New Delhi : देश की सर्वोच्च अदालत ने बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के उस अजीबोगरीब फैसले पर रोक लगा दी है. जिसमें कहा गया था कि ‘एक नाबालिग के शरीर के वक्ष को स्किन टू स्किन टच के बिना पॉक्सो एक्ट के दायरे में नहीं रखा जा सकता. हाईकोर्ट के इस विवादास्पद फैसले के खिलाफ यूथ बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. सोशल मीडिया पर भी लोगों ने इस फैसले पर सवाल उठाये थे.
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आरोपी को बरी करने के फैसले पर भी लगायी रोक
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला अभूतपूर्व है और इससे एक खतरनाक मिसाल कायम करने की आशंका है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बोबडे ने एजी को हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती देने के लिए उचित याचिका दायर करने का निर्देश दिया. इसके साथ ही पोक्सो एक्ट के तहत आरोपी को बरी करने के फैसले पर भी रोक लगाते हुए 2 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है.
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यूथ बार एसोसिएशन ने दायर की है याचिका
यूथ बार एसोसिएशन ने भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है और याचिका दाखिल की है. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सिंगल बेंच द्वारा की गयी टिप्पणियां अनुचित हैं और एक बालिका की लज्जा को लेकर चिंता करने वाली हैं. यह भी कहा गया है कि फैसले को पारित करने के दौरान एकल न्यायाधीश ने पैरा संख्या 12 में पीड़ित बच्ची का नाम दर्ज किया. यह हानिकारक है और आईपीसी की धारा 228 ए की भावना के खिलाफ है जो कुछ अपराधों के पीड़ितों के नामों के प्रकाशन को रोक देता है.
महिला आयोग और NCPCR मामले पर गंभीर
याचिकाकर्ता के मुताबिक इस तरह के तर्क से एक भयावह स्थिति पैदा हो जायेगी और पूरे देश की प्रतिष्ठा कम होगी. कुछ दिन पहले, राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने घोषणा की थी कि वह यह कहते हुए इसे फैसले को चुनौती देगा कि महिलाओं की सुरक्षा और सामान्य संरक्षण के विभिन्न प्रावधानों पर न केवल इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा, बल्कि ये सभी महिलाओं का उपहास होगा. इससे महिलाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिए विधायिका द्वारा प्रदान किये गये कानूनी प्रावधानों का तुच्छीकरण होगा. इस बीच, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने महाराष्ट्र सरकार से इस फैसले के खिलाफ “तत्काल अपील” दायर करने को कहा है.
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