Lagatar Desk: सुप्रीम कोर्ट आज पेगासस जासूसी मामले में दायर कई याचिकाओं की सुनवाई करने वाला है. इस बीच द वायर ने मामले में कुछ और खुलासे किये और एक रिपोर्ट प्रकाशित किया है. रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री के दो अफसरों के फोन की भी जासूसी की गई थी. यानी जहां से याचिकाओं की एंट्री होती है, वहां पदस्थापित न्यायिक अफसरों की भी जासूसी की गई.
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दोनों अफसर रिट याचिका वाले सेक्शन में ही तैनात थे
द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों अफसर रिट याचिका वाले सेक्शन में ही तैनात थे. वर्ष 2019 में मोदी सरकार के खिलाफ कई याचिकाएं दायर हुईं थी. उसी साल, जस्टिस अरुण मिश्रा का नंबर भी जासूसी की लिस्ट में आया. वे वर्ष 2020 में रिटायर हुए.
लेकिन उनके जिस BSNL नंबर को जासूसी के लिए दर्ज़ किया गया, उसका इस्तेमाल वे अप्रैल 2014 में ही बंद कर चुके थे. वर्ष 2018 की शुरुआत में भगोड़े नीरव मोदी के वकील विजय अग्रवाल की भी जासूसी हुई. इसी तरह वर्ष 2019 की सूची में ऑगस्टा वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर डील के दलाल क्रिस्चियन मिचेल के वकील का नंबर भी लिस्ट में आ गया.
यहां तक कि पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के एक जूनियर वकील को भी निशाने पर लिया गया. ऐसा लगता है कि पेगासस खरीदने के बाद सरकार ने NSO के अधीन जासूसी का ही काम 18-18 घंटे किया. तभी आज हालात ऐसे बन गये हैं कि मोदी सरकार को संसद में जवाब देते नहीं बन रहा है. यहां तक कि IT मामलों की संसदीय समिति में बैठे बीजेपी सांसद भी किनारा करने लगे हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि जिस अदालत के अफसरों व जजों की जासूसी की गई हैं, वह अदालत इस मुद्दे पर कितनी गंभीरता दिखाती है.