Ranchi : राजधानी के एचआरडीसी सभागार में गुरुवार को कैसल यूनिवर्सिटी एक्शन एआईडी की ओर से “झारखंड में डायन हत्या-प्रताड़ना” विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यशाला के दौरान इस विषय से संबंधित झारखंड के विभिन्न जिलों से किए गए अध्ययन के आंकड़ों पर विस्तार से चर्चा की गई. कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए एक्शन एआईडी के प्रोग्राम ऑफिसर शाहनवाज़ सिद्दीकी ने कहा कि सिर्फ झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश में यह समस्या व्याप्त है. डायन हत्या-प्रताड़ना के अधिकांश मामले हमारी जानकारी में नहीं होते हैं. इस संबंध में झारखंड राज्य में कानून बना हुआ है, लेकिन इस कानून को और सख्त बनाये जाने की जरूरत है. इसके लिए विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं, सामाजिक संगठनों के साथ-साथ आम नागरिकों को भी पहल करनी होगी. आदिवासी अधिकार मंच के प्रफुल्ल लिंडा ने कहा कि जहां हत्या के अपराध के लिए उम्र कैद और मृत्युदंड की सजा का प्रावधान है, वहीं डायन हत्या के मामले में अधिकतम 3 वर्ष तक की सजा है. इसे और बढ़ाए जाने की जरूरत है.
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आशा संस्था की सचिव पूनम टोप्पो ने कहा कि पहले तो इस विषय पर लोग बात तक करना उचित नहीं समझते थे. पर अब लोगों में धीरे-धीरे जागरुकता बढ़ी है. अनपढ़ लोगों के बीच तो यह कुप्रथा पाई ही जाती है, लेकिन पढे-लिखे लोग भी इससे अछूते नहीं हैं. इसके लिए कानून की भी खामियां भी जिम्मेवार हैं. अध्ययनकर्ता प्रवीण कुमार ने अध्ययन के मुख्य बिंदुओं को बताया कि जहां पहले सिर्फ महिलाओं को डायन के नाम पर प्रताड़ित किया जाता था, वहीं अब पुरुषों को भी डायन के नाम पर प्रताड़ित किया जाने लगा है. आदिवासी इलाकों में जहां डायन हत्या आम बात है. वहीं गैर आदिवासी इलाकों में भी ऐसी घटनाएं ज्यादा हो रही हैं. साथ ही कार्यक्रम में पीड़ितों ने भी आपबीती को साझा किया. कार्यक्रम में झारखंड के अलग-अलग जिलों से आए 60 प्रतिभागियों ने भाग लिया. कार्यक्रम में शाहनवाज़ सिद्दीकी, रेशमा सिंह, पूनम टोप्पो, रामदेव विश्वबंधु, अनिता हेम्ब्रम, प्रवीण कुमार, प्रेम तिर्की सहित कई लोग मौजूद थे.
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