sonia jashmin
Ranchi : डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान में कई तरह के शोध हो रहे हैं. झारखंड के आदिवासियों पर भी शोध होगा. आदिवासियों के विकास से संबंधित मामले में जनजाति शोध संस्थान की महत्वपूर्ण भूमिका है. यह संस्थान आदिवासियों की भाषा रहन-सहन, खान-पान व सांस्कृतिक पर शोध व अध्ययन करेगा. सरकार की योजनाओं से आदिवासियों के जीवन में आने वाले बदलाव के अलावा लुप्त होती जनजाति पर भी काम कर रहा है, जो सरकार और जनता के बीच कड़ी की भूमिका निभाता है.
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शोध करने के लिए मांगे गये हैं आवेदन
डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान ने विश्वविद्यालयों, संस्थाओं, शोध संस्थानों से झारखंड की विविध जनजातीय समुदायों पर शोध करने के लिए आवेदन मांगे हैं. कुल चार विषयों पर शोध के लिए आवेदन मांगे गये हैं, जिनमें से एक झारखंड के जनजातीय शासन व्यवस्था पर शोध भी शामिल है. इस शोध में यह पता लगाया जाएगा कि जनजातीय व्यवस्था में स्थानीय शासन की क्या व्यवस्था थी. शोध से यह पता लगाया जाएगा कि झारखंड की पड़हा राजा जैसी स्थानीय शासन व्यवस्था लागू करने में उस समय के शासकों की भूमिका क्या थी. जनजातीय शासकों के शासन की वास्तविक अवधि क्या थी. छोटे-छोटे राजवंश शासकों द्वारा झारखंड के निर्माण में भी महत्वपूर्ण छाप छोड़ने के प्रमाण मिले हैं. इन शासक वर्ग का समृद्ध इतिहास रहा है, लेकिन इसका अभी तक दस्तावेजीकरण नहीं हो सका है. झारखंड के निर्माण में गैर आदिवासी राजनीति के शामिल होने की बात सामने आती है. शोध के माध्यम से आदिवासी राजनीति, सामाजिक रूप से इस आंदोलन में कहां और कब शामिल हुए इसका अध्ययन भी किया जाएगा.
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किन जनजातीय शासकों पर होगा शोध
जंगल महल के भूमिज, रामगढ़ के खेरवार, हजारीबाग के संस्थान रांची के नागवंशी, बुंडू के मुंडा और हजारीबाग के संथाल राजवंश इनमें शामिल है. जनजातियों शोध संस्थान यह काम चयनित विश्वविद्यालय मान्यता प्राप्त एजेंसियों के अनुभवी विशेषज्ञों के माध्यम से कराएगा. शोध की अवधि नौ माह है. संस्थान पहले भी दो बार इसके लिए विज्ञापन निकाल चुका है, लेकिन कोई आवेदन नहीं आने के बाद तीसरी बार विज्ञापन निकाला गया है.
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