By SHRI RAM SHAW
New Delhi, 24 Nov: ‘इंटरनेशल फ्रेशवाटर डॉल्फ़िन डे’ को लेकर इनलैंड फिशरीज सोसाइटी ऑफ इंडिया, आईसीएआर, सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट, नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा, प्रोफेशनल फिशरीज ग्रेजुएट्स फोरम और इनलैंड फिशरीज सोसाइटी ऑफ इंडिया ने मिलकर एक वेबिनार का आयोजन किया. कार्यक्रम में डॉल्फ़िन संरक्षण की दिशा में बेहतरीन कार्य कर रहे भारत, नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश के विशेषज्ञों समेत विभिन्न संस्थानों के वरिष्ठ अधिकारियों ने शिरकत की.
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आईसीएआर-सीआईएफआरआई के निदेशक बी के दास ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तत्वावधान में शुरू किए गए गंगा उत्सव और नदी बचाओ कार्यक्रम जैसी पहल पर जानकारी साझा करते हुए बताया कि इन कार्यक्रमों में आमजन को जोड़कर न सिर्फ डॉल्फिन संरक्षण के कार्य को गति दी जा रही है, बल्कि नदियों के कायाकल्प और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी बेहतरीन कार्य किए जा रहे हैं. जनभागीदारी के महत्व के बारे में बात करते हुए CIFE-मुंबई के पूर्व कुलपति, दिलीप कुमार ने कहा कि आमतौर पर जनता ही समस्या का प्रमुख कारण होती है, ऐसे में यह जरूरी है कि उन्हें समस्या के समाधान में भी मुख्य रूप से शामिल किया जाए.
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सहभागिता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए आईसीएआर के उपमहानिदेशक (मत्स्य विज्ञान) डॉ जेके जेना ने कहा कि आज न केवल डॉल्फिन बल्कि कई ऐसे जलीय जानवर हैं, जिनपर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है. यह स्थिति लगभग सभी दक्षिण एशियाई देशों में एक समान ही है. इसलिए आज के इस महत्वपूर्ण समय में यह जरूरी है कि इन प्रजातियों के अस्तित्व को बचाने के लिए सभी देश एक साथ एक मंच पर आएँ. वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, देहरादून के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डॉ बीसी चौधरी ने वैज्ञानिकों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान के साथ ही सहयोग के महत्व पर ज़ोर दिया.
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने ताजे पानी के डॉल्फ़िन की विशिष्टता पर बात करते हुए बताया कि इस किस्म की डॉल्फ़िन एशियाई नदियों के अलावा कुछ दक्षिण अमेरिकी नदियों में ही पाई जाती हैं. उन्होने बताया कि डॉल्फिन संरक्षण की दिशा में बेहतर परिणाम हासिल करने के लिए हमें मुख्य रूप से 4 क्षेत्रों जैसे तकनीकी-वैज्ञानिक पहलू, इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण, सामुदायिक भागीदारी और नीतिगत हस्तक्षेप पर काम करने की ज़रूरत है. इसके अलाव, डॉल्फिन संरक्षण के लिए भारत-बांग्लादेश-नेपाल और म्यांमार के बीच इंटर गवर्नमेंटल नेटवर्किंग का निर्माण करना बहुत आवश्यक है. प्रो. चौधरी ने संरक्षण पर करते हुए बताया कि हमें 6E (इकोलॉजिकल हेल्थ ऑफ रिवर, इकोलॉजिकल फ़्लो, एक्सप्लोइटेशन ऑफ रिसोर्स रिव्यू, इंपथी & एटिट्यूड ऑफ कम्यूनिटी, एडुकेशन एंड एक्स्चेंज ऑफ साइंटिफिक इन्फॉर्मेशन) पर खास ध्यान देने की ज़रूरत है. उन्होंने बताया कि नमामि गंगे मिशन विजन के अनुरूप शानदार तरीके से अपने कार्य पूर्ण कर रहा है.
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कार्यक्रम में मीठे पानी की डॉल्फिन के संरक्षण पर कई केस स्टडी प्रस्तुत की गईं, जिनमें भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ रूचि बोदाला ने गंगा नदी के गांगेय डॉल्फ़िन पर गंगा नदी केस स्टडी प्रस्तुत की. वहीं वेटलैंड्स इंटरनेशनल साउथ एशिया के उपाध्यक्ष डॉ अजीत पटनायक द्वारा इरावदी डॉल्फिन पर चिलिका केस स्टडी, वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर इंडिया के निदेशक, सुरेश बाबू द्वारा सिंधु नदी डॉल्फिन पर ब्यास नदी की केस स्टडी, डीप सी फिश लिमिटेड और एएसएपी हेल्दी फूड लिमिटेड के निदेशक डॉ सैयद इस्तियाक ने बांग्लादेश की केस स्टडी, नेपाल के मत्स्य विभाग के पूर्व निदेशक डॉ माधव पांथा द्वारा नेपाल की नदियों में डॉल्फिन का केस स्टडी, म्यांमार के डॉ ह्तुन थीन ने इरावाडी डॉल्फिन की केस स्टडी और एनएमसीजी के सलाहकार डॉ संदीप बेहड़ा ने गंगा नदी की डॉल्फिन की केस स्टडी प्रस्तुत की.
कार्यक्रम का अंत बारह सूत्री सुझावों के साथ संपन्न हुआ, जिसमें प्रदूषण से हाइड्रोलॉजिकल बहाली, पर्यटन के लिए डॉल्फ़िन वॉच प्रोटोकॉल, अभयारण्यों का निर्माण या संरक्षण भंडार शामिल हैं. विशेषज्ञों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि नदी डॉल्फ़िन के संरक्षण के लिए भारत, नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश के बीच ट्रांसबाउंड्री कमीशन विकसित करने की आवश्यकता है.
इसके अलावा, कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने भारत में गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना बेसिन में गांगेय डॉल्फिन, सुंदरबन, इरिशा में इरवाड्डी डॉल्फिन और ब्यास (पंजाब) में सिंधु घाटी डॉल्फिन की मौजूदगी पर व्यापक चर्चा हुई. बताया गया कि इन सभी डॉल्फिन का संरक्षण माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा घोषित परियोजना के तहत किया जा रहा है. एनएमसीजी के निदेशक मिश्रा ने कहा कि आने वाले दिनों में यह सम्मेलन डॉल्फिन परियोजना को विकसित करने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.