Lagatar Desk : सोमवार को ‘खेलों के महाकुंभ’ टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला डिस्कस थ्रो एथलीट कमलप्रीत कौर इतिहास रचने से चूक गयीं. वह 63.70 मीटर थ्रो के साथ छठे स्थान पर रहीं. काफी मेहनत कर कमलप्रीत ने फाइनल में स्थान बनाया था. कमलप्रीत पहले प्रयास में 61.62 का डिस्कस थ्रो किया. वही दूसरा प्रयास कमलप्रीत का फाउल गया. तीसरे प्रयास में उन्होंने 63.70 मी का थ्रो किया था. वहीं, चौथे प्रयास में वह फाउल कर गयीं. कमलप्रीत कौर ने पांचवें प्रयास में 61.37 मीटर का थ्रो किया. वहीं, छठे प्रयास में वह फाउल कर गयी. इसके साथ वह पदक से चूक गयीं. दूसरे प्रयास के बाद बारिश के चलते कुछ समय के लिए खेल रोक दिया गया था. डिस्कस थ्रो में भारत का अब तक का यह श्रेष्ठ प्रदर्शन था. इससे पहले सीमा पुनिया ने 60.57 मीटर फेंककर तालिका में छठे स्थान पर रही थीं. हालांकि, वह फाइनल में नहीं पहुंच पाई थीं.
मालूम हो कि अमेरिका की वैलेरी ऑलमैन ने 68.98 मीटर थ्रो के साथ स्वर्ण पदक जीता, वहीं, जर्मनी की थ्रोअर क्रिसटिन ने 66.86 मीटर थ्रो के साथ रजत पदक पर कब्जा जमाया. क्यूबा की चक्का फेंक खिलाड़ी परेज यैमे 65.72 मीटर का थ्रो फेंकर तीसरे स्थान प्राप्त करने का गौरव हासिल किया. उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा.
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छोटे से गांव से शुरू हुआ सफर
कमलप्रीत पंजाब में मुख़्तसर साहब ज़िले के एक छोटे से गांव की रहने वाली है. उसने जब खेलना शुरु किया तो वहाँ खेल के नाम कुछ ख़ास नहीं था. बहुत मुश्किल से वह स्पोर्ट्स सेंटर पहुंचीं थी. जहां से उन्होंने खेलना शुरू किया. अच्छी कद काठी वाली कमलप्रीत ने डिस्कस में हाथ आज़माया और उसे सफलता भी मिलने लगी.
लेकिन इससे भी पहले कमलप्रीत को एक और चुनौती को पार करना पड़ा. क्योकि आज भी गांव-कस्बों में लड़कियों को खेलों में भेजने को लेकर थोड़ा संकोच रहता है.कमलप्रीत के मां-बाप यही चाहते थे कि बेटी कुछ पढ़ लिख जाए और तो उसकी शादी कर दें. लेकिन कमलप्रीत अपनी जिद पर अड़ी रहीं और परिवार को मना लिया. 2019 में कमलजीत अपने इरादों पर खरी उतरीं और डिस्कस थ्रो में कई साल पुराना राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया. हालांकि कमलप्रीत के परिवार वाले चाहते थे कि उनकी बेटी खेलों में खूब आगे बढे. लेकिन वे उसे वह सुविधा नहीं दे पाते थे जिसकी कमलप्रीत को जरुरत थी. पर कमलप्रीत अपने हौसले से काफी बुलंद थी. वह बचपन से ही चुस्त दुरुस्त थी. यही वजह रही कि खेलों में उसकी पकड़ बनती चली गयी. अन्य खेलों में भी उसकी रुचि शुरू से ही रही है. एक समय था कि वह किक्रेटर बनना चाहती थी. किक्रेट के मैदान अब भी उसके आकर्षण का केन्द्र है.
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