Kabul : अफगानिस्तान से अमेरिका अपने कदम धीरे-धीरे पीछे हटाने लगा है. पिछले 20 साल से अफगानिस्तान में अमेरिका तालिबान और अलकायदा से जंग लड़ रहा था. लेकिन अचानक शुक्रवार को अमेरिकी सेना ने बगराम एयरबेस को अलविदा कह दिया. बगराम एयरबेस हवाई अड्डे से ही तालिबान अक्सर हमला किया करता था. और यहीं से अमेरिका ने अपने कदम पीछे ले लिए हैं.
वहीं अमेरिका के इस कदम से चीन अपना बाजी मारने की फिराक में है. चीन की ये पूरी कोशिश है कि वो चाइना-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर बढ़ा दे और अमेरिका की जगह ले ले.
चीन की ये कोशिश अगर कामयाब हो जाती है तो भारत के लिए चिंता बढ़ाने की बात होगी.क्योंकि अफगानिस्तान में भारत ने अरबों डॉलर निवेश किया है. चिंता इसलिए भी है कि अफगानिस्तान जो इन दिनों युद्धग्रसित है, उसके प्राकृतिक संसाधनों पर चीन अपना कब्जा जमाना चाहता है. यही कारण है कि चीन करीब 62 अरब डॉलर की बेल्टा एंड रोज प्रोजेक्ट का हिस्सा कहे जाने वाले सीपीईसी का विस्तार इस देश में करना चाहता है. वहीं अफगानिस्तान के अधिकारी भी चीन के इस प्रोजेक्ट को देश में शुरू करने पर विचार कर रहे हैं. वहीं चीन का इसके पीछे मकसद ये है कि बेल्टर एंड रोड परियोजना के जरिए वो पूरी दुनिया को अपने देश के जोड़ ले. साथ ही इस प्रोजेक्ट के जरिए चीन कई देशों में भारी पैमाने पर निवेश भी कर रहा है.
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पेशावर से काबुल तक रोड बनाएगा चीन
पाकिस्तान को चीन बड़े पैमाने पर लोन दे रहा है, ताकि वो सड़क, रेलवे और ऊर्जा पाइपलाइन बिछान सके. जिससे स्थिती ये है कि कई देश बीआरआई की वजह से चीन के कर्ज के बोझ तले दबते जा रहे हैं. वहीं बेल्टव एंड रोड परियोजना को वर्ष 2049 तक पूरा करने का लक्ष्य चीन ने रखा है. साथ ही पाकिस्तान के पेशावर से अफगानिस्तान की राजधानी काबुल तक चीन सड़क का निर्माण करना चाह रहा है. इसके लिए चीन की ओर से अफगानिस्तान के अधिकारियों से बातचीत भी जारी है.
यदि चीन काबुल और पेशावर के बीच सड़क का निर्माण कर लेता है तो अफगानिस्ता न सीपीईसी का औपचारिक रूप से हिस्साे बन जाएगा. चीन भी ऐसा ही चाहता है, क्योंकि वो अपनी बीआरआई परियोजना को काबुल तक बढ़ाने के लिए बीते 5 साल से प्रयास कर रहा है. लेकिन अफगानिस्तान सरकार पर अमेरिका का दबाव थे, जिससे चीन की चाल कामयाब नहीं हो पा रही थी. लेकिन अब बगराम एयरबेस से अमेरिकी सेना के हटते ही अफगान सरकार खुलकर चीन का स्वागत अपने देश में करने जा रही है.
अफगान सरकार और चीन देख रहे अपना फायदा
सूत्रों के हवाले से खबर है, अफगानिस्ता न के राष्ट्रकपति अशरफ गनी को एक सहयोगी की जरूरत है. सहयोगी भी ऐसा जो संसाधन, ताकत और क्षमता के आधार गनी सरकार को सैन्यं सहायता प्रदान कर सके. वहीं इस संबंध में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजिन ने स्वीचकारा था कि उनका देश अफगानिस्ताधन के साथ बातचीत कर रहा है. वहीं अफगानिस्तानन को ये उम्मीाद है कि वह बीआरआई प्रोजेक्टग के जरिए एशिया व अफ्रीका के 60 देशों के नेटवर्क से जुड़ पायेगा. इसमें चीन का भी फायदा है. इससे वो पश्चिम एशिया, मध्य एशिया और यूरोप तक अपनी पकड़ मजबूत कर पायेगा. इसके अलावा अफगानिस्ता न के प्राकृतिक संसाधनों पर भी अपना वर्चस्व कायम कर सकेगा.
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