Faisal Anurag
घुसपैठ अमित शाह के लिए असम में चुनावी फसल को काटने का सबसे बड़ा हथियार है. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश के प्रधानमंत्री से इस सवाल पर कोई बातचीत करने से परहेज करते हैं. अमित शाह सीएए को बंगाल के लिए जरूरी मानते हैं, लेकिन वह असम में दबी जुबान से ही इस पर कुछ बोलते हैं. नंदीग्राम में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी ने ममता बनर्जी के खिलाफ सांप्रदायिक कार्ड खेला है. भारतीय जनता पार्टी का आरोप है कि असम और बंगाल में चार करोड़ से अधिक बांग्लादेशी घुसपैठिये मौजूद हैं. हालांकि बंगाल में तो घुसपैठियों की पहचान के लिए आयोग ने मात्र 19 लाख लोगों की नागरिकता के कागजात नहीं होने का आंकड़ा दिया था. इससे भाजपा की घुसपैठ के राजनीतिक हथियार की धार कमजोर पड़ी थी.
यह पहला अवसर है कि किसी विधानसभा चुनाव में सांप्रदायिकता का कार्ड पूरी ताकत से खेला जा रहा है. हालांकि इसके खिलाफ बंगाल के सजग नागरिकों और कलाकारों ने वोटरों को आगाह किया है. भाजपा जानती है कि बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी का इस्तेमाल कारगर नहीं होगा. क्योंकि तमाम दावों के बावजूद बंगाल में ममता बनर्जी की लोकप्रियता किसी भी भाजपा नेता से ज्यादा है और नरेंद्र मोदी के सात साल के शासन के खिलाफ भी सत्ता विरोधी रुझान है. बंगाल के लिए यह भी पहला अवसर है कि ममता बनर्जी को केंद्र की सरकार के साथ मुकाबला करना पड़ रहा है. नरेंद्र मोदी की सरकार हर तरह के हथियार का इस्तेमाल कर रही है. एनआइए ने 2009 के एक मामले में लालगढ़ से छत्रपति महतो की गिरफ्तारी की है. माओवादी पार्टी का साथ छोड़ कर छत्रपति महतो तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए थे. लालगढ़ में छत्रपति बेहद लोकप्रिय रहे हैं. खास कर लालगढ़ और नंदीग्राम आंदोलन के समय. नंदीग्राम में चुनाव से मात्र 24 घंटे पहले ही उनकी गिरफ्तारी हुई है.
इसी तरह भाजपा ने ममता बनर्जी का नामकरण ‘बेगम ममता’ किया है. ‘बेगम’ के बहाने भाजपा अपने सांप्रदायिक कार्ड का इस्तेमाल कर रही है. भाजपा का यह पुराना तरीका है. गुजरात में मियां मुशर्रफ बोल कर जिस तरह नरेंद्र मोदी हिंदू वोटरों को आकर्षित करते थे, ठीक उसी तरह ‘बेगम’ शब्द का इस्तेमाल बंगाल में हो रहा है. 2017 के चुनावों में जब भाजपा की हालत खराब मानी जा रही थी, नरेंद्र मोदी ने अहमद पटेल का नाम उछाला था. हिंदू राष्ट्रवाद भाजपा के लिए जरूरी चुनावी प्रवृत्ति रही है.
लेकिन क्या ममता बनर्जी के खिलाफ ‘बेगम’ का इस्तेमाल कारगर हो सकता है. इस सवाल को लेकर खूब चर्चा हो रही है. ममता बनर्जी को जाति ट्रैप में भी उलझाया जा रहा है. इसका प्रयोग पहले राहुल गांधी के खिलाफ गुजरात में किया जा चुका है. उनके मंदिर प्रवेश के बाद उनकी जाति के सवाल को भाजपा ने पूरी ताकत से उठाया था. बंगाल अब तक जाति की राजनीति के खुले प्रयोग से परहेज करता रहा है. ममता बनर्जी ने अपने शासनकाल में दलितों और ओबीसी के लिए अलग से योजनाओं की शुरूआत की है. भाजपा की जाति इंजीनिरिंग के बंगाल प्रयोग के असर के बारे में अभी से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है. क्योंकि आजादी के बाद से बंगाल के वोट पैटर्न को यह सवाल कभी प्रभावित नहीं कर पाया है. 2019 में भाजपा की 18 लोकसभा सीटों पर जीत में इस इंजीनियरिंग की बड़ी भूमिका नहीं मानी जाती है.
ममता बनर्जी के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने पिछले दिनों भाजपा की बंगाल रणनीति के कारगर होने पर सवाल उठाया था. तृणमूल कांग्रेस के जिन नेताओं की गतिविधियों के कारण ममता बनर्जी की सरकार पर आरोप लगते रहे हैं, उनमें ज्यादातर उनका साथ छोड़ भाजपा में जा चुके हैं. ममता बनर्जी ने सत्ता विरोधी रुझान से निपटने के लिए नये उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है. बंगाल महाभारत की तरह एक ऐसा चुनावी युद्ध बना हुआ है, जहां ममता बनर्जी अकेले ही नरेंद्र मोदी और उनकी ताकत का मुकाबला कर रही हैं. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ बातचीत में नरेंद्र मोदी ने घुसपैठ का सवाल नहीं उठाया. इसे चुनाव मेंम भाजपा के घुसपैठ कार्ड के खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है.
ममता बनर्जी की जिद और साहस ही वह सूत्र है, जो उन्हें इस चुनावी जंग में हमलावर बनाये हुए है. बंगाल में पत्रकारों का एक वर्ग मानता है कि जिद और जुझारूपन उनके खून में है और यही उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी है. बीबीसी से बात करते हुए पत्रकार तापस मुखर्जी कहते हैं “ममता की ताकत खुद ममता ही हैं. अब तक के राजनीतिक करियर को ध्यान में रखते हुए उनको कम करके आंकना गलती हो सकती है.” दीदीः द अनटोल्ड ममता बनर्जी’ शीर्षक से ममता की जीवनी लिखनेवाली पत्रकार सुतापा पाल कहती हैं, “ममता देश की सबसे मज़बूत इरादे वाली महिला नेताओं में से एक हैं. इस किताब में उन्होंने लिखा है, ”अपनी राजनीति के अनूठे स्वरूप और जुझारू प्रवृत्ति की वजह से दीदी ने अपने करियर में कई ऐसी चीजों को संभव कर दिखाया है, जिसकी पहले कल्पना तक नहीं की जा सकती थी.
तो क्या ममता जिस तरह वामफ्रंट को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब हुई थीं, उसी तरह भाजपा को भी रोक पायेंगी. इसी सवाल में दिल्ली की साख का सवाल भी शामिल है, जिसे उसने पूरी तरह बंगाल में झोंक दिया है. किसानों के बड़े आंदोलन से उभरे माहौल को बदलने के लिए केंद्र ने बंगाल से बड़ी उम्मीदें लगा रखी हैं, जिसे गोदी मीडिया हवा देता है. नंदीग्राम इसका सबसे बड़ा प्रतीक बनाया गया है, जहां चुनाव प्रचार खत्म हो चुका है.
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