Faisal Anurag
क्रोनोलॉजी तब ही क्यों याद आती है जब सरकार फंसती है. ताजा मामला पेगासस जासूसी प्रकरण का है जिसने भारत के लोकतंत्र के तमाम स्तंभों पर हमला किया है. न तो मंत्री सुरक्षित हैं और न ही विपक्ष के नेता. पत्रकार और एक्टिविस्ट तो पहले से ही निशाने पर हैं. साफ है कि क्रिमिनोलॉजी के उजागर होते ही बचाव के लिए दलित, महिला, पिछड़े नेतृत्व पर हमले का हौवा खड़ा कर वास्तविकता को दफन कर देने का प्रचारयुद्ध तेज कर दिया जाता है. कोविड रोकथाम की नाकामयाबी और मौतों से उपजे आक्रोश को कुंद करने के लिए भी इसी तरह के प्रचारयुद्ध का सहारा लेने का प्रचलन दिखा.
जैसे ही पेगासस जासूसी प्रकरण प्रकाश में आया और सरकार का विरोध तेज हुआ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को दलित और महिला विरोधी करार दिया, तो गृहमंत्री और आईटी मंत्री को क्रोनोलॉजी की याद आ गयी. राफैल के मामले के उजागर होने के समय भी अमित शाह ने सबसे ज्यादा बातें क्रोनोलॉजी कि की थी.
पिछड़ा और दलित कार्ड नरेंद्र मोदी का पुराना हथियार है. यहां तक कि इस हथियार का इस्तेमाल तो मंडल आयोग से पैदा हुए उभार और उसके नेताओं के खिलाफ भी इस्तेमाल किया गया. बिहार और यूपी में मोदी ने इसी कार्ड का इस्तेमाल खुल कर किया और अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब वे बंगाल में इस कार्ड के सहारे ममता बनर्जी को सत्ता से बेदखल करने का अभियान चलाया. जैसे ही पेगासस जासूसी प्रकरण उजागर हुआ एक बार फिर यही कार्ड उछाल दिया गया है. सवाल तो भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के तमाम स्तंभों पर हो रहे हमले का है. जासूसी कार्ड से न्यायतंत्र और चुनाव आयोग भी नहीं बचा है तो यह गंभीर सवाल है. 2013 में डॉ मनमोहन सिंह की सरकार के समय भी एक टेलीफोन टेपिंग का विवाद सामने आया था, तब नरेंद्र मोदी सहित तमाम भाजपा नेताओं ने हंगामा किया था. 2014 के बाद से टेलीफोन टेपिंग और जासूसी के संदेह अनेक बार व्यक्त किए गए.
पेगासस जासूसी का मामला बेहद गंभीर है. इसका जाल तो दुनिया के पचास से अधिक देशों में फैला हुआ है. भारत के लोकतत्र के लिए यह एक बेहद गंभीर प्रकरण है. हेडलाइन मैनेजमेंट से भले इसकी गंभीरता को कम कर लिया जाए लेकिन यह तो साफ है कि देश में किसी की भी निजता सुरक्षित नहीं है. देरसबेर इसकी जाल में भारत के उन तमाम नागरिकों को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाएगा जो किन्हीं भी मृद्दों पर केंद्र से असहमत होगें या केंद्र के निर्देशों का उल्लंघन करेंगे. भीमा कोरेगांव में अब जिस तरह के खुलासे सामने आए हैं उसमें भी पेगासस जैसी प्रक्रिया की भूमिका देखी जा सकती है. अमेरिकी कंपनी आर्सेनल की जांच में जाहिर हो चुका है कि भीमा कोरेगांव के अभियुक्तों के कंप्यूटर में लेटर प्लांट किए गए थे. फादर स्टेन इसी प्रक्रिया में संस्थानिक हत्या के शिकार हैं. पेगासस के सामने आने के बाद तो भारत में संवैधानिक असहमति और विरोध के अधिकार पर नियंत्रण करने की प्रवृति सामने आयी है. ऐसा तो इमरजेंसी के दौर में भी नहीं देखा गया था.
इसे भी पढ़ें- तरणजीत के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए सिख समाज एकजुट, दिल्ली जाना पड़ा तो जाएंगे
विपक्ष पर हमलावर हो कर बचाव करने में माहिर केंद्र सरकार जानती है जिस तरह उसने राफैल मामले के व्यापक प्रचार को निषिद्ध कर दिया था. उसे उम्मीद है कि ऐसी ही कामयाबी उसे पेगासस जासूसी मामले में भी मिल जाएगी. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जो आलोचना केंद्र की हुई थी उससे भी उसने निजात पाने के लिए अपने पुराने एजेंडे का ही इस्तेमाल किया है. पेगासस से उभरे विवाद के बीच प्रधानमंत्री ने विपक्ष को पिछड़ा और दलित विरोधी बताया है तो उनके दो मकसद साफ हैं. एक तो पूरे जासूसी प्रकरण से पैदा रोष को कुंद करना और दूसरा इसका संदेश उत्तर प्रदेश के मतदाताओं को देना.
एनआईआईटी की परीक्षा से पिछड़ों के आरक्षण को भले ही केंद्र ने खत्म कर दिया हो, लेकिन वह पिछड़ों के नेतृत्व को उन तमाम सामाजिक न्याय की ताकतों से छीन लेना चाहती है जो भाजपा के खेमे में नहीं है. पेगासस जैसे गंभीर और संजीदा मामले को भी इसी प्रक्रिया में धकेल देने का प्रयास किया जा रहा है. फ्रांस की अदालत भले ही भारत को राफैल बेचे जाने के मामले में हुए भ्रष्टाचार के आरोप की जांच करे. भारतीय मीडिया के लिए यह हेडलाइन नहीं ही बनने दिया गया. इस संदर्भ में बोफोर्स को याद किया जा सकता है जब स्वीडन के साथ उसकी जांच भारत में भी हुई थी.
क्रोनोलॉजी का संदर्भ तो यही है कि किस तरह सरकार का बचाव किया जाए और विपक्ष को ही कठघरे में खड़ा कर दिया जाए. विपक्ष के साथ ही साहस के साथ लिखने वाले पत्रकारों और एक्टिविस्टों से निपटने की केंद्र की कोशिश है. हालांकि पेगासस जासूसी प्रकरण बेहद गंभीर है और भारत की वैश्विक छवि को और ज्यादा खराब कर रहा है. 75 सालों से भारत ने लोकतंत्र की जिन कामयाबियों का सफर तय किया है उस के सामने सबसे बड़ा संकट खड़ा है.
इसे भी पढ़ें- टेरर फंडिंग मामला: महेश, सोनू और विनीत अग्रवाल की याचिका पर HC में सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित