Surjit Singh
किसान आंदोलन में अब नया मोड़ आने लगा है. 28 जनवरी की शाम तक लग रहा था कि किसान दिल्ली बॉर्डर से हट जायेंगे. या दिल्ली, यूपी व हरियाणा की पुलिस उन्हें खदेड़ देगी. लेकिन योगी सरकार की जल्दबाजी और भाजपा विधायक कपिल मिश्रा का (दिल्ली दंगे को उकसाने वाला) बनने की कोशिशों ने किसान नेता राकेश टिकैत को रूला दिया. राकेश टिकैत के आंसुओं से केंद्र सरकार, यूपी-हरियाणा सरकार व भाजपा की चाल उल्टी पड़ने लगी.
ताजा स्थिति यह है कि किसान नेता राकेश टिकैत के समर्थन में किसान दोबारा दिल्ली बॉर्डर पर लौटने लगे हैं. राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी तत्काल गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंच गये. यूपी व हरियाणा में हालात बेकाबू होने का अंदेशा जतायी जाने लगी है. हरियाणा में जिंद-चंडीगढ़ हाईवे को रात में ही किसानों ने जाम कर दिया है. जबकि यूपी के मुजफ्फरनगर में महापंचायत बुलायी गई है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश का इलाका किसान आंदोलन का केंद्र बनने लगा है.
26 जनवरी को दिल्ली में कुछ सिरफिरों ने जो किया, उसका केंद्र की सरकार और भाजपा ने जबरदस्त फायदा उठाया. टीवी मीडिया ने हिंसा की खबरों को प्रमुखता दी और लाल किला पर धार्मिक झंडा फहराने की घटना को देशद्रोह बताने लगे. इसका असर यह हुआ कि देश भर में आंदोलन कर रहे किसानों के प्रति नफरत फैलने लगी. और किसान नेता बैकफुट पर आ गये. इसी दौरान तीन किसान संगठनों ने खुद को आंदोलन से अलग कर लिया.
हालांकि 26 जनवरी की शाम होते-होते और 27 जनवरी को सोशल मीडिया के जरिये देश भर में यह संदेश भी फैल गया कि जिस शख्स ने लाल किला पर धार्मिक झंडा फहराया, वह केंद्र में सत्तारुढ़ दल भाजपा का करीबी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा सांसद सन्नी देओल, हेमा मालिनी के साथ उसकी तस्वीर वायरल होने लगी. इससे लोगों के बीच यह संदेश गया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि दो माह से दिल्ली सीमा पर जमे किसानों के आंदोलन को कमजोर करने के लिये सत्ता के इशारे पर ही दिल्ली में उपद्रव की छूट दी गई.
बहरहाल, यूपी की योगी सरकार किसानों को दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है. किसानों को नोटिस दिये जा रहे हैं. गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों पर बल प्रयोग करने के लिये बड़ी संख्या में फोर्स की तैनाती कर दी गई है. यही स्थिति हरियाणा और सिंधू बॉर्डर की है. इन सबके बीच एक बार फिर से आंदोलन के समर्थन में देश के विभिन्न हिस्सों से किसान दिल्ली बोर्डर के लिये निकल पड़े हैं. तब, ऐसा लगने लगा है कि कहीं सरकार की चाल उल्टी ना पड़ जाये. और जिस तरह किसानों ने मोदी सरकार से अडानी-अंबानी के संबंधों को खुल्लम-खुल्ला कर दिया, उसी तरह दिल्ली उपद्रव की घटना का ठिकरा भी सत्ता पर ही ना फोड़ दे.