33 लाख कुम्हारों को मिलेगा दिवाली गिफ्ट!
Ranchi : झारखंड के कुम्हार सालों भर मिट्टी के बर्तन बनाते हैं. बेचते हैं. लेकिन अक्टूबर-नवंबर का वक्त उनके लिए खास है. इन्हीं दिनों दिवाली पर्व आता है. लिहाजा कुम्हार मिट्टी का दिया बनाने में जुट गए हैं. उनके बनाये दिये से दूसरों के घर रौशन होंगे. इस बात की उन्हें खुशी है. लेकिन मलाल है कि उनकी जिंदगी को संवारने का काम अधूरा रह गया है. उनकी जिंदगी, उनके काम को आसान बनाने और घरों को रौशन करने के लिए झारखंड में माटी कला बोर्ड की दरकार है. पर, यह बोर्ड पिछले चार सालों से काम नहीं कर रहा. ना बोर्ड के अध्यक्ष हैं और ना सदस्य. एमडी समेत अन्य अधिकारी-पदाधिकारी व कर्मचारी भी नहीं हैं. ऐसे में झारखंड के कुम्हारों की राज्य सरकार से अपील है कि माटी कला बोर्ड सक्रिय हो, ताकि बोर्ड की मदद से उनकी जिंदगी भी रौशन हो सके. अगर वर्तमान सरकार बोर्ड में अध्यक्ष, सदस्य, एमडी समेत अन्य की नियुक्ति करती है, तो यह झारखंड के कुम्हारों के लिए दिवाली का गिफ्ट होगा.
आंदोलन के बाद बना था माटीकला बोर्ड
किसी भी व्यक्ति या समाज के बुनियादी विकास के लिए जरूरी है कि उसका सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक विकास हो. एकीकृत बिहार के समय से कुम्हार समाज की मांग थी कि माटीकला बोर्ड बने, ताकि कुम्हारों को उनका अधिकार मिल सके. झारखंड गठन के बाद भी इसकी मांग होती रही. माटीकला बोर्ड की मांग को लेकर छह सितंबर 2016 को राज्य भर के कुम्हारों ने जिला मुख्यालयों में उपायुक्त के समक्ष एक दिवसीय धरना -प्रदर्शन किया था. इसके बाद 28 दिसंबर को माटीकला बोर्ड के गठन का प्रस्ताव विधानसभा में लाया गया और 30 दिसंबर को कैबिनेट से मंजूरी मिल गई. लेकिन माटी कला बोर्ड अस्तित्व में नहीं आया. तब एक जनवरी 2017 को झारखंड कुम्हार महासंघ ने आभार मार्च निकाला. इसके बाद मई 2017 से झारखंड माटीकला बोर्ड अस्तित्व में आ गया. एक अध्यक्ष और पांच सदस्य बनाये गये. तीन साल बाद बोर्ड का कार्यकाल समाप्त हो गया. इसके बाद से नये अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति नहीं हुई है.
माटीकला बोर्ड के पुनर्गठन से क्या होगा लाभ
कुम्हार, लोहार, बढ़ई, चमार जाति के लोग पारंपरिक पेशे से अपना जीविकोपार्जन चलाते थे. लेकिन आज कॉरपोरेट घरानों ने उन्हें बेकार कर दिया है. इस कारण समाज के जन्मजात हुनरमंद लोग बेगार हो गये. अगर राज्य में माटीकला बोर्ड काम करता है, तो इन हुनरमंदों को रोजगार उपलब्ध कराना आसान हो जायेगा. अगर बोर्ड सही तरीके से काम करे तो कुम्हारों को इलेक्ट्रिक चाक, पग मिल, जिगर जौली पीडिएस दुकान की तरह रियायत दर पर ईंधन उपलब्ध कराना आसान हो जायेगा. कुम्हारों को प्रशिक्षण भी दिया जा सकेगा. तब ये कुम्हार बर्तन बनाने वाली कंपनियों का मुकाबला आसानी से कर पायेंगे.
मिट्टी के बर्तनों के हैं कई लाभ
जैसे-जैसे हमारी निर्भरता कृत्रिम वस्तुओं पर बढ़ रही है, वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय बदलाव हो रहा है. इसका असर हमारी कार्यक्षमता में कमी के रूप में भी देखने को मिल रही है. यही कारण है कि दुनिया भर में काम के घंटे को कम करने की बात हो रही है. इन कारणों से आबादी के अनुपात में उत्पादन करना मुश्किल होता जा रहा है. बदलते वक्त के साथ औद्योगिक क्रांति हुई और हम मशीनी युग में प्रवेश करते चले गए. आज प्लास्टिक को सबसे बड़ा दुश्मन माना जा रहा है. ऐसे वक्त में जरूरी है कि हमारी निर्भरता मिट्टी के बर्तनों की तरफ बढ़े. ऐसा तभी संभव है, जब हर तकनीकी विद्यालय, महाविद्यालय में एक ट्रेड मिट्टी को भी रखा जाए और इसकी शिक्षा बच्चों को दी जाए, तो पटेल की मूर्ति चीन से बनवाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. मिट्टी के बर्तन को एल्युमिनियम या धातु से सस्ता कर दिया जाए तो सब की पहली पसंद मिट्टी होगी. हांडी वाली साग की सौंधी स्वाद अब नहीं है, जिसका नतीजा है कि गैस्ट्रिक, बीपी, शुगर के मरीज बढ़े हैं. मिट्टी वाली 18 सूक्ष्म पोषक तत्व आदमी के थाली से गायब है. यही कारण है कि समय से पहले लोगों के बाल पक रहे हैं और आदमी समय से पहले बूढ़ा नजर आ रहा है.
क्या कहते हैं कुम्हार समाज के लोग
कुम्हारों में संपन्नता आयेगी : जोगेंद्र प्रजापति
गढ़वा निवासी जोगेंद्र प्रजापति बताते हैं कि माटीकला बोर्ड हमारे समाज को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने के लिए बहुत जरूरी है. सरकार जल्द से जल्द इस बोर्ड के लिए अध्यक्ष, सचिव समेत अन्य अफसरों की नियुक्ति करे, ताकि कुम्हार समाज के लोगों को भी उनका हक मिल सके.
राजनीतिक पहचान के लिए जरूरी : नमिता देवी
रामगढ़ निवासी नमिता देवी कुम्हार समाज की जिला अध्यक्ष हैं. उन्होंने कहा कि माटीकला बोर्ड के अस्तित्व में रहने से कुम्हारों को अलग राजनीतिक पहचान मिलती है. इस जाति के लिए हर राज्य में बोर्ड का होना बहुत जरूरी है. उन्होंने सरकार से मांग की है कि माटीकला बोर्ड का गठन कर इस दिवाली कुम्हारों को गिफ्ट दें.
बोर्ड का गठन जल्द हो : प्रकाश कुमार
जामताड़ा के नारायणपुर निवासी प्रकाश कुमार राष्ट्रीय प्रजापति हिरोज ऑर्गनाइजेशन के राष्ट्रीय महसाचिव हैं. उन्होंने बताया कि झारखंड में माटीकला बोर्ड बहुत ही जरूरी. बोर्ड के गठन से कुम्हार जाति के लोगों की जिंदगी में बदलाव आएगा. उन्होंने सरकार से मांग की है कि जल्द से जल्द माटीकला बोर्ड का पुनर्गठन किया जाये.
कुम्हारों के कई काम आसान हो जायेंगे : राम पंडित
धनबाद निवासी हरे राम पंडित कोल इंडिया में उप महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. वे कुम्हार समाज की सेवा में लगे रहते हैं. उन्होंने बताया कि माटीकला बोर्ड होने से कुम्हारों के लिए काम आसान हो जायेगा. मिट्टी के बर्तनों को बनाने के लिए जिन आधुनिक कल पुर्जों की उन्हें जरूरत है, वह आसानी से उपलब्ध हो पायेगा.