Lagatar Desk : 2014 के आईसीएसई टॉपर रहे श्रेयस सुधामन (22) जब टेक्सास विश्वविद्यालय के कॉकरेल स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए गये, तो उन्होंने पाया कि स्कूल ने उन्हें कुछ जरूरी हुनर तो सिखाये ही नहीं है. उन्होंने कहा, मैं पाठ्यपुस्तकों की समस्याओं को तो आराम से हल कर लेता था लेकिन किसी अलग सोच के लिए मेरे पास कोई तैयारी नहीं थी. जब फर्स्ट इयर में मुझे एक टीम के साथ इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट करना पड़ा, तो मुझे अपने आइडियाज को स्पष्ट रूप से बता पाने में बहुत समस्या हुई. मेरे लिए अपने अमेरिकी सहपाठियों की तुलना में रिपोर्ट बनाना और निबंध लिखना बहुत कठिन था. मेरे अमेरिकी साथी सूचनाओं को व्यवस्थित करने और उसे स्पष्ट तरीके से प्रस्तुत करने के लिए अच्छे तरीके से प्रशिक्षित थे.
स्कूली शिक्षा आगे की राह लिए कोई तैयारी नहीं कराती
अपने हाई स्कूल पास होने के वर्षों बाद भी, सुधामन की तरह राष्ट्रीय बोर्ड के 86 टॉपरों में से अधिकांश कहते हैं कि इसमें कोई शक नहीं कि बोर्ड परीक्षा में उनके मार्क्स और रैंक ने तब उन्हें शुरुआती बढ़त जरूर दिलायी, लेकिन अब वे अतीत में जाकर सोचते हैं, तो उन्हें लगता है कि उनके स्कूली पाठ्यक्रम में और पढ़ाने के तरीके में कई खामियां थीं. कई टॉपर्स आज अपनी बोर्ड परीक्षा के रैंक को कमतर करके आंकते हैं, लेकिन लगभग सभी ने यह बात कही कि उनकी स्कूली शिक्षा ने उन्हें आगे की राह लिए कोई तैयारी नहीं करायी थी.
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कुछ को नहीं ,पूरी क्लास को बोलने दो
37 साल के पुष्पराज शुक्ला 1999 के आइसीएसइ टॉपर हैं और वर्तमान में सैन फ्रांसिस्को में माइक्रोसॉफ्ट में डेटा साइंस के पार्टनर डायरेक्टर हैं. शुक्ला का कहना है कि स्कूलों में पब्लिक स्पीकिंग और डिबेटिंग पर ज्यादा ध्यान देकर फर्क पैदा किया जा सकता है. शुक्ला, जो 2005 में आईआईटी-कानपुर से कंप्यूटर साइंस में बीटेक करने के बाद अमेरिका चले गये, ने कहा कि चुनिंदा बच्चों को ही नहीं, पूरी कक्षा को पब्लिक स्पीकिंग में हिस्सा लेने दिया जाना चाहिए. करियर में ऐसे हुनर उन चीजों के बजाय ज्यादा फर्क पैदा करते हैं, जिनपर हमारे स्कूलों में ज्यादा फोकस किया जाता है.
पुष्पराज शुक्ला
लगभग हर टॉपर ने यह ख्वाहिश जाहिर की कि उस वक्त कोई उन्हें स्कूल के बाद के शिक्षा के विकल्पों और ऋण कार्यक्रमों के बारे में बेहतर तरीके से बताता और कॉलेजों के चुनाव और करियर को लेकर उनकी मदद की होती. उनमें से कई ने कहा कि यदि वे अपनी वास्तविक रुचि के बारे में पहले जान पाते तो उन्हें पारंपरिक विषयों में पढ़ाई पूरी नहीं करनी पड़ती.
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काश किसी ने मुझे विकल्पों के बारे में बताया होता
2010 की आइसीएसई नेशनल टॉपर 26 साल की जानवी थोसानी के पास मुंबई के नरसी मूनजी कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स से बीकॉम की डिग्री है. वह आईआईएम-अहमदाबाद से एमबीए करने के बाद अब चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं. जानवी कहती हैं, मैंने CA इसलिए चुना क्योंकि मैं मेडिकल या इंजीनियरिंग नहीं करना चाहती थी. काश मुझे स्कूल में पता होता कि अर्थशास्त्र भी एक विकल्प हो सकता था. अतीत में देखते हुए वह कामना करती हैं कि काश तब किसी ने उसे अपने गृहनगर, मुंबई के बाहर अंडर ग्रेजुएट विकल्पों के बारे में अधिक जानकारी दी होती. जानवी बताती हैं, मेरे माता-पिता ने भी अपनी शिक्षा मुंबई में की थी, इसलिए उन्हें मुंबई से बाहर के विकल्पों की ज्यादा जानकारी नहीं थी. स्कूल में हमें केवल अपने शहर और आसपास के इंजीनियरिंग कॉलेजों के बारे में बताया गया था. अगर मुझे पता होता कि दिल्ली के कॉलेज कितने बेहतर थे, तो मैंने उसी हिसाब से तैयारी की होती.
टॉपर जानवी थोसानी
NEP छात्र-छात्राओं को बेतहर माहौल दे रहा है
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल कहते हैं कि नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) वही कर रहा है, जो इन टापर्स की जरूरत है और वह है भारत में एक बेहतर माहौल तैयार करना. ”पोखरियाल ने द इंडियन एक्सप्रेस को एक ईमेल के जवाब में कहा, NEP 2020 का उद्देश्य रटंत विद्या को हतोत्साहित करना, रचनात्मक सोच को बढ़ावा देना और साथ ही इन टॉपर्स को 21वीं सदी के कौशल से लैस करना है.
NEP स्कूली शिक्षा में सुधारों का अनूठा अवसर
CISCE के मुख्य कार्यकारी और सचिव गेरी अराथून कहते हैं, नया NEP स्कूली शिक्षा में परिवर्तन और सुधारों की शुरूआत करने का एक “अनूठा अवसर” है. अगर हमारे पिछले टॉपर्स को लगता है कि उनकी शिक्षा में अन्य व्यवसायों के लिए तैयार करने अथवा सामाजिक-भावनात्मक कौशल को सिखाने में कमी थी, तो हम उनके सभी सुझावों पर ध्यान देंगे और बदलाव करने के लिए एनईपी द्वारा प्रस्तुत अवसर का उपयोग करेंगे.