Anand Singh
आज से दो साल पहले जब मैंने कहीं लिखा था कि राहुल गांधी बदल रहे हैं तो लोगों को मेरी समझ पर शक होने लगा था. एक ने तो यहां तक कहा था कि थोड़ा गांधी खानदान को दोबारा पढ़ लें. अब यह देख कर सुकून हो रहा है कि सावरकर की विचारधारा को मानने का दावा करने वाले वह शख्स राहुल गांधी के वीडियोज को बड़े ध्यान से देख रहे हैं, लेकिन उसमें कहां नुक्स निकालें, ये उनकी खोपड़ी में आ ही नहीं रहा. शायद आइंदा वह गांधी खानदान के योगदान को फिर से पढ़ने का प्रयास करेंगे. तो, राहुल गांधी की इमेज बदल रही है. यह मैं ही नहीं कह रहा. दृष्टि आईएएस कोचिंग के कर्ताधर्ता विकास दिव्यकृति भी कह रहे हैं. विकास दिव्यकृति न तो कांग्रेसी हैं, न भाजपाई और न ही सितारा-हंसिया-धान छाप वाले. वह शुद्ध रूप से शिक्षक हैं, मोटिवेटर हैं.
विकास दिव्यकृति ने राहुल गांधी को देखा है, पढ़ा है, जाना है, समझा है. राहुल ही नहीं, उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी, योगी आदित्यनाथ आदि को भी गंभीरता से देखा, पढ़ा, समझा और सुना है. तो, सिर्फ विकास दिव्यकृति ही नहीं, दुनिया भर के टिप्पणीकारों का यह मानना है कि राहुल गांधी की जो पप्पू वाली छवि मोदी सरकार के चंद मंत्रियों-कारपोरेट ने करोड़ों रुपये खर्चने के बाद बनाई थी, वह भारत जोड़ो यात्रा पार्ट वन में बुरी तरह धराशायी हो गई और भारत जोड़ो यात्रा पार्ट टू अथवा न्याय यात्रा में राहुल एक नई छवि के साथ भारत के नौजवानों को लुभा रहे हैं. यह याद रखने वाला तथ्य है कि आइएसडीएस के सर्वे में यूपी में लोकसभा चुनावों के दौरान किये गए सर्वे में उन्हें देश के प्रधानमंत्री के रूप में सबसे ज्यादा वोट मिले थे. वह प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता से भी आगे निकल चुके थे. इससे यह पता चलता है कि उनकी पहले वाली इमेज टूट-फूट कर कबकी बिखर चुकी है और अब एक नई, बहुत ही अग्रेसिव छवि के साथ वह कांग्रेस पार्टी को अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ चला रहे हैं.
दरअसल, राहुल कभी पप्पू थे ही नहीं. भाजपा ने उन्हें पप्पू के चोले में कैद किया था. अन्यथा, लोगों को मालूम है कि इधर से आलू डालो और उधर से सोना निकलेगा, किसने कहा था और उसके आगे-पीछे को कैसे कट-पेस्ट करके राहुल गांधी पर चिपकाया गया था. जिन्हें नहीं पता उन्हें अब तो पता हो ही जाना चाहिए कि वह अपने माननीय प्रधानमंत्री का ही स्टेटमेंट था. प्रधानमंत्री पहले भी नाले के गैस से चाय बना कर गुजरातियों को पिलाते रहे हैं, इस तथ्य से शायद ही आप नावाकिफ हों. तो, इस नए राहुल गांधी के अंदर डर नाम की कोई चीज नहीं है. कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत हों या फिर उत्तर प्रदेश प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष विश्वविजय सिंह, इनके डीपी को देखें तो वहां साफ लिखा है-डरो मत. यानी, डरना नहीं है. इसी लोकसभा सत्र में, जब राहुल गांधी को नेता विपक्ष चुना गया तो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का संबंध सीधे भगवान से है… वह बायोलॉजिकल नहीं हैं… उनका जन्म हुआ ही नहीं…उनका तो अवतरण हुआ है.
लोकसभाध्यक्ष ने जब उन्हें टोका तो राहुल गांधी ने उन्हें भी टका सा जवाब दिया कि आप मुझे टोकिये मत. मैं तो वही कह रहा हूं, जो मोदी जी ने अपने श्रीमुख से कहा है. वह यहीं नहीं रुके. उन्होंने लोकसभाध्यक्ष को भी लपेटे में लिया और कहा कि आप डबल स्टैंडर्ड करते हैं. आप मोदी जी के सामने झुकते हैं और मेरे सामने सीना तान कर खड़े हो जाते हैं. प्रधानमंत्री के सामने किसी लोकसभाध्यक्ष को 45 डिग्री तक झुकते देखना बेहद दुखद है. नेता विपक्ष के सामने आप जिस तरीके से सीना तान कर, खड़े होकर हाथ मिलाते हैं, आई टू आई कनेक्ट करते हैं, वैसा ही आपको मोदी जी के साथ भी करना चाहिए. इससे लोकसभाध्यक्ष तिलमिला कर रह गए. हालांकि उन्होंने जवाब भी दिया कि वह बड़ों की इज्जत करते हैं और छोटों से समानता का व्यवहार. ये दो वाकये सिर्फ इसलिए आपको बता रहा हूं, ताकि आप समझ सकें कि राहुल गांधी किसी नशे की हालत में नहीं, अपितु होशो-हवाश में और पूरी जिम्मेदारी के साथ, बिना डरे बोल रहे थे. सत्ता पक्ष की तरफ से थोड़ा विरोध जरूर हुआ, लेकिन बाकी का काम राहुल गांधी के माइक ने किया-सत्ता पक्ष को ठोक कर जवाब दिया गया.
महज 240 सीटें लाने वाली भाजपा का आत्मविश्वास पहले से ही जमीन टेक गया था. उस पर राहुल गांधी ने जिस बेहद तीखे अंदाज में सरकार पर, मोदी पर, अमित शाह पर हमला किया, वह सत्ता पक्ष के पांव उखाड़ने के लिए पर्याप्त था. जो कसर बची, उसे सांसद मनीष तिवारी ने पूरा कर दिया. 10 साल में पहली बार गृहमंत्री अमित शाह को लोकसभाध्यक्ष के सामने घिघियाते हुए देखा गया. उनके बोल अक्षरशः इस प्रकार थेः अध्यक्ष महोदय, मैं इस तरह से नहीं बोल सकता. मुझे इनसे (मनीष तिवारी से) संरक्षण चाहिए. महोदय मुझे व्यवस्था बना करके दीजिए ताकि मैं जवाब दे सकूं. मैं ऐसे इनका जवाब नहीं दे सकता. आपको बता दें कि कांग्रेस के मनीष तिवारी संसद में लगातार बोले जा रहे थे और लोकसभाध्यक्ष ओम बिरला उन्हें चुप कराकर केंद्रीय गृहमंत्री की ओर बोलने का इशारा कर रहे थे, लेकिन मनीष तिवारी पर इसका कोई असर नहीं हुआ. इसका मतलब क्या हुआ? इसका मतलब यह हुआ कि सरकार में नंबर दो यानी अमित शाह से भी लोकसभा में राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेसी सांसद दो-दो हाथ करने को तैयार थे. अब लगभग पूरी कांग्रेस राहुल के रंग में रंगती जा रही है. यह जरूरी भी है.
तो, यह सब हुआ कैसे? यह सब राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, जयराम रमेश, सुप्रिया श्रीनेत और उनकी कोर टीम के प्रयासों का प्रतिफल है. पुराने, डरपोक, दकियानूस विचारों वाले कांग्रेसी नेताओं से राहुल एंड कंपनी ने निजात पा ली है. यह तय हुआ है कि कांग्रेसी आईटी सेल दिन-रात हाई अलर्ट मोड पर रहेगी. रेफरेंस सेक्शन को बेहद मजबूत किया गया है. बाजार के वे लोग, जो कांग्रेस की विचारधारा से रत्ती भर भी जुड़े हुए हैं और आईटी को समझते हैं, उन्हें इस दस्ते में शामिल किया गया है. पहले यह होता था कि भाजपा के आईटी सेल वाले कांग्रेस पर बमबारी करते थे, फिर कांग्रेस वाले जवाब देते थे. अब सीन उल्टा हो गया है. अब कांग्रेस बमबारी करती है और सामने वाला कभी जवाब देता है, कभी नहीं. इसी टीम ने राहुल का मेकओवर किया है, उनकी छवि को सुधारकर रख दिया है.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
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