Hazaribagh: जिले से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर बसे चपरा गांव के दो युवकों की मेहनत अब रंग लाने लगी है. यह कहानी है रामगढ़ जिले के सर्वाधिक सुदूर क्षेत्रों में से एक मांडू प्रखंड की. जहां गांव की लचर शिक्षा व्यवस्था से परेशान होकर दो पढ़े-लिखे युवकों ने गांव के बच्चों के पढ़ाने का बीड़ा उठाया. इसके बाद से यहां शिक्षा की एक नयी लौ जल गयी है. युवकों का कहना है कि अपनी भाषा अपनी संस्कृति को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए उन्होंने ये काम शुरु किया था. लेकिन गांव के शिक्षा स्तर को देखते हुए संथाली भाषा के साथ ही अंग्रेजी की शिक्षा भी दी जाने लगी.
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संत कोलंबस महाविद्यालय से स्नातक पास है देवीराम
हजारीबाग के संत कोलंबस महाविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई करने वाले युवक का नाम देवीराम टूडू है. देवीराम का कहना है कि स्कूल में सामान्य पढ़ाई ही नहीं से ठीक से नहीं हो पाती थी. इनके गांव के सभी बच्चे मध्य विद्यालय से आगे की पढ़ाई भी नहीं कर पा रहे थे. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन में वैसे भी पढ़ाई बंद है, लेकिन बात लॉकडाउन के पहले भी पढ़ाई की व्यवस्था लचर ही थी. इसके बारे में बताते हुए देवीराम कहते हैं कि गांव में एक ही पारा शिक्षक हैं. वे भी रोज नहीं आते थे क्योंकि हमारा गांव सुदूर क्षेत्र में आता है. यह स्कूल केवल कागज पर ही चल रहा है.
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बच्चों को दे रहे हैं निशुल्क शिक्षा
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए गांव के युवक को चिंता हुई और उसने तय किया कि वह खुद कुछ करेगा. इसके लिए उसने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर अपने गांव के बच्चों को पढ़ाना शुरु कर दिया. युवक का मानना है कि पाठ्यक्रम में संथाली भाषा के नहीं होने से इनके बाद की पीढ़ी इसे नहीं सीख पाएगी. यही कारण है कि उन्होंने बच्चों को संथाली के साथ ही अंग्रेजी, हिंदी और अन्य विषयों शिक्षा भी बच्चों के निशुल्क देना शुरु कर दिया.
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बच्चे बोलने लगे अच्छी अंग्रेजी
देवीराम टूडू अपने गांव के एकलौते शख्स हैं जिसने स्नातक पास किया है. देवीराम ने मैट्रिक की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की है. यहां के बच्चे अब फर्राटे से हिंदी, इंग्लिश और संथाली भाषा को पढ़-लिख और समझ रहे हैं. बता दें कि ये कक्षाएं स्कूल में ही संचालित होती हैं लेकिन कक्षाओं में नहीं बल्कि बंद पड़ी कक्षाओं के बाहर .
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