Ranchi : रेलवे की तरह राज्य के किसी बस स्टैंड में मानव तस्करी रोकने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. यदि इन स्थानों पर ऐसी व्यवस्था रहे तो मानव तस्करी को रोकने में प्रशासन और सरकार को सफलता मिल सकती है. कोरोना संक्रमण के दौरान कम ट्रेनों के चलने के बावजूद केवल रांची आरपीएफ ने जून से लेकर अबतक 35 नाबालिग और महिलाओं को मानव तस्करी मामले में रेस्क्यू किया गया और फिर इन्हें परिजनों और चाइल्डलाइन के हवाले किया. कुछ मामले में इन्हें बालगृह भी भेजा गया.
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खादगढ़ा बस स्टैंड में भी नहीं है ऐसी सुरक्षा
खादगढ़ा बस स्टैंड एक अंतर्राज्यीय बस अड्डा है. कोरोना के कारण यहां से दूसरे राज्यों के लिए बसों का परिचालन फिलहाल बंद है. अभी लोकल स्तर पर राज्य के अंदर बसें चलायी जा रही हैं. यहां आवाजाही पर कोई रोक-टोक नहीं है. सामान्य दिनों में यहां से ओडिशा, छत्तीसगढ़, प. बंगाल, बिहार, यूपी के लिए लंबी दूरी की बसें चलती हैं. इस लिहाज से मानव तस्करी यहां से संभव है. यहां अपराध रोकने के साथ-साथ मानव तस्करी पर निगरानी का जिम्मा भी यहां स्थित टीओपी और कुछ होमगार्ड के जवानों पर है. शहर के अन्य बस अड्डों पर तो यह नाममात्र की व्यवस्था भी नहीं है.
जबकि रेल स्टेशनों में कड़ाई के कारण अब ट्रैफिकर वहां जाने से बचने लगे हैं. यहां राज्य की ओर चाइल्डलाइन हेल्प डेस्क हैं. बड़े स्टेशनों से लंबी दूरी की ट्रेनों के माध्यम से महानगरों में मानव की तस्करी पर नजर रखी जाती है. स्टेशनों पर रेलवे पुलिस की टीम मेरी सहेली और नन्हे फरिश्ते तैनात कर देने से यह पकड़ में आ रहे हैं. मेरी सहेली की टीम महिलाओं का रेस्क्यू करती है और नन्हे फरिश्ते की टीम बच्चों की सुरक्षा करती है. छोटे स्टेशनों में भी तैनात आरपीएफ सुरक्षाकर्मियों को इसकी जिम्मेवारी दी गई है.
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सुरक्षा टीम रहने की जरूरत
रेलवे पुलिस के वरीय कमांडेंट प्रशांत यादव स्वयं इसकी निगरानी करते हैं. वह कहते हैं कि इसके लिए जरूरी होने पर जीआरपी, राज्य पुलिस, चाइल्ड लाइन और विभिन्न विभागों की मदद ली जाती है. मंडल के क्षेत्र से बाहर होने पर आपसी समन्वय से ही मानव तस्करी का मामला उजागर होता है और तस्कर पकड़े जाते हैं. इसी तरह की कोई टीम राज्य के बस स्टैंड में रहनी चाहिए, जिससे मानव तस्करी को रोकने के अभियान को गति मिले और इस पर लगाम कसी जा सके.