AMIT SINGH
Ranchi : कोरोना संकट के बीच झारखंड में हजारों गरीब बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें स्कूल बंद होने के बाद मिड-डे मील नहीं मिल रहा है. मगर उन बच्चों के हिस्से के चावल और कुकिंग कॉस्ट निकाल कर, कागज पर ही बच्चों के बीच बांट दिया गया है. दस्तावेज पर स्कूल के जिन बच्चों का हस्ताक्षर है, उन्हें न तो चावल मिला है और न ही पैसे. स्कूल के जिम्मेवारों ने योजनाबद्ध तरीके से बच्चों के नाम पर, कागजी फर्जीवाड़ा कर कोरोना महामारी के दौरान बच्चों के हिस्से के करोड़ों रूपए डकार लिये हैं. लगातार न्यूज नेटवर्क ने मामले कि पड़ताल की तो कई चौंकाने वाली तथ्य सामने आये हैं. प्रदेश में ज्यादातर बच्चों को बीते महीनों में समय पर मिड-डे मील नहीं मिल पाया है. वहीं करीब 50 प्रतिशत के आसपास बच्चों को न तो मिड-डे मील का खाद्यान्न मिला है और न ही इसके लिए दी जाने वाली राशि.
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सैंपल सर्वे में सामने आई मीड-डे मील की सच्चाई
कोविड संकट और लॉकडाउन के बीच मिड-डे मील में हो रही गडबडी को जानने के लिए सैंपल के तौर पर उत्क्रमित उच्च विद्यालय, डुडीगढा, नामकुम से संबंधित दस्तावेज खंगाला गया. इस स्कूल में क्लास एक से आठ तक में कुल 517 बच्चें पढ़ते है. लगातार टीम ने जब बच्चों और उनके अभिभावकों से बातचीत की तो पता चला कि दस्तावेज पर जिन बच्चों के हस्ताक्षर है, उन्हें चावल और पैसा मिला ही नहीं है. स्कूल के कुछ शिक्षको ने मिलकर लॉकडाउन के दौरान कागजी खानापूर्ति कर, बच्चों के हिस्से का चावल खुले बाजार में बेच दिया. वहीं करीब दो लाख रूपए बच्चों के बीच बांटने के बजाए, जिम्मेवारों ने आपस में बांट लिया है. कुछ बच्चों को चावल और कुछ एक बच्चों को पैसा मिला है, मगर ये संख्या आधी से भी कम है.
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सुप्रीमकोर्ट ने स्वत: लिया था संज्ञान
कोविड संकट और लॉकडाउन के बीच सुप्रीम कोर्ट ने 18 मार्च को सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से नोटिस जारी कर पूछा कि स्कूल बंद कर दिए जाने के बाद वे अपने यहां मिड-डे मील योजना क्यों नहीं जारी रख पा रहे हैं. और अगर जारी रखेंगे तो किस सूरत में. जिसके बाद केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 20 मार्च को सभी राज्यों को भेजे गए निर्देश में ये स्पष्ट किया था कि लॉकडाउन के बावजूद सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील योजना चलती रहनी चाहिए. इसके तहत बच्चों को राशन या भत्ता मिलना चाहिए. जिसमें पहली से पांचवी तक के बच्चों के लिए 114 रुपये और छठी से आठवीं तक के बच्चों के लिए 171 रुपए दिये जाने थे.
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हर दिन 100 ग्राम चावल और 4:48 रूपए देना है
पहली से पांचवी तक के बच्चों को हर दिन के लिए 100 ग्राम चावल और 4.48 रुपए की राशि कुकिंग कॉस्ट के लिए दी जानी है. वहीं, छठी से आठवीं के बच्चों को हर कार्य दिवस के लिए 150 ग्राम चावल और 6.71 रुपए कुकिंग कॉस्ट के लिए दिया जाना है.
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पहले फेज में हुई सबसे ज्यादा गडबडी
झारखंड राज्य मध्यान भोजन प्राधिकरण द्वारा जारी आदेश (18/2020/160, 20-3-20) के अनुसार पहले फेज के तहत बच्चों को मार्च व अप्रैल माह का चावल और पैसा एक साथ मिलना था. क्लास एक से पांच तक के बच्चों को 2 किलो चावल और 113 रूपए 60 पैसा, क्लास 6 से 8 तक के बच्चों को 3 किलो चावल और 158 रूपए 20 पैसा प्रत्येक माह के हिसाब से देना था. नौवीं क्लास के बच्चों को 341 रूपए देने थे. मगर झारखंड में ज्यादातर बच्चों को दो माह के बजाए एक माह का पैसा देकर कागज़ात पर हस्ताक्षर करा लिया गया.
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जानें, किसे मिलता है मिड-डे मील का लाभ
मिड-डे मील योजना के तहत सरकारी, सहायता प्राप्त स्कूल, शिक्षा गारंटी स्कीम और वैकल्पिक नवोन्मेषी शिक्षा केंद्रों, सर्व शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय बाल श्रम विद्यालय के तहत सहायता प्राप्त मदरसों, मकतबों में प्राइमरी और अपर प्राइमरी में पढ़ने वाले बच्चों को मुफ्त भोजन मुहैया कराया जाता है. मिड-डे मील के तहत सरकारी प्राइमरी स्कूलों में प्रत्येक बच्चे को 100 ग्राम और अपर प्राइमरी में 150 ग्राम खाद्यान्न मुहैया कराने का प्रावधान किया गया है. केंद्र सरकार के मुताबिक 15 अगस्त 1995 को शुरू हुई इस योजना से इस समय देश के नौ करोड़ स्कूली बच्चे लाभान्वित होते हैं. योजना को लागू करने में बदइंतजामी के अलावा कई राज्यों में भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और आपराधिक लापरवाही के मामले भी सामने आते रहे हैं.
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