NewDelhi : केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि देश में ईसाइयों पर टारगेटेड हमले नहीं होते हैं और अगर यह बात कही जा रही है तो इसका कोई हिडेन अजेंडा हो सकता है. खबर है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ईसाई संगठनों की एक पीआईएल पर सुनवाई के क्रम में यह बात कहते हुए हलफनामा दायर किया. ईसाई संगठनों ने इस मामले में स्वतंत्र जांच की मांग की है. जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है. बता दें कि गृह मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया गया.
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यह देश में तनाव पैदा करने की कोई चाल हो सकती है
सरकार ने कहा, इस पीआईएल के पीछे कोई छिपा हुआ अजेंडा हो सकता है. हो सकता है कि यह देश में तनाव पैदा करने की कोई चाल हो या फिर किसी बाहरी दखल के लिए ऐसा किया गया हो जिससे कि देश के अंदरूनी मामले में कोई हस्तक्षेप करे. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की तरफ से कोर्ट में हलफनामा पेश किया. वरिष्ठ वकील कॉलिन गोसालवीस ने प्रतिक्रिया देने के लिए कुछ समय मांगा है. कोर्ट ने उन्हें एक सप्ताह का मौका देते हुए सुनवाई 25 अगस्त तक के लिए टाल दी.
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आर्कबिशप पीटर मचाड़ो और दो ईसाई संगठनों ने याचिका फाइल की है.
जान लें कि आर्कबिशप पीटर मचाड़ो और दो ईसाई संगठनों ने मिलकर याचिका फाइल की है. केंद्र ने कहा कि खुद पर ही आधारित रिपोर्ट और तथ्यों को पेश किया जा रहा है और आधी ही सच्चाई सामने रखी जा रही है. इसका मतलब है कि इसका कोई परोक्ष मकसद है. यह आजकल ट्रेंड में है कि कुछ संगठन अपनी मनमानी रिपोर्ट लिखते हैं. इसके बाद इन लेखों को पीआईएल का आधार बना लिया जाता है.
हलफनामे के अनुसार अगर कोई ऐसा मामला सामने आता है तो संबंधित एजेंसियां कार्रवाई करती हैं. इसके अलावा प्रभावित लोग हाई कोर्ट का रुख करते हैं. यहां याचिकाकर्ता चाहता है कि कुछ मनमाने आर्टिकल को दिखाकर पूरे देश में जांच करवाई जाये. इनके द्वारा रखा गया कोई भी तथ्य वेरिफाइड नहीं है. वकील गोंसालवीस ने कहा है कि केवल 2021 में ईसाइयों पर 500 अटैक हुए. उन्होंने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह की गाइडलाइन मॉब लिंचिंग को लेकर 2018 में जारी की थी उसी तरह के निर्देश फिर जारी हों.