Jyoti Kumari
Ranchi: जगन्नाथपुर बस्ती और मौसीबाड़ी में 300 से भी अधिक परिवार हैं, जिनमें ज्यादातर ग्रामीण महिलाएं हड़िया बेचकर ही अपना घर-परिवार चलाती हैं. रोजगार का कोई और साधन नहीं है. एकमात्र यही काम उनकी आमदनी का जरिया है. ये महिलाएं रोजाना अपने घर से ही हड़िया बेच कर थोड़े-बहुत पैसे कमाती हैं. हां, बाजार के दिनों में कमाई थोड़ी बढ़ जाती है.
इसे भी पढ़ें:भारत में Corona के नये UK स्ट्रेन के 20 केस मिले, आंध्र प्रदेश हाई अलर्ट पर, पुणे में 109 की तलाश
बाजारों में लगते हैं हड़िया के स्टॉल
धुर्वा के शहीद मैदान में लगनेवाले गुरुवार और रविवार बाजार साथ ही मंगलवार और शुक्रवार के शालीमार बाजार में अक्सर भीड़ रहती है. पर इन बाजार की भीड़ का एक हिस्सा हड़िया-दारू का होता है. बाजार के दिनों में जगन्नाथपुर बस्ती और मौसीबाड़ी इलाके की ग्रामीण महिलाएं हड़िया-दारू की बिक्री करती हैं. जगन्नाथपुर में रहनेवाली बीना देवी बताती हैं कि वह शालीमार बाजार में हड़िया बेचने आती हैं. बाकी दिनों में वह छोटा-मोटा काम ढूंढती हैं. कभी काम मिलता है, तो कभी यूं ही घर पर खाली बैठना पड़ता है. वे सप्ताह में दो दिन शालीमार बाजार में वह हड़िया बेचकर 900-1000 रुपये तक कमाती हैं.
सरकारी योजनाओं की जानकारी तक नहीं
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार ने राज्य में फूलो झानो आशीर्वाद योजना और आजीविका संवर्धन हुनर अभियान (ASHA) जैसे कई कदम उठाये हैं, लेकिन गांवों और बस्तियों में बहुत से लोगों तक क इन योजनाओं की जानकारी नहीं पहुंच पायी है. मौसीबाड़ी में रहने वाली मुन्नी बताती हैं कि उन्हें सरकार की ऐसी योजनाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है. उसे जगन्नाथपुर और शालीमार बाजार में लगनेवाले हाट के दिनों का इंतजार रहता है, ताकि हड़िया बेच सके. बाकी दिनों में काम मिलना थोड़ा मुश्किल होता है. मुन्नी ने बताया कि वह मजदूरी की तुलना में हड़िया बेचकर ज्यादा पैसे कमा लेती है. एक हाट में वह 500 से 600 रुपये तक कमा लेती है.
सास बेचती है सिगरेट, तो बहू हड़िया की बिक्री
लगभग 60 वर्षीय शांति देवी हर बाजार के दिन सिगरेट, खैनी जैसे सामान बेचकर 200-250 रुपये तक कमा लेती है. उम्र बढ़ने और शारीरिक तकलीफों के कारण अब उससे मेहनत का काम नहीं होता. बाजार में उनकी बहू भी हड़िया बेचने आती है. सरकार की फूलो झानो योजना के बारे में उन्हें पता तो है, पर इसका लाभ उन तक पहुंचा नहीं है. उसकी बस्ती में हड़िया बनाना और बेचना ही एकमात्र काम है, जिससे कई लोगों का घर चलता है.
क्या है फूलो झानो योजना
फूलो झानो योजना के तहत हड़िया और देसी शराब के निर्माण और बिक्री से जुड़ी ग्रामीण महिलाओं को चिह्नित कर सम्मानजनक आजीविका के साधनों से जोड़ा जाना है. अब तक राज्य भर में इस पेशे से जुड़ी 16549 महिलाओं की पहचान की जा चुकी है, जिनमें से 7 हजार से अधिक महिलाओं को आजीविका के वैकल्पिक साधन उपलब्ध कराये गये हैं.
इसे भी पढ़ें:BiggBoss: सभी कंटेस्टेंट हुए नॉमिनेट, घरवालों पर बरपा रुबिना का कहर