Shruti prakash singh
Ranchi : एक कमरे के मकान में रहने वाले सुनील रजत और सीमा देवी पति पत्नी हैं. दोनों की आंखों में ढेर सारे सपने हैं. बच्चे पैरों में खड़े हो जायें, आपना घर हो, रोजी का निश्चित ठिकाना हो जैसे सपने उनकी आंखों में पल रहे हैं. ये सपने कब पूरे होंगे यह तो उन्हें पता नहीं, लेकिन वे संघर्षरत हैं. दरअसल यह कहानी सिर्फ सुनील रजक और सीमा देवी पर आकर ही नहीं रुकती बल्कि उन तमाम लोगों की है जो रोज कमाते, खाते और जिंदगी की गाड़ी को खींचते हैं.उन्हें यह भी पता नहीं कल क्या होगा. क्या खायेंंगे, कैसे रहेंगे.
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हाल के दिनों में कोरोना काल ने ऐसे लोगों की स्थिति को और भी बदतर कर दिया है.सीमा देवी ने बताया कि कोरोना काल में उन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था.किसी तरह जिंदगी संभालने कि कोशिश कर रहे हैं. रांची के रिहाइशी इलाके अशोक नगर में एक ठेले पर कपड़ा आयरन कर रोजी चलाने वाले इस दम्पती ने बताया कि सरकार की तरफ से उन्हें कोई मदद नहीं मिली.हमारे पास न राशन कार्ड है न रहने को घर. अरगोड़ा में किराये के एक कमरे दो बच्चों के साथ रहते हैं. सीमा देवी के दो बच्चे अंजलि और उदित हैं. ये दोनों डोरंडा कॉलेज में पढ़ते हैं. सीमा देवी कहती है कि पैसे की काफी किल्लत रहती है. इसी वजह से दोनों बच्चे पैदल ही कॉलेज जाते हैं.
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एक सवाल पर सुनील रजक ने बताया कि उनका आधार कार्ड बिहार का है. पर वह रांची में पिछले 10 साल से हैं. सुनील रजक अपनी बातों को कहते हुए थोड़ी भाबुक दिखे. कहा सरकार न कभी देखने आयी ना ही कभी हाल पूछने. जब उनसे पूछा कि आपके दिन की शुरूआत कैसे होती है तो सीमा देवी ने कहा कि चीनी खत्म हो गयी है, इसलिये आज चाय नहीं पी पाये. अब शाम में जब घर जायेंगे तो जो पैसे आज कमाए है, उससे राशन खरीदेंगे. अनिश्चितता के महौल में जिंदगी की गाड़ी खींच रही सीमा देवी ने बताया कि हम दोनों कपड़े में आयरन करके घर चला रहे हैं.
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दोनों ने बताया कि अब ऐसी गर्मी जिसमें लोग झुलस रहे है हमें यह काम करना पड़ रहा है.पति सुनील रजक ने पूछने पर कि आपके परिवार की पूरी ज़िम्मेदारी आपके कंधे पर है उस पर यह महंगाई, आप कैसे सबकुछ संभाल रहे है, तो उन्होंने बताया कि गुरुवार को हमारे यहाँ बहुत काम ग्राहक आते है, क्योंकि उस दिन लोग न कपड़े में आयरन करवाते है न ही कपड़े धुलने देते है. तो हम पति पत्नी बुधवार को एक वक़्त का खाना खाते हैं और गुरुवार को पैसे कम होने की वजह से अपने बच्चो को दो वक़्त का खाना खिला कर हम खुश रहते हैं. उनका कहना है फिलहाल गुज़ारा ऐसे ही हो रहा है. बच्चो को अच्छी शिक्षा देना ही हम दोनों का एक मात्र उद्देश्य है.