Anant
जब राज्यसभा में किसान बिल के खिलाफ सांसद हंगामा करते हुए उप सभापति के आसन तक पहुंच गए थे और बिल फाडकर फेंक दिया था. तब इस कृत्य के लिए कुछ सांसदों को निलंबित कर दिया गया था. उस समय इस बिल के संबंध में कुछ साफ-साफ जानकारी नहीं थी. लेकिन जब किसान इतने लंबे समय से सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं, तब उसकी गहराई लोगों को समझ में आ रहा है.
वैसे आज भी किसान और सरकार के तर्क पर आम आदमी समझ नहीं पा रहा है कि सही कौन है. जो सरकार के पक्षकार हैं, वे किसान को गलत कह रहे हैं. वहीं जो सरकार के विपक्ष में हैं, वे किसान को सही कर रहे हैं. इसलिए साधारण तरीके से किसान बिल क्या है, इसे समझने के लिए यहां तीनों बिल को सरल भाषा में समझ सकते हैं.
क्या है तीन कृषि कानून जिसे निरस्त करने की मांग की जा रही है
पहला कृषि कानून है -:
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य(संवर्धन एवं सुविधा प्रदान करना) विधेयक 2020
इस कानून को लागू होने से किसान स्वतंत्र हो जायेंगे और अपने फसल को कहीं भी बेंच सकते हैं. सरकार का कहना है कि इस बिल के लागू होने के बाद भी एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोडयूस मार्केटिंग एक्ट) खत्म नहीं होगा.
दूसरा कानून हैः- कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून 2020. इसे आसान शब्दों में कॉट्रेक्ट फार्मिंग या अनुबंध खेती कह सकते हैं. इस कानून के लागू होने से किसान किसी भी कंपनी से करार कर कोई भी फसल उगा सकती हैं और उसे कंपनी को बेच सकती हैं.
तीसरा कानून हैः- आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 यह पुराने कानून का संशोधन किया गया है. इस बिल में आप जैसे दलहन, (दालें) तिलहन, (जिनसे खाद्य तेल निकलता है) आलू, प्याज, आदि जिनका भण्डारण कर सकते थे. पहले ऐसा नहीं था.
किसान का विरोध क्या है
पहला कानून में किसान का तर्क है कि इस बिल के लागू हो जाने से बड़ी-बडी कंपनियां निजी मंडियों की स्थापना करेंगी. जिन पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होगा. हर गांव में वे अपने एजेंट नियुक्त कर देंगे. शुरूआत में वे अधिक दाम पर किसानों से फसल खरीद लेंगे. एक दो साल के बाद जो पहले से स्थापित सरकार के नियंत्रण की मंडियां हैं, वहां फसल बेचने के लिए कोई नहीं आएगा तो वे मंडियां स्वतः बंद हो जाएंगी.जब मंडियां बंद हो जाएंगी तो वही कंपनी के लोग किसानों से न्यूनतम दाम पर फसल बेचने के लिए विवश करेंगे.
दूसरे बिल पर किसान का तर्क
किसान का कहना है कि मान लिया जाये कि किसी कंपनी से किसान का करार हुआ कि आप सिर्फ आलू ही उगाएंगे. किसान ने करार के अनुसार, आलू तैयार किया. इस बार आलू के दाम बाजार में 40 रूपये किलो है. लेकिन कंपनी के साथ आपका करार 30 रूपये किलो का हुआ है. कंपनी आपका आलू करार के अनुसार उतना ही दाम पर खरीद लिया. आपको तसल्ली हुआ कि चलो बिना झंझट के आपके आलू एक साथ बिक गए.
अगले साल उसी आलू के दाम बाजार में 15 रूपये किलो है. लेकिन आप तो आश्वस्त है कि कंपनी के साथ आपका करार 30 रूपये किलो का हुआ है. जब आप कंपनी के पास बेचने के लिए गए तो कंपनी कहता है कि आपके आलू की क्वालिटी ठीक नहीं है. ऐसा कीजिए कि दो सौ क्विंटल में पचास किलो ही अच्छी क्वालिटी की है, उसे ही खरीदेंगे. शेष आलू आप जहां चाहें बेच सकते हैं. किसान कंपनी के करार के अनुसार केस नहीं कर सकता है. एसडीएम के पास अपील कर सकता है. किसान का मानना है कि वह खेती करेगा कि कंपनी के साथ केस लड़ेगा.
तीसरे कानून में किसान का तर्कः- इस कानून के अनुसार, अब कोई भी जितना चाहे भंडारण कर सकता है. किसानों को डर है, कि जब बड़ी-बड़ी कंपनियां मार्केट में आयेंगी तो वे आधुनिक तरीके से भंडारण करेंगी और किसानों को
सस्ते दाम पर अनाज खरीद कर स्टॉक कर लेंगी.
जब बाजार में अनाज की कमी होगी तो वे मंहगे दाम में बेचा करेगी. फिल्मों में दिखाया जाता रहा है, कि कैसे
गांव के चतुर लाला अनाज को गोदाम में रखता है और जब कीमत बढ़ जाती है तो धीरे-धीरे बाजार में बेचता है. दूसरा जो देश के गरीब लोगों को मुफ्त में या एक या दो रूपये में चावल, गेहूं मुहैया कराया जा रहा है आने वाले
दिनों में संकट का सामना करना पड़ सकता है. ऐसा किसानों का मानना है इसलिए वे सड़क पर हैं.