Ranchi:डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान निदेशक और उपनिदेशक के नहीं रहने की वजह से एक तरह से अनाथ है. करीब तीन महीने पहले निदेशक का कार्यकाल खत्म हो गया था. उसी समय उपनिदेशक चिंटु दोराई का भी स्थानांतरण हो गया था. नये निदेशक के नियुक्ति की फाइल ढाई महीने से कल्याण मंत्री चंपई सोरेन के पास पड़ी हुई है. टीआरआई झारखंड जैसे अनुसूचित क्षेत्रों वाले आदिवासी बहुल राज्यों के लिए बेहद महत्वपूर्ण संस्थान है.
एक टेबल से दूसरे टेबल घूम रही फाइल
करीब तीन महीने पहले निदेशक रणेंद्र का कार्यकाल समाप्त हो गया था. इसके बाद नये निदेशक के लिए कल्याण विभाग की ओर से संचिका आगे बढ़ायी गयी थी. पूर्व के निदेशक रणेंद्र को अवधि विस्तार देने के लिए सरकार ने मन बना लिया था. इस प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सहमति भी मिल चुकी है. मगर, इसके बावजूद यह फाइल कल्याण विभाग में एक टेबल से दूसरे टेबल तक ही अभी घूम रही है.
डायरेक्टर की नियुक्ति नहीं होने की वजह से यहां खाली पड़े डिप्टी डायरेक्टरों के पदों पर भी नियक्ति नहीं हो पा रही है. टीआरआई में डिप्टी डायरेक्टर के चार पद सृजित हैं. मगर, वर्तमान में ये सभी पद खाली हैं. लिहाजा, इन दिनों टीआरआई में किसी प्रकार के काम नहीं हो रहे हैं.
संस्थान खुलता तो जरूर है, मगर यहां कोई काम नहीं
अधिकारियों के नहीं रहने के चलते टीआरआई में कोई काम नहीं है. संस्थान का ताला प्रतिदिन अवश्य खुलता है मगर, यह एक तरह से फक्शनलेस हो गया है. तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी रोजाना संस्थान आते हैं. कुछ घंटों तक यहां समय गुजारते हैं. अपराह्न तीन साढ़े तीन बजे के बाद यहां ताला लगा दिया जाता है. कुछ कर्मचारी यहां ताश खेलते हुए भी अक्सर दिखायी पड़ जाते हैं.
इसे भी पढ़ें-पेगासस मामले में कोई सबूत नहीं, सिर्फ आरोपों के बूते खड़ा किया जा रहा हंगामा- बाबूलाल
विभागीय मंत्री के पास लंबित है फाइल
विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार नये निदेशक की नियुक्ति के लिए बढ़ायी गयी फाइल कल्याण मंत्री चंपई सोरेन के पास विचारणीय है. विभागीय सूत्रों का कहना है कि कुछ अधिकारी यह नहीं चाहते हैं क रणेंद्र को अवधि विस्तार दिया जाये. मंत्री ने एक बार फाइल पर अपना अनुमोदन देने का मन भी बना लिया था, मगर कुछ अधिकारियों की वजह से यह नहीं हो पाया. अभी हाल में ही जामताड़ा से रांची स्थानांतरित की गयी महिला अधिकारी ने डिप्टी डायरेक्टर पद के लिए विभागीय प्रमुख को लिखित तौर पर भी दिया है.
इस बाबत मुख्य सचिव सुखदेव सिंह ने सचिव से भी बात की थी. मगर, विभागीय सचिव ने यह तर्क दिया कि जब संस्थान में निदेशक का पद ही रिक्त है, ऐसे में डिप्टी डायरेक्टर के पद पर नियुक्ति का कोई तात्पर्य नहीं रह जाता है. टीआरआई के डिफंक्ड रहने के चलते आदिवासियों के कल्याण से संबंधित कई योजनाओं पर काम नहीं हो पा रहा है. आदिवासियों के विकास के लिए टीआरआई में कई शोध कार्यक्रम अनवरत चलते रहते हैं. लिहाजा, फक्शनलेस होने के चलते आदिवासी बहुल झारखंड राज्य में टीआरआई सफेद हाथी वर्तमान समय में बनी हुई है.
इसे भी पढ़ें-दुनिया को दिखाना है कि जापान सुरक्षित तरीके से ओलंपिक की मेजबानी कर सकता है : सुगा