Shubham Kishor
Ranchi : झारखंड में खेल को गंभीरता से लेने और उसके लिए खेल नीति तैयार करने वाली सरकार का एक स्याह पक्ष भी है. उस पर खिलाड़ियों के साथ भेदभाव करने का आरोप है. यह आरोप झारखंड के दिव्यांग (पैरा सिटिंग थ्रो बॉल) टीम ने लगाया है. जिसका कहना है कि सरकार हम लोगों के साथ वैसा वर्ताव नहीं कर रही, जो आम खिलाड़ियों के साथ की जाती है. पदक जीतने के बाद भी हमारे मामले में सरकार नजर नहीं आती है.
सिल्वर मेडल जीत कर झारखंड का सम्मान बढ़ाया
आमतौर पर खिलाड़ी जब पदक जीत कर आते हैं, तो सारा महकमा तारीफों के पुल बांधने में लग जाता है. विभाग फोटो खींचाकर इसे अपनी उपलब्धियों में शामिल कर लेता है. सरकार भी पीठ थपथपाने से पीछे नहीं हटती है. लेकिन ऐसा सम्मान पैरा एथलीटों को नहीं मिलता है. मालूम हो कि दिव्यांग (पैरा सिटिंग थ्रो बॉल) टीम के खिलाड़ी आपस में चंदा कर प्रतियोगिता में शामिल होने तमिलनाडु गए. वहां प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल जीत कर झारखंड का सम्मान भी बढ़ाया, फिर भी खिलाड़ियों के लौटने पर न उनका स्वागत हुआ और न ही उनके घर लौटने की व्यवस्था की गई. रांची लौट कर अपने गंतव्य तक जाने के लिए सभी खिलाड़ियों को दोबारा चंदा करना पड़ा.
खिलाड़ी 10-20 रुपये मिलाकर ऑटो से राजभवन पहुंचे
तमिलनाडु के कोयम्बतूर में आयोजित नेशनल पैरा सिटिंग थ्रो बॉल एवं पारा सिटिंग बॉलीबॉल प्रतियोगिता में झारखंड के पुरुष और महिला वर्ग के खिलाड़ियों ने भाग लिया. अफसोस की बात यह है कि झारखंड का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी 12 खिलाड़ी आपस में ही चंदा कर तमिलनाडु गए. वहां पैरा सिटिंग थ्रो बॉल स्पर्धा में रनर अप का खिताब अपने नाम किया और झारखंड का मान बढ़ाया. लेकिन विडंबना देखिए वापस रांची पहुंचे के बाद सरकार की ओर से उनके स्वागत में कोई नहीं पहुंचा. रांची आने तक सभी खिलाड़ियों के पास पैसे भी खत्म हो चुके थे, सभी खिलाड़ी 10-20 रुपये मिलाकर ऑटो से राजभवन पहुंचे और वहां धरना में शामिल हो गए. सरकार और सिस्टम के खिलाफ जमकर नारे लगाये. इस समय सभी खिलाड़ी राजभवन के पास अनिश्चितकालीन धरना पर बैठे हैं.
महिला टीम की खिलाड़ी : प्रतिमा तिर्की कैप्टन, अनीता तिर्की, महिमा उरांव, पुष्पा मिंज, तारामणि लकड़ा, असुंता लकड़ा, रोजनी कोडियार,
पुरुष टीम के खिलाड़ी : सनोज महतो कैप्टन, चंदन लोहारा, भोला लकड़ा, बगिश त्रिपाठी, विशाल नायक, पवन लकड़ा.
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