगले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पार्टी को फायदा हो सकता है.
तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल को मिलाकर दक्षिण भारत में लोकसभा की कुल 129 सीटें हैं. इस बार भाजपा को इनमें से केवल 29 सीटें मिली हैं.
तमिलनाडु में अन्नामलाई का जादू नहीं चला और भाजपा के लिए दरवाजे ही नहीं खुले. लेकिन, तमिलनाडु को छोड़ दिया जाए तो भाजपा चार राज्यों में खाता खोलने में सफल रही. इन राज्यों में सबसे अहम केरल है. लेफ्ट के गढ़ में कमल खिलाना भाजपा के लिए बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है. इसके साथ ही पार्टी का वोट शेयर भी बढ़ा है. प्रियंका गांधी को वायनाड से उम्मीदवार बनाने के पीछे कांग्रेस का गेम प्लान कई रणनीतिक उद्देश्यों पर आधारित हो सकता है. इसमें से एक है केरल में कांग्रेस की पकड़ मजबूत करना. दरअसल वायनाड केरल में स्थित है, जहां पर कांग्रेस का अच्छा प्रभाव है. ऐसे में अगर वहां प्रियंका जीतती हैं, तो वह केरल में कांग्रेस को और मजबूती दे सकती हैं और पार्टी के प्रति जनता का समर्थन बढ़ा सकती हैं.
इसके अलावा पार्टी के गेम प्लान में दक्षिण भारत में समर्थन बढ़ाना भी शामिल है. दक्षिण भारत में फिलहाल भाजपा मजबूत स्थिति में नहीं है. इस लोकसभा चुनाव में भी उनका प्रदर्शन बहुत बेहतरीन नहीं रहा है, ऐसे में प्रियंका गांधी की उम्मीदवारी से कांग्रेस को दक्षिण भारत में एक नया चेहरा मिल सकता है, जो पार्टी की छवि को सुधार सकता है और समर्थन बढ़ा सकता है. देखा जाए, तो इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को यह पता चल चुका है कि अगर वह बेहतर प्लान और एकजुटता के साथ मैदान में उतरती है, तो उसके प्रदर्शन में सुधार आ सकता है. राहुल गांधी उत्तर के राज्यों में कांग्रेस को मजबूत करने पर काम कर सकते हैं. इसके लिए पहले तो पार्टी को अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करना होगा. फिलहाल कांग्रेस को स्थानीय नेताओं को सशक्त बनाने और उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका देने की जरूरत है. अगर पार्टी ऐसा करती है, तो उन्हें स्थानीय लेवल पर मजबूती मिलेगी. इसके अलावा पार्टी सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर सकती है. इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, और किसान समस्याओं जैसे कई महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे उठाए और उन्हें उनका फायदा भी मिला. कांग्रेस युवाओं और महिलाओं को पार्टी में ज्यादा भागीदारी दे सकती है और उनकी आवाज को प्रमुखता देने का प्लान बना सकती है. कांग्रेस को अपने धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के आदर्शों को मजबूती से प्रस्तुत करना होगा और समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलना होगा.
प्रियंका गांधी अब तक सीधे तौर पर तो किसी भी लोकसभा या विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार के रूप में नहीं उतरीं, लेकिन वह कांग्रेस पार्टी की प्रमुख नेताओं में शामिल हैं. चुनाव के दौरान पार्टी के प्रचार और संगठनात्मक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाती रही. प्रियंका गांधी को 2019 लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस महासचिव नियुक्त किया गया था. उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया, जहां उन्होंने कांग्रेस के लिए व्यापक प्रचार किया. प्रियंका गांधी ने साल 2022 में हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की तरफ से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने यूपी में व्यापक प्रचार अभियान भी चलाया और लड़की हूं, लड़ सकती हूं जैसे नारों के साथ महिलाओं और युवाओं को पार्टी से जोड़ने का प्रयास किया. हालांकि यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका का जादू बिल्कुल नहीं चला था.
डिस्क्लेमर: ये लेखक निजी विचार हैं.