Shyam Kishore Choubey
पितृपक्ष चल रहा है. इंद्रदेव भले ही आषाढ़ में लंबी ताने रहे, लेकिन अब वे खुलकर मेह बरसा रहे हैं. इससे प्रकृति पुत्र झारखंड में चारों ओर हरियाली बिखर गई है और जो लोग हा पानी, हा पानी कर रहे थे, वे अब हाय पानी, हाय पानी करने लगे हैं. इधर छठी विधानसभा के गठन के लिए चुनाव की घोषणा अब-तब में है. सो, नेताओं की नेट प्रैक्टिस जारी हो गई. सरकारी दल अतिरिक्त नेह बरसाते हुए घोषणा-दर-घोषणा करने में मशगूल हैं और जो अगली बार सरकारी दल बनने की चाहत पाले हुए हैं, वे इन घोषणाओं में मीन-मेख निकालते हुए उनकी काट ढूंढने में न्यस्त-व्यस्त हैं. राजनीतिक जुए की कुल जमा हकीकत यही है. हमारी राजनीति की परवरिश कुछ इस खांचे में की गई है कि चुनना उनको ही है, जिनको आज न कल आजमा चुके थे.
एक तरफ जल, जंगल, जमीन का नारा है तो दूसरी तरफ रोटी, बेटी और माटी की टेर लगाई जा रही है. हमारे राजनीतिक सिस्टम का स्थायी भाव तू भ्रष्टाचारी; तू भ्रष्टाचारी के अलावा तू लुटेरा; तू लुटेरा उफान पर है. नेताओं और उनके दलों का आदिवासी प्रेम गजब उमड़ रहा है. इतना तो इंद्रदेव की अपार कृपा के बावजूद नदियां नहीं उमड़ीं. दोनों पक्ष अपनी-अपनी राजनीतिक जमीन बचाने-बनाने के लिए जमीन की सुरक्षा की घोषणा धूम-धड़ाके से कर रहे हैं. एक सवाल उनसे बनता है. हर रैयत की जमीन का खाता ऑनलाइन करने का सिलसिला प्रायः दस साल पहले शुरू हुआ था. इस बीच दोनों पक्षों की फुल फ्लेजेड हुकूमत रही. क्या यह प्रक्रिया पूरी हो गई? अपना-अपना कॉलर सफेद बता रहे दोनों पक्ष ईमानदारी से कहें तो सही कि ऐसा नहीं हो पाया. जवाबदेह कौन है? वाकई, ब्लॉक स्तर के भी बाबू आपको कुछ नहीं समझते? तो आप भ्रष्टाचार को शिष्टाचार क्यों नहीं घोषित कर देते? पिछले 24 वर्षों में सत्ता पर काबिज होनेवाले चेहरों में कोई खास फर्क नहीं आया है.
इंद्रदेव के मेह में कोई कमी नहीं रही. बावजूद इसके उसका आधा भी बचाने की जुगत आप बना सके? कागजों में जंगल तो बढ़ रहे हैं, लेकिन उनके कटने की प्रक्रिया भी कम तेज नहीं है. और तो और पहाड़-दर-पहाड़ भी किस पाताल में धंसते-धंसाये जाते रहे हैं? अजीवन जीने के लिए और वोट कायम रखने के लिए अनाज और कुछ पैसे बेशक दिये जा रहे हैं लेकिन जीवन धन्य करने के लिए जिस शिक्षा और स्वास्थ्य की जरूरत है, वह फाइव स्टार ब्रांड प्राइवेट स्कूलों, प्राइवेट यूनिवर्सिटियों और प्राइवेट अस्पतालों तक ही केंद्रित क्यों है? जिनको चुनकर रातोंरात माननीय बना दिया जाता है, उनको जितना कुछ मिलता है, उसका एक चौथाई भी चुननेवालों के हिस्से में क्यों नहीं आना चाहिए? नहीं भी आना चाहिए तो उनके लिए ऐसा माहौल क्यों नहीं बनाया जाता कि वे शान से अपने दम रोटी अर्जित कर सकें? कोई एक पैसा देता है तो दूसरा बोलता है, हम इससे कहीं अधिक देंगे. दाता को इस हद तक भिखारी बनाने के नेह पर हे ईश्वर, कौन न कुर्बान हो जाए! कोई है ऐसा कहनेवाला कि हम तुम्हें इतना सक्षम बना देंगे कि तुम इससे दूना किसी को दे सको. नहीं न! तो फिर जइसे उदयी, वइसे भान.
अभी सियासी नेट प्रैक्टिस के काल में यात्राओं का दौर चल रहा है. कोई परिवर्तन यात्रा पर है तो कोई सम्मान यात्रा पर. जिसकी जितनी हैसियत है, वह उतना ही स्टार बॉम्बिंग कर रहा है. ऐसे-ऐसे ‘महात्माओं’के दर्शन हो रहे हैं, जिनके नेह से मन जुड़ा जा रहा है. ऐसे दौर से यह बेचारा झारखंड कभी नहीं गुजरा. इन फाइव स्टार यात्राओं के लिए हेलीकॉप्टर उड़ाते-उड़ाते हेलीपैड परेशान हैं. ईंधन देते-देते पेट्रोल पम्प लहालोट हैं. सरकारी पक्ष को इस व्यवस्था में कोई तरद्दुद नहीं. गैरसरकारी पक्ष को भी किसी न किसी हद तक यह मौका मिला हुआ है, रांची से न सही, दिल्ली से सही. जिन महामान्यों पर पूर्व का तमगा चस्पां है, उनकी भी इस व्यवस्था के अंदर व्यवस्था है. यह सारा तामझाम, यह सारा खर्चा आखिर किसके दम पर हो रहा है? किसके गाढ़े पसीने की कमाई है यह? यह हमारी-आपकी कमाई है, जो लुटाई जा रही है. माल महाराज का मिरजा खेलें होरी.
दाता और संरक्षक बने घूम रहे महामान्यगण, केवल एक बात बता दें. दोनों पक्ष लगभग बराबर-बराबर समय तक राजा रूपी सेवक बने रहे. इस बीच चार चुनाव हुए, 24 बजट पेश-पारित किये गये. पिछले चार चुनावों और 24 बजटों में आपने जो-जो वादे किये, उनका ही हिसाब-किताब पेश कर दें. आपके पिछले घोषणापत्र और पारित कराये गये बजट, लिखित दस्तावेज हैं. जुबानी जमाखर्च इसमें कुछ भी न था. इनमें आपके द्वारा लिखित वादे-इरादे किस हद तक फलीभूत हुए, बस इतने का ही दस्तावेज राज्य के 2.59 करोड़ वोटरों को दे दें. आपको 24 टंच सोना मान लिया जाएगा. आप और आपके परिजन धूल से फूल कैसे बन गये, चलिए इसका हिसाब नहीं मांगते, लेकिन इतना तो बता ही दें महामान्य कि लोकसेवक लोक से ऊपर कैसे और किसके भरोसे हो जाते हैं? फिलहाल आपका इतना ही नेह मिल जाए. कहीं ऐसा न हो कि इंद्रदेव के मेह के साथ आपका नेह समुद्रलोक में चला जाए. थोड़ा ठहरकर इस पितृ पक्ष में यह भी सोचने का वक्त है कि जिन भावनाओं से देश को आजाद कराने के लिए और झारखंड को राज्य बनाने के लिए पितरों ने अपना जीवन होम किया, उनके सम्मान में हम कैसा तर्पण कर रहे हैं.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
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