Amresh Mishra
जाटों के साथ खाप व्यवस्था के अंतर्गत सारी 36 बिरादरियों और जातियों ने मुसलमानों सहित तीन कृषि काले कानून के खिलाफ और MSP पर ऐक्ट लाने के लिये. मोदी-शाह-अंबानी-अडानी-कंपनी राज की कलई खोलते हुए. आंदोलन जारी रखने के लिये “नून-लोटा“ कसम खाई. वो भी गाजे-बाजे व तुरही के साथ.
ये कसम हरियाणा, अपर द्वाब पश्चिमी उत्तर-प्रदेश की सांसकृतिक विषेशता है. इसमे एक लोटे में नमक डाल कल उसमे गंगाजल डाला जाता है. फिर गंगाजल और नमक के लोटे को उठा कर, किसी भी कार्य को पूरा करने के लिये कसम खायी जाती है.
“नून-लोटा’’ कसम आखिरी बार खाप पंचायतों ने 1857 में खायी थी. अंग्रेजों से अंतिम दम तक लड़ने के लिये.
इसी मुजफ्फरनगर में बालियान खाप, जिसका टिकैत परिवार है, ने ये कसम 1857 मे खायी थी. इतिहास गवाह है कि बालियान खाप की 36 बिरादरियों ने जम कर लड़ी. वो भी एक मुस्लिम, सिसौली के खैराती खान, के नेतृत्व में. इससे साबित होता है कि एक खास इलाके मे रहने वाले मुस्लिम जाट, गुज्जर, मेवाती और रांगर भी इन्हीं 36 बिरादरियों में आते थे और खाप का हिस्सा थे.
खाप कोई एक जाती की नहीं होती थी बल्कि area के आधार पर संगठित थी.
बड़ौत, मेरठ मे चौरासी देस की सलकलैन खाप, जिसमें तोमर जाट प्रमुख थे, ने यही कसम खाई. जिसके चलते, 1857 में बड़ौत की लड़ाई में अमर योद्धा बाबा शाहमल जाट तोमर हजारों लड़ाकों के साथ शहीद हुए. उसी तरह शामली की खाप का नेतृत्व करते, मौलाहरी जाटों के प्रमुख, मोहर सिंह जाट, शहीद हुए.
मथुरा के टप्पा राया खाप का नेतृत्व करते देवी सिंह जाट शहीद हुए. अलीगढ़ की खापों को एक सुर में पिरोते हुए, अमानी सिंह जाट शहीद हुए. हरियाणा में रोहतक-हिसार-जींद-सोनीपत-अंबाला-कुरुक्षेत्र की खापों के आह्वान पर दहिया, हूडा, सहरावत, अहलावत जाटों ने मुस्लिम रांगरों, भट्टियों और मेवातीयों के साथ मिलकर अनगिनत युद्ध लड़े.
2021 में इस परंपरा के दोहराये जाने का खास मतलब है. आज का किसान आंदोलन पारंपरिक कांग्रेसी या वाम या समाजवादी आंदोलन नहीं है.
बल्कि इसमें देसी आधुनिकता “धर्म-निरपेक्षता“ की जगह भाईचारा, revolution की जगह बगावत या क्रांति हावी है.
भाजपा नर्वस (nervous) है, क्योंकि ये आंदोलन उसके छद्म सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की पोल खोल रहा है. और उसके बरक्स, एक सच्चे, किसान-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को सामने ला रहा है.
इसी के चलते, भाजपा-RSS ने जो 2013 मुजफ्फरनगर दंगो से जाट-मुस्लिम एकता तोड़ी थी, वो फिर से हावी हो गयी है.
ये किसान राष्ट्रवाद, सीधे-सीधे, कॉरपोरेट और विश्व पूंजी के नेतृत्व मे जारी विकास के मॉडल को चुनौती दे रहा है. और “कृषि प्रधान या कृषि केंद्रित विकास“ के मॉडल को सामने रख रहा है. अब मध्य द्वाब, अवध और पूर्वांचल की किसान परंपराएं भी जोर मारेगी. कासगंज-कन्नौज-ईटावा इलाके में ब्राहमण, यादव और क्षत्रिय किसान विद्रोह कर चुके हैं.
अवध में अयोद्धा के समीप बाराबंकी-गोंडा-बहराईच बेल्ट में किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया है. आंदोलन हिंदी प्रदेश में, जहां से भारत के सभी प्रश्न हल होते हैं, प्रवेश कर चुका है.
तो क्या अब असली भारत करवट ले रहा है.
डिस्क्लेमरः लेखक राष्ट्रवादी किसान क्रांति दल (मंगल पांडे सेना) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और ये इनके निजी विचार हैं.
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