Ranchi : आजसू पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश कुमार महतो ने कहा है कि आदिवासी समाज की सभ्यता, संस्कृति समृद्ध तो है ही, संघर्ष और समर्पण का इतिहास भी गौरवशाली है. लेकिन उन्हें हर दिन नयी चुनोतियों का सामना करना पड़ता है. इसलिये चुनौतियों को खत्म करने के लिए सामूहिक प्रयास किए जाने की जरुरत है.विश्व आदिवासी दिवस पर रांची स्थित आजसू पार्टी कार्यालय में आयोजित विचार गोष्ठी सह सम्मान समारोह में उन्होंने ये बातें कही.
संघर्ष और समर्पण को भी याद करने का दिन
आजसू प्रमुख ने कहा कि प्रकृति से बेहद करीब रहने वाला समाज आदिवासी समाज है.पंरपरा को समेटे रखने वाले इस समाज को सत्ता सिस्टम के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता. आज का दिन नयी सोच, नए विचार, नयी संभावनाओ को आवाज देने का है. यह दिन उन महान विभूतियों के संघर्ष और समर्पण को भी याद करने का है, जिन्होंने झारखंड राज्य के निर्माण और आदिवासी समाज की संस्कृति, पहचान को बचाने की ताउम्र जतन करते रहे हैं.
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आजसू पार्टी ग्राम सभा और गांव की सरकार पर जोर
श्री महतो ने आगे कहा कि हम और हमारी पार्टी ग्राम सभा और गांव की सरकार पर जोर देती रही है. आदिवासी समाज भी इसका प्रबल पैरोकार है.लेकिन झारखंड में पंरपरागत शासन व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने की कोशिशें जारी हैं. सरकारी तंत्र इस समाज की भावना को समझ नहीं पाता. इसकी वजह है कि तंत्र गांव से दूर है और जन की आवाज तंत्र तक पहुंच नहीं पाती. यहां पलायन, विस्थापन जैसी बड़ी समस्याएं हैं. हिस्सेदारी का संकट है. खनिजों का दोहन जनभावना के विपरीत हो रहा.
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झारखंडियों के भविष्य लिए चिंतन-मनन करना जरूरी
उन्होंने कहा कि मौजूदा परिस्थिति में झारखंड और झारखंडियों के भविष्य लिए चिंतन-मनन करना जरूरी है. चुनौतियों का सामना करने के लिए युवाओं को आगे आना होगा. युवा जब झारखंड को जानेंगे, तो आदिवासी समाज की विशिष्टताएं भी जान सकेंगे. उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय के संरक्षण और संवधर्न के लिए संवैधानिक तौर पर कई नियम कायदे बने हैं. लेकिन जमीनी स्तर पर इसका लाभ उन्हें नहीं मिलता. इसलिए आदिवासियों की समस्याओं के समाधान के लिए ईमादार राजनीतिक पहल की जरूरत है. विचार गोष्ठी में डॉ देवशरण भगत, संजय बसु मल्लिक, वंदना टेटे, सूर्यमणि भगत, गुंजल इकीर मुंडा, एलिना होरो, वर्षा गाड़ी ने भी अपने विचार रखे.
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वंदना टेटे, सूर्यमणि समेत कई सम्मानित
कार्यक्रम में आदिवासी भाषा, संस्कृति के संरक्षण तथा संवर्धन को लेकर बहुमूल्य योगदान देनेवाले झारखंड की कई विशिष्ट लोगो को सम्मानित किया गया। इनमें 20 साल की उम्र से स्वदेशी समूह ‘झारखंड सेव द फॉरेस्ट मूवमेंट’ की अगुवा कार्यकर्ता सूर्यमणि भगत, आदिवासी दर्शन और साहित्य की लेखिका सह ‘झारखंडी भाषा साहित्य, संस्कृति अखड़ा’ की संस्थापक महासचिव वंदना टेटे, लोक संगीतकर एवं सांस्कृतिक कार्यकर्ता तथा सेंट्रल यूनिवर्सिटी के अस्सिटेंट प्रोफेसर गुंजल इकीर मुंडा, आदिवासी वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंट्री) फिल्म निर्माता तथा राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता बीजू टोप्पो, झारखंड जनाधिकार महासभा की कोर टीम मेंबर एलिना होरो तथा झारखंड आंदोलकारी प्रोफेसर संजय बसु मल्लिक एवं डॉ. देवशरण भगत प्रमुख तौर पर शामिल हैं.