Vinit Upadhyay
Ranchi: रांची जिला बार एसोसिएशन की नयी कार्यकारिणी गठन के लिए चुनाव की घोषणा कभी भी हो सकती है. इसकी तैयारियां अब अंतिम चरण में हैं. आरडीबीए की वर्तमान कमिटी का कार्यकाल पूरा होने के बाद काउंसिल ने अध्यक्ष,महसचिव और कोषाध्यक्ष की तीन सदस्यी एडहॉक कमिटी का गठन कर दिया है. इसके साथ ही काउंसिल की ओर से दो ऑब्जर्वर भी नियुक्त किये गए हैं. रांची के लिए नियुक्त ऑब्जर्वर में काउंसिल के सदस्य परमेश्वर मंडल और मृत्युंजय श्रीवास्तव शामिल है.
जानकारी के मुताबिक, चुनाव की तैयारियां को अब अंतिम रूप देने की दिशा में कदम उठाया जा रहा है.चुनाव संपन्न कराने के लिए वोटर लिस्ट फाइनल कर भेजने समेत प्रक्रिया के संचालन के लिए आम सभा से तीन सदस्यों का नाम काउंसिल को भेजना है. इन नामों पर सहमति बनने के बाद काउंसिल चुनाव से संबंधित पूरी प्रक्रिया की जिम्मेदारी आम सभा की ओर से चुने गए लोगों को देगी.
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इस साल का चुनाव दिलचस्प रहेगा
इस वर्ष होने वाला बार चुनाव काफी दिलचस्प होने की उम्मीद की जा रही है. जिले के अधिवक्ता इस कोरोना काल में वर्तमान कमिटी द्वारा कोरोना काल में उनके हितों के लिए उठाये गए कदम और प्रयासों के साथ अन्य मुद्दों को लेकर इसबार मतदान करने के मूड में हैं. इसलिए वर्तमान कमिटी के लिए यह चुनाव ज्यादा आसान होता नहीं दिख रहा है. अब तक सिर्फ एक प्रत्याशी संजय विद्रोही ने महासचिव पद के लिए अपनी उम्मीदवारी घोषित कर दी है और बाकि उम्मीदवार मौके की नजाकत को देखते हुए अंदर ही अंदर अपने वोटरों को रिझाने में लगे हुए हैं. रांची जिला बार एसोसिएशन के वर्तमान अध्यक्ष और 7 बार रांची के वकीलों का प्रतिनिधित्व कर चुके रांची सिविल कोर्ट के वरीय अधिवक्ता शम्भू अग्रवाल के खिलाफ पांडेय रवींद्रनाथ रॉय उर्फ मणि बाबू और अनिल पराशर चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा सकते हैं.
महासचिव के पद पर काबिज कुंदन प्रकाशन के सामने अपनी कुर्सी बचाने की चुनौती होगी और पूर्व महासचिव एवं स्टेट बार काउंसिल के सदस्य संजय विद्रोही के बीच सीधी टक्कर होना तय है. सिविल कोर्ट के वकीलों के बीच यह चर्चा भी जोरों पर है कि कोषाध्यक्ष अमर कुमार भी महासचिव पद के लिए ताल ठोकते नजर आ सकते हैं. उनके इस कदम से किसे नुकसान होगा और किसे फायदा यह देखना भी काफी महत्वपूर्ण होगा. प्रशासनिक सचिव के पद पर काबिज पवन खत्री को अभिषेक कुमार भारती, भरत चंद्र महतो और प्रदीप चौरसिया से टक्कर मिल सकती है.
लेकिन इन सभी कयासों के बीच चुनावी बिगुल बजने का इंतजार सभी अधिवक्ताओं को है. कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार कई डमी उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में ताल ठोकते नजर आएंगे. अब वकीलों को ही यह तय करना है कि कौन सा उम्मीदवार वोट कटवा के रूप में खड़ा हो रहा है और कौन उनके हक और अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए.
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