Manish Singh
आप पचास प्रतिशत से कम नहीं चाहते तो ठीक है, ले लीजिये. देखिये, मैं तो आपको 75% देना चाहता हूं, लेकिन ये जो हमारे दुश्मन हैं न, वो नहीं चाहते. मुझे उनको हराने में मदद करो, मैं तो तुम्हे 90% भी दे दूंगा. शून्य का 90% जॉब्स है नहीं. जहां जॉब्स होते थे, वो सरकारी पद खत्म कर दिये गए. कंपनियां, जो सरकारी थी, बेच दी गयी. जो बची हैं, वो भी बेच दिये जायेंगे. बैंक जो सरकारी थे, मर्ज कर दिये गए. आधे कर्मचारी डबल काम कर रहे हैं. बाकी का आधा जनता कर रही है.
जी हां, अपने खर्च पर, अपने मोबाइल-कंप्यूटर से आप खुद बैठकर सेल्फ सर्विस जो लेते हैं (आनलाइन बैंकिंग, आनलाइन परचेज, आनलाइन टैक्स पे…) एक कर्मचारी का खर्च बचाते हैं. ऑटोमेशन की ओर जा चुके संस्थानों में नौकरी कहां है. अब यह सरकारी संस्थान हो या प्राईवेट. आरक्षण की घंटी लेकर हिलाते रहिये. जब कभी 5 पद निकलेंगे, ढाई पद आपकी जाति को मिलेंगे. उसी जाति के ढाई करोड़ लोग, अगली वैकेंसी का इंतजार करेंगे.
ओबीसी रिजर्वेशन पर संसद एकमत है. ऊपर से सारे राजनैतिक दल मिलकर जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं. जानो-मानो ऐसा होगा, कि जातिगत जनगणना के बाद हर आदमी को खोज खोज कर, जाति पूछकर, जबरन नौकरी दी जाएगी. रातों-रात सामाजिक न्याय हो जाएगा.
समझ नहीं आता देश का युवा इतना मूर्ख क्यों है. तीस चालीस साल पुराने घिसे पिटे राजनीतिक लटके झटके आज भी इन्हें आकर्षित कैसे कर लेते हैं? क्या ये पूर्वजन्म के कर्मो का फल है कि बैठे-बैठे ये दो चार जुमलों से ताजिंदगी बेवकूफ बनने को अभिशप्त है?
वैकेंसी निकालने की बात हो, तो सुनवाई नहीं है. लोग हैशटैग चलाते हैं, पिटीशन करते हैं, सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगती. एक परीक्षा का आयोजन, परिणाम और नियुक्ति में पांच साल निकल रहे हैं.
लेकिन ऐन चुनाव के पहले वो वह झूठमूठ के 1000-500 पद निकालेगी. आपको उसमें 25% या 50% के आरक्षण के सवाल पर आपको, लड़वा देगी. जात पांत की गोलबंदी में एक चुनाव निकल जायेगा.
आप मेरिट प्रेमी हों या सामाजिक न्याय के समर्थक. बकैती छोड़िये, जॉब्स मांगिये. इकॉनमी मांगिये. निर्भीक व्यापार हो सके, ऐसी नीतियां मांगिये. जरूरत होगी, तो खोज-खोज कर जॉब्स दिये जाऐंगे. नहीं होगी, तो 100% रिजर्वेशन का बिल पास कराकर भी आप चातक पक्षी की तरह आस लगाए बैठे रहेंगे.
और सच्चाई ये है कि इस सरकार को ये सब करने का कोई इरादा नहीं. ये ठगबाजी और डिस्ट्रैक्शन में निष्णात समूह की सरकार है. इसके रहते आम भारतीय सुकून और शांति का जीवन व्यतीत नहीं कर सकता. नौकरी और समृद्धि तो बड़े दूर के सपने हैं.
होश में आइए, पूरी तस्वीर समझने की कोशिश तो कीजिए. और शून्य जॉब्स में 50% हिस्सेदारी मिलने की अफीम से बचिए.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.