Hazaribagh: आईसेक्ट विश्वविद्यालय के तरबा-खरबा स्थित मुख्य कैंपस सभागार में विश्वविद्यालय के आईक्यूएसी के तत्वावधान में समाज शास्त्र विभाग की ओर से सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आईसीएसएसआर) द्वारा प्रायोजित “फॉरेस्टिंग एंटरप्रेन्योरशिप प्रिजर्विंग ट्राइबल कल्चर : करेंट आउटलुक, चैलेंजेज़ एंड प्रोस्पेक्ट्स इन कॉन्टेक्स्ट ऑफ आत्मनिर्भर भारत” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का शुभारंभ शुक्रवार को कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आरएनटीयू भोपाल की प्राध्यापिका डॉ रचना चतुर्वेदी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची की डॉ दुमनी मय मुर्मू, बतौर मुख्य वक्ता विभावि भुगोल विभागाध्यक्ष डॉ सरोज कुमार सिंह, आईसेक्ट विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ पीके नायक, कुलसचिव डॉ मुनीष गोविंद, डीन एडमिन डॉ एसआर रथ व वोकेशनल निदेशक डॉ बिनोद कुमार के हाथों दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया.
कार्यक्रम की सराहना करते हुए मुख्य अतिथि डॉ रचना चतुर्वेदी ने कहा कि पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति को आत्मसात करने की भावना आधुनिकता की पहचान नहीं है बल्कि अपनी जड़ों से जुड़कर प्रकृति को नुकसान पहुंचाये बिना विकास के पथ पर अग्रसर होना असल में आधुनिकता की पहचान है. उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय के उत्थान के बारे में सोंचा जाना जरूरी है पर उनके अस्तित्व को छेड़े बिना इस कार्य को पूरा किया जाना जरूरी है. विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ पीके नायक ने कहा कि हमें आदिवासी समुदाय की संस्कृति बदलकर तथाकथित आधुनिक बनाने की दिशा में कदम ना उठाकर उनके नेचर को समझते हुए उनके अनुसार योजनाएं बनाए जाने और उसे धरातल पर उतारे जाने की आवश्यकता है. कुलसचिव डॉ मुनीष गोविंद ने कहा कि सही मायने में देखें तो आदिवासी समुदाय हमारी संस्कृति को बचाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि आज आदिवासी संस्कृति का संरक्षण करना ना केवल वर्तमान समय की मांग है बल्कि उसे अपनाने की भी जरूरत है.
मुख्य वक्ता विभावि भूगोल विभागाध्यक्ष डॉ सरोज कुमार सिंह ने कहा कि शहरों में विलासिता पूर्ण जीवन जी रहे तथाकथित आधुनिक लोगों का जीवन दवाइयों के सहारे आगे बढ़ रहा है जबकि आज भी आदिवासी समुदाय की दवाइयों पर निर्भरता बेहद कम है. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका डॉ दुमनी मय मुर्मू ने कहा कि वर्षों से आदिवासी समुदाय अपने स्वभाव से कई प्राकृतिक आपदाओं से मानव समुदाय को बचाते आए हैं. उन्होंने कहा कि हर समुदाय के लिए निरंतर विकास की आवश्यकता होती है. ऐसे में आदिवासी समुदाय के विकास के बारे में सोचना अच्छी बात है पर हम शहरों जैसी संस्कृति के लिए उन्हें बाध्य करें, यह अनुचित है. आईसेक्ट विश्वविद्यालय के डीन एडमिन डॉ एसआर व वोकेशनल निदेशक डॉ बिनोद कुमार ने भी आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए कई महत्वपूर्ण तथ्य रखे. मंच संचालन डॉ प्रीति व्यास व धन्यवाद ज्ञापन रितेश कुमार ने किया.
छह सत्र में पूर्ण होगा सेमिनार
दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार छः सत्र में पूर्ण किए जाएंगे। शुक्रवार को उद्घाटन सत्र के दौरान आईसेक्ट विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ पीके नायक ने मुख्य अतिथि समेत सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा बताते हुए इसके महत्व पर प्रकाश डाला। दूसरा सत्र पैनलिस्ट सत्र रहा, जहां जनजातीय समुदाय की संस्कृति संरक्षण के लिए चुनौतियां और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में उठाये जाने वाले कदम को लेकर विस्तृत चर्चा की गई। तकनीकी सत्र के रूप में आयोजित तीसरे सत्र के दौरान कई प्राध्यापकों व शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए और कई ने इसे लेकर अपने विचार भी रखे.
सेमिनार को सफल बनाने में इनका रहा योगदान
दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में पहले दिन के कार्यक्रम को सफल बनाने में कोर कमिटी के चेयरपर्सन डॉ बिनोद कुमार, डॉ एसआर रथ, डॉ रंजीत कुमार व शिव कुमार के अलावा अमित कुमार, डॉ बिनिता सिंह, डॉ पूनम चंद्रा, राजेश रंजन, माधवी मेहता, डॉ रोजीकांत, डॉ मनीषा सिंह, शुभा, रितेश लाल, रितेश कुमार, उदय रंजन, रविकांत, राहुल राजवार, संजय दांगी, डॉ अरविंद कुमार, मुकेश साव, हिमांशु चौधरी, सौरभ सरकार, अजय वर्णवाल, डॉ आरसी राणा, डॉ आलोक कुमार राय, आशा गुप्ता, नागेश्वरी कुमारी, राजेश कुमार, आदित्य कुमार, फरहीन सिद्दीकी, कोमल पल्लवी भेंगरा, मो शमीम अहमद, रोहित राणा सहित अन्य का महत्वपूर्ण योगदान रहा.
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