DR Santosh Manav
लालू प्रसाद के बड़े पुत्र तेजप्रताप आक्रामक मुद्रा में हैं. वे अपने छोटे भाई से दो-दो हाथ कर रहे हैं. दरअसल, यह भाइयों के बीच सत्ता संघर्ष है. संघर्ष तो पहले से है, लेकिन, सबकुछ परदे के पीछे था.अब सामने है. संघर्ष का ही नतीजा है कि लालू प्रसाद को दिल्ली में बंधक बनाने का आरोप लगाकर तेजप्रताप ने सनसनी फैला दी है. किसने बनाया बंधक? उनका इशारा छोटे भाई तेजस्वी और बहन मीसा भारती की ओर है. सत्ता संघर्ष में तेजप्रताप न केवल शब्दों के तीर छोड़ रहे हैं, बल्कि राजद के समानांतर संगठन खड़ा कर रहे हैं. उनके संगठन का नाम है- छात्र जनशक्ति परिषद. साफ है कि तेजप्रताप को तेजस्वी का नेतृत्व स्वीकार्य नहीं है. वे बड़े भाई हैं, तो राजद की सत्ता पर पहला हक उनका है. लालू प्रसाद ने तेजस्वी को कमान सौंपी है, जो तेजप्रताप बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं. तो क्या राजद का विभाजन होगा? क्या यह संघर्ष अनहोनी है?

विभाजन की बात अभी दूर है. संभव है, विभाजन न भी हो. समझौता हो जाए. लेकिन, पारिवारिक पार्टियों में इस तरह का संघर्ष अनहोनी नहीं है. यह होता था, हो रहा है, होता रहेगा. इस तरह की पार्टियां एक परिवार या कहें कि एक व्यक्ति की होती है. वहां पार्टी संविधान होता है, नियम कायदे होते हैं. लोकतंत्र का दिखावा होता है, लोकतंत्र नहीं होता. सारी शक्तियां एक व्यक्ति के हाथों में केंद्रित रहती है. उनका हुक्म ही सही अर्थों में संविधान होता है. वहां निर्वाचन नहीं, मनोनयन होता है. एक ही व्यक्ति आजीवन पार्टी प्रमुख होता है. इसलिए जो लोग दो भाइयों के टकराव पर खुश हो रहे हैं, राजद के समाप्त होने की उम्मीद पाल रहे हैं, वे मुगालते में हैं. हाल ही में बिहार ने लोजपा का सत्ता संघर्ष देखा. चाचा-भतीजा की टकराहट देखी. चाचा ने भतीजे को लोजपा की सत्ता से बेदखल कर दिया. मंत्री बन गए. पार्टी प्रमुख बन गए. पांचों सांसदों को साथ जोड़ लिया. भतीजा आज की तारीख में पार्टी से लगभग बेदखल है. रामविलास पासवान, जब तक जीवित रहे, पार्टी प्रमुख रहे. अपने हिसाब से पार्टी चलाई. मनोनयन किए. टिकट या पद, रेवड़ी की तरह बांटे.
ऐसी पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह होती है. वहां एक मैनेजिंग डायरेक्टर कम चेयरमैन होता है. बाकी सभी कंपनी के वैतनिक-अवैतनिक कर्मचारी होते हैं. ऐसी पार्टियों से बड़े बदलाव, बेहतरी, नियम-कायदे, लोकतंत्र की उम्मीद करना ही बेमानी है. इसलिए राजद का सत्ता संघर्ष नेचुरल है. ऐसे संघर्ष होते रहे हैं. होते रहेंगे. ज्यादा दिन नहीं हुए, देश ने शिव सेना का सत्ता संघर्ष देखा. बाल ठाकरे ने पार्टी बनाई-बढ़ाई. उन्हें बेटा उद्धव ठाकरे और भतीजा राज ठाकरे में से एक को चुनना था. उन्होंने बेटे को चुना. भाइयों में लंबा संघर्ष चला. अंतत: राज ठाकरे शिव सेना से अलग हुए. अपनी पार्टी बनाई. नाम दिया – महाराष्ट्र नव निर्माण सेना.
दोनों भाई अलग-अलग. वहां पार्टी नाम की चीज नहीं, लोकतंत्र तो बहुत व्यापक शब्द है. हम जिस इंटरनल डेमोक्रेसी यानी आंतरिक लोकतंत्र की बात करते हैं, वह कहां है? वहां राज और उद्धव साहब हैं. कहा जाता है-राज साहब, उद्धव साहब. शिव सेना में उद्धव और उनके सुपुत्र आदित्य ठाकरे की चलती है. बाकी सारे नेताओं की हैसियत आदेशपालक, डाकिया से ज्यादा की नहीं है. वे शिवसेना के अधिकारी-कर्मचारी भर हैं. मालिक के कर्मचारी, मालिक जब चाहेगा, नौकरी से निकाल देगा. यही कारण है कि पढ़े-लिखे, समझदार लोग ऐसी राजनीतिक पार्टियों से दूर रहते हैं. आ भी गए तो टिकते नहीं हैं. टिक गए तो शोभा की वस्तु होते हैं. ऐसी पारिवारिक पार्टियां असामाजिक तत्वों से भरी रहती हैं.
ऐसी पार्टियों में वंश परंपरा होती है. भूल न कीजिए, संविधान होता है, लेकिन वह सिर्फ और सिर्फ दिखाने के लिए होता है. समाजवादी पार्टी को देखिए- मुलायम के बाद अखिलेश और अखिलेश के बाद अर्जुन ही पार्टी प्रमुख होगा, मानकर चलिए. सपा का चाचा-भतीजा यानी शिवपाल यादव-अखिलेश यादव संघर्ष लोगों ने देखा है. अंतत: शिवपाल को सपा से अलग होकर अपनी पार्टी बनानी पड़ी. 1932 में बनी आल इंडिया मुस्लिम लीग, जो बाद में जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेस बनी, उसके सर्वेसर्वा कौन रहे? पहले शेख अब्दुल्ला, फिर पुत्र फारूख अब्दुल्ला, फिर पौत्र उमर अब्दुल्ला. इसीलिए पारिवारिक पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कंपनी कही जाती हैं. कर्नाटक में जनता दल सेक्यूलर पार्टी यानी एच डी देवगौड़ा और उनके पुत्रों एच डी कुमारस्वामी और उनके भाई रेवन्ना की कंपनी. महाराष्ट्र में एनसीपी शरद पवार, उनके भतीजे अजित पवार और बेटी सुप्रिया सुले की पार्टी कहें या कंपनी, क्या फर्क पड़ता है ? आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम यानी एन टी रामाराव और अब उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू की कंपनी. तेलंगाना में तेलंगाना राज्य परिषद यानी चंद्रशेखर राव, उनके बेटे रामराव, बेटी, बहू की कंपनी. जम्मू -कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी यानी मुफ्ती मोहम्मद सईद और और अब उनकी बेटी मेहबूबा सईद की कंपनी.
तमिलनाडू में 1949 में द्रमुक की स्थापना सीएन अन्नादुरई ने की थी. लेकिन बाद में यह करूणानिधि की पार्टी बन गई. वे 1969 से 2018 तक यानी मौत तक पार्टी प्रमुख रहे. अब उनके बेटे स्टालिन सर्वेसर्वा हैं. इस पार्टी में दो भाई स्टालिन और अलागिरी का सत्ता संघर्ष लोगों ने देखा है. अलागिरी को पार्टी छोड़नी पड़ी.

पारिवारिक या कहें कि व्यक्ति केंद्रित पार्टियों में कलह स्वाभाविक है, नेचुरल है. यह एक तरह से कंपनी पर कब्जा करने, हक जताने का जतन है. इसलिए तेजप्रताप अगर राजद के सहयोगी संगठनों यदुवंशी सेना और डीएसएस का विलय अपने संगठन छात्र जनशक्ति परिषद में करा रहे हैं, तो यह अनहोनी नहीं है. तेजप्रताप और तेजस्वी की राह जुदा होनी ही है, आज हो या कल. यह सत्ता का संघर्ष है जनाब. इसी देश में हुक्मरानों ने सत्ता के लिए अपने पिता को कैद और भाई का कत्ल किया है. इसलिए तेजप्रताप को नहीं कोसिए. सत्ता का तमाशा देखिए. संभव है कल तीन राजद हो-तेजप्रताप राजद, तेजस्वी राजद, मीसा राजद. लेकिन, यह सब आसान भी नहीं है. लालू प्रसाद में ताकत है कि वे तेजस्वी और तेजप्रताप को बांध सकें. वैसे यह उनके कौशल का एक्जाम भी है.
