Faisal Anurag
’’सलीम तुझे मरने नहीं देगा और हम अनारकली तुझे जीने नहीं देंगे’’ मुगल ए आजम में जिल्ले इलाही अकबर का यह डायलॉग राजशाही की बर्बर निरंकुश बयान है. लेकिन जिस तरह बंगाल का चुनाव एक बड़े राजनीतिक जंग में बदल रहा है. उसमें लोकतांत्रिक मूल्यों के हनन के संदर्भ में प्रासंगिक हो जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धन्यवाद प्रस्ताव के जबाव में जिस तरह के उदाहरण और शब्दावली का प्रयोग बंगाल और आंदोलनकारियों के संदर्भ में किया. उसकी अनुगूंज लोकसभा की बहस में सुनायी दी. खासकर तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा का भाषण. बंगाल चुनाव से पैदा हो रही राजनीतिक तल्खी ने इस भाषण को अहम बना दिया है. सत्ता पक्ष में महुआ मोइत्रा के भाषण ने खलबली पैदा कर दिया. नरेंद्र मोदी सरकार पर अब तक इतने तीखे अंदाज में संसद में कोई और भाषण नहीं दिया गया है. हालांकि महुआ मोइत्रा के भाषण के कुछ अंश को लोकसभा की कार्रवाई से हटा दिया गया है और उनपर विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने की तैयारी की जा रही है.
महुआ मोइत्रा ने ट्वीट कर कहा है कि यदि भारत के सबसे अंधेरे समय में सच बोलने के लिए विशेषाधिकार प्रस्ताव लाया जाता है तो यह मेरे लिए प्रिवलेज ही होगा. आखिर महुआ मोइत्रा ने ऐसा क्या कहा कि सत्ता पक्ष बौखला गया है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई का नामोल्लेख करते उन पर आरोप लगाए. हालांकि आरोपों को लोकसभा की कार्यवाही से हटा दिया गया है. लेकिन उनके इस कथन पर भारी प्रतिक्रिया हुई है.
अपने भाषण में उन्होंने राष्ट्रपति के गांव का भी उल्लेख किया, जहां एमएसपी नहीं मिलता है. सरकारी पक्ष ने इसे संसद की मान्य परंपराओं का हवाला देकर कार्रवाई से हटाने की मांग की. यही नहीं महुआ मोइत्रा के ’’फायरी स्पीच’’ से नरेंद्र मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए लोकतंत्र विरोधी बताया.
उन्होंने अपने भाषण में अमेरिकी लेखक के हवाले से फांसीवाद की चर्चा की और उसे भारत के संदर्भ में व्याख्यायित किया. दरअसल इस भाषण से खलबली मचने का एक बड़ा कारण तो लोकतंत्र संबंधी अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के विचारों का उल्लेख भी रहा और आज के दौर को एक अंधकारमय तानाशाही का बता दिया.
दरअसल बंगाल की राजनीति दिन ब दिन तल्ख होती जा रही है. भाजपा के नेता भी ममता बनर्जी पर तीखे हमले कर रहे हैं. भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तो बंगाल की संस्कृति के लिए मममा बनर्जी को खतरनाक बताया है. भाजपा इस बात से परेशान है कि उसके बाहरी पार्टी होने के संदर्भ को ममता बनर्जी चुनावी मुद्दा बनाने में कामयाब हो रही है.
ममता बनर्जी ने तो भाजपा को लेकर यहां तक कह दिया कि यह गुजरात के दो नेताओं की पार्टी भर है. बंगाल में चुनावों का इतिहास हमेशा से तल्ख रहा है. लेकिन इस बार तो तमाम लोकतांत्रिक परंपराओं को पानी भरना पड़ रहा है.
मुगल ए आजम के डायलॉग का सहारा लेकर कहा जा सकता है कि लोकतंत्र वह अनारकली है, जिसके लिए मरने और जीने का खतरा पैदा हो गया है. भाजपा वैसे तो आक्रामक चुनाव की रणनीति पर ही 2014 से चल रही है. लेकिन बंगाल में तो हालात आक्रामकता से आगे बढ़ता नजर आ रहा है. जैसे-जैसे चुनाव के दिन नजदीक आते जा रहे हैं, बंगाल में राजनीतिक तनाव चरम पर जाता नजर आ रहा है.
बंगाल में केवल ममता बनाम भाजपा ही टकराव नहीं है. एक तीसरा खेमा तो वामफ्रंट और कांग्रेस गठबंधन का भी है. लेकिन जिस तरह का परसेप्शन निर्मित हुआ है. उसमें इस तीसरे पक्ष की जमीनी हकीकत को नजरअंदाज कर दिया गया है. भाजपा की रणनीति शुरू से ही रही है कि वह चुनावी जंग में एक ताकतवर पक्ष बने. उसकी यह रणनीति 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में कारगर नहीं हुई थी और उसे बुरी हार का सामना करना पड़ा था.
इस हार को 2017 में नीतीश कुमार को अपने पक्ष में लाकर भाजपा ने हार को धूमिल करने का प्रयास किया. पूर्वी भारत में बिहार के बाद वह बंगाल और ओड़िशा उसकी निगाह में है. दोनों राज्यों में 2019 के लोकसभा चुनाव में उसने अपनी ताकत को पूरी तरह झोंक दिया था. इस बार बंगाल वह हर हाल में जीतना चाहती है. महुआ मोइत्रा तृणमूल की एक ऐसी सांसद हैं, जिन्होंने पहले ही भाषण में लोकसभा में खलबली पैदा कर दिया था. महुआ के भाषणों की विशेषता यही है कि वह दुनिया भर के अद्यतन विचारों को समेटता है.
भाजपा बंगाल के चुनाव को ही ध्यान में रखकर महुआ मोइत्रा पर हमला कर रही है. इसका एक बड़ा कारण तो यही है कि ममता बनर्जी के सबसे विश्वस्त सहयोगियों में महुआ मोइत्रा एक ऐसी बुद्धिजीवी संस्कृतिक छवि रखती हैं, जिसकी काट भाजपा के पास बंगाल में अभी तक नहीं है. राजनीतिक तौर पर जिल्ले इलाही की तंगदिली और सलीम के विद्रोही होने और अनारकली की मासूमियत के प्रतीकों से बंगाल का चुनाव रूबरू हो रहा है. लोकसभा में महुआ बनाम भाजपा की तल्खी इसी का नतीजा है.