Chulbul
Ranchi. रोमन कैथलिक कलीसिया में पादरी बनने के लिए काफी लंबी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है. कलीसिया में पादरी बनने की पूरी प्रक्रिया को समझाते हुए संत मारिया गिरजाघर के पल्ली पुरोहित फादर आनंद डेविड खलखो ने बताया कि इसकी शुरुआत अपॉस्टोलिक स्कूल से होती है, जहां कक्षा 7 से लेकर 10 तक के बच्चों को स्कूल में ही रहकर हाई स्कूल की पढ़ाई के साथ-साथ समाज की सेवा और पादरी बनने की इच्छा जगायी जाती है. उन्हें कलीसिया से जुड़े तौर-तरीके सीखाये जाते हैं.
दूसरे स्टेज में +2 की तरह ही उन्हें दो वर्ष के लिए पढ़ाई के साथ धार्मिकता में आगे बढ़ने के लिए शिक्षा दी जाती है. इस स्टेज में उन्हें विनती-प्रार्थना, उपवास, आदि कार्य सिखाये जाते हैं.
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इंटर के बाद शुरु होती है पादरी बनने की असल ट्रेनिंग
पादरी बनने का असल ट्रेनिंग +2 के बाद शुरु होता है. कई स्टूडेंट जो पादरी बनने के लिए इंटर तक पढ़ाई नहीं करते वे इस स्टेज में जुड़ते हैं. इसलिए पादरी बनने के लिए वास्तव में पहला स्टेज यही होता है. यहां स्टूडेंट्स कैंडिडेट बनते हैं. इस एक साल की ट्रेनिंग में उन्हें आध्यात्मिक शिक्षा दी जाती है, बाइबल के बारे में विस्तार से बताया जाता है और इंगलिश लैंग्वेज-ग्रामर पर जोर दिया जाता है. चौथा स्टेज है तीन वर्ष का माइनर सेमेनरी और आध्यात्मिकता कोर्स. इस स्टेज में स्टूडेंट्स को लैंग्वेज, बाइबल और धर्म के बारे में गहराई से पढ़ाया जाता है.
पांचवे स्टेज के पूरे होने पर कैंडिडेट कहलाते हैं ब्रदर
पांचवा स्टेज है फिलॉस्फिकल स्टडिज का, जो तीन साल का कोर्स है. इस स्टेज में स्टूडेंट्स पादरी बनने की पढ़ाई के साथ-साथ अपना ग्रैजुएशन भी पूरा करते हैं. पहले दोनों अलग-अलग होता था, जिसमें छ वर्ष का समय लगता है. पर समय सीमा कम करने के लिए दोनों को एक ही साथ पढ़ाया जाने लगा. इस स्टेज के बाद कैंडिडेट ब्रदर कहलाते हैं और उन्हें पहनने के लिए सफेद सुटान दिया जाता है.
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6th स्टेज में जिम्मेदार बनाने के लिए दी जाती है ट्रेनिंग
अगला स्टेज है रिजेंसी का, जो 1 सा 2 वर्ष का होता है. जिसमें ब्रदर्स को सामाजिक अनुभव हो और वे जिम्मेदार बन सके. इस स्टेज पर ब्रदर्स को किसी स्कूल, पैरिस या गांव भेजा जाता है ताकि वे जिम्मेदारी लेना सीखें. जमीनी स्तर पर लोगों के साथ वे जुड़े और सेवा कार्य कर सके.
चर्च कानून और संस्कारों की होनी चाहिए पूरी जानकारी
सांतवा और आखिरी स्टेज है, थियोलॉजी की पढ़ाई, जो कि चार वर्षों का होता है. फादर आनंद ने बताया कि थियो का अर्थ है ईश्वर, इसलिए इस विषय को ईश-शास्त्र भी कहते हैं. इन चार वर्षों में ब्रदर्स को बाइबल और चर्च से जुडे कानूनों के बारे में गहराई से पढ़ाया जाता है. इसके साथ ही इस स्टेज में उन्हें मिस्सा पूजा, विनती-प्रार्थना के साथ ही सात संस्कार – बपतिस्मा, परमप्रसाद, पापस्वीकार, कन्फर्मेशन, विवाह, पुरोहिताई और रोगिया का संस्कार करना सीखाया जाता है. और इस आखिरी स्टेज के बाद वे पादरी या पुरोहित कहलाते हैं.
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