LagatarDesk: खुदरा मंहगाई पिछले 6 साल के शीर्ष पर पहुंच गयी है. रिजर्व बैंक एक बार फिर मौद्रिक नीतिगत दरों को अपरिवर्तित रख सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार सितंबर तिमाही में भी विकास दर शून्य से नीचे रहने का असर मौद्रिक नीतियों पर दिख सकता है. गवर्नर शक्तिकांत दास की अगुवाई में 6 सदस्य समिति 4 दिसंबर को रिपोर्ट पर फैसला करेगी. अक्टूबर महीने में खुदरा महंगाई की दर 7.61 फ़ीसदी पहुंच गयी, जो पिछले 6 साल में सबसे अधिक है.
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खुदरा महंगाई लगातार छह महीने से आरबीआई के अनुमानित लक्ष्य 6 फीसदी से ऊपर बनी हुई है. कोटक महिंद्रा बैंक की उपभोक्ता बैंकिंग के प्रमुख शांति इंकबरम का कहना है कि इसी वजह से मौद्रिक नीति संगठन की पिछली दो बैठकों में रेपो रेट की दर को कम नहीं किया गया था. शुक्रवार को सितंबर तिमाही में भारत की जीडीपी -7.5 फीसदी घोषित की गयी. नीतिगत फैसले पर भी इसका असर हो सकता है. फरवरी से अब तक रेपो रेट में 1.5 फीसदी की कटौती हो चुकी है. सितंबर की तिमाही में जीडीपी नेगेटिव है इसलिए कम ही उम्मीद है कि RBI दरों में कमी करेगा.
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क्या है रेपो रेट
रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंकों को RBI लोन देता है. रेपो रेट में कमी होने का अर्थ है कि बैंकों से मिलने वाला लोन सस्ता हो सकता है. सस्ता होने का कारण यह है कि जब RBI बैंको को कम दर पर लोन देगा तो बैंक भी ग्राहकों को सस्ते दर पर लोन उपलब्ध करायेंगे.
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RBI क्यों घटाता और बढ़ाता है रेपो रेट
अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को कम करने और बढ़ाने के लिए RBI रेपो रेट को कंट्रोल करता है. मुद्रास्फीति के समय RBI रेपो रेट को बढ़ा देता है, जिससे अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को कम किया जा सके. वर्तमान समय में RBI ने रेपो रेट की दर 4 फीसदी रखी है.
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