Chakulia : चाकुलिया प्रखंड की कालिआम पंचायत में घने जंगलों के बीच बसा राजस्व गांव है तुतरीशोल. गांव किसी भूल भुलैया से कम नहीं है. जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है पर इस गांव में पिछले नौ साल से बिजली नहीं है. दिवाली पर भी यह गांव पूरी तरह अंधेरे में डूबा है. गांव में बिजली आई थी, परंतु ट्रांसफार्मर खराब होने और तार की चोरी होने के कारण पिछले नौ साल से गांव में बिजली नहीं है और ग्रामीण ढिबरी युग में जी रहे हैं. ग्रामीणों ने बताया कि चार माह पूर्व बिजली विभाग द्वारा एक ट्रांसफार्मर भेज दिया गया है. यह ट्रांसफार्मर गांव में पड़ा है. तार चोरी हो जाने से इसे लगाने पर भी कोई फायदा नहीं होगा. गांव की बिजली व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए कोई नहीं आया. अब तार लगाने के लिए जनप्रतिनिधियों की ओर से प्रयास किए जाने की जरूरत है, पर अब तक कोई पहल नहीं की गई है. यहां आठ आदिवासी परिवार आदिम युग की जिंदगी जीने के लिए अभिशप्त हैं. मगर इनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है. ग्रामीण कहते हैं कि सांसद और विधायक की बात कौन करे यहां तो पंचायत के मुखिया के भी पांव नहीं पड़े हैं. जैसे इस गांव को कोई जानता ही नहीं, यह नक्शे में हो ही नहीं.
गांव तक पहुंचने के लिए रास्ता तक नहीं, मरीज खटिया पर ले जाए जाते हैं
राष्ट्रीय उच्च पथ 18 से करीब 4 किलोमीटर उत्तर में घने जंगलों के बीच बसा है यह गांव. इस गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क से करीब तीन किलोमीटर जंगल के रास्ते पैदल चलना पड़ता है. इस गांव तक चार पहिया वाहन नहीं पहुंच सकता है. बरसात में बाइक का जाना भी मुश्किल हो जाता है. मरीजों और गर्भवती माताओं को खटिया पर ढोकर सड़क तक ले जाना पड़ता है. बच्चों को जंगल के रास्ते तीन किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाना पड़ता है. यहां के बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र नहीं जाते हैं. विकास के नाम पर इस गांव में पंचायत स्तर से पेवर्स ब्लॉक सड़क बनी है. एक चापाकल लगा था, जो वर्षों से खराब पड़ा है. वन विभाग के तहत बना एक कुआं है. इस कुआं से ग्रामीण पेयजल लेते हैं. गर्मी में कुआं सूख जाता है और तब ग्रामीणों को खाल का पानी पीना पड़ता है. यहां के ग्रामीण प्रकृति के पुजारी हैं. जंगलों की रक्षा करते हैं. लकड़ी की बजाए वृक्ष के सूखे पत्तों से खाना बनाते हैं. ताकि लकड़ी के लिए वृक्षों को काटना ना पड़े. इस क्षेत्र में जंगल से वृक्ष काटने की मनाही है. यही कारण है कि इस गांव के आसपास के साल समेत अन्य प्रजाति के वृक्षों के जंगल लहलहा रहे हैं.
हम जंगल के बीच रहते हैं. इसलिए जनप्रतिनिधियों और सरकारी पदाधिकारियों ने हमें जानवर समझ रखा है. हमारी सुधि लेने के लिए कोई नहीं आता है. 21वीं सदी में हम आदिम युग की जिंदगी जी रहे हैं. गांव तक आने के लिए सड़क नहीं है. मरीज और गर्भवती माताओं को खटिया पर ढोकर सड़क तक ले जाना पड़ता है. जंगली हाथियों से हम परेशान रहते हैं. नौ साल से गांव में बिजली नहीं है. कई बार जनप्रतिनिधियों और पदाधिकारियों को आवेदन दिया. मगर हमारी सुनने वाला कौन है.
कुनाराम हेंब्रम, ग्राम प्रधान, तुतरीशोल.