Faisal Anurag
भारत के सेलिब्रिटीज के एक तबके की नींद अचानक खुली है. वे आपे से बाहर आ गए हैं. बड़ी से बड़ी आपदा और संकट में जिनकी खामोशी की दीवार नहीं टूटती वे उत्तेजना में आकर भारत के विदेश मंत्रालय से सृजित हैशटैग का सहारा ले रहे हैं. रिहाना,थनबर्ग और हैरिस के ट्वीट ने कम से कम खेल और सिनेमा जगत के इन लोगों को जगाया तो है. वे तब भी नहीं जागे जब किसान दिल्ली की चार सरहदों पर 1.1 डिग्री के तापमान में सर्दी का सामना कर रहे थे या फिर जब किसानों ने धरना स्थल पर ही आत्महत्या किया. 151 किसानों की मौत इस आंदोलन के दौरान हुई है. लेकिन एक भी ट्वीट खेल या सिनेमा जगत के इन लोगों ने नहीं किया.
भारत में सेलिब्रिटीज बन सम्मान और धन कमाना ही लक्ष्य बन गया है. फुटबॉल का विश्व कप जीतने के बाद जब ब्राजील के खिलाड़ी रोमारियो से पूछा गया कि इस जीत पर उनकी क्या प्रतिक्रिया है. उनका जबाव था: हमारे देश के लोग भूख और गरीबी के शिकार हैं. वे बहुत मुसीबत झेल रहे हैं. यदि हमारी जीत उन्हें थोड़ी राहत दे सकेगी, तो हमें और हमारे टीम के साथियों को खुशी होगी. क्या कभी भारत के किसी क्रिकेट स्टार या 100 करोड़ के क्लब के किसी फिल्म कलाकार से ऐसा कभी सुना गया है.
आमतौर पर सेलिब्रिटी बनकर एक ऐसी सत्ता की चकाचौंध के घेरे में फंस जाते हैं, जिसमें सच का सामना करने का साहस कम ही होता है. यदि किसी ने सच का साथ दिया तो उसके खिलाफ वास्तविक सत्ता की एजेंसियां जांच करने आ जाती हैं. नागरिकता कानून के विरोध में जिन कलाकारों ने सक्रिय विरोध दिखाया था, उनमें कई को जांच के घेरे में लिया गया.
अचरज की बात है इस बार सचिन हों या अक्षय कुमार सब के न केवल हैशटैग एक हैं, बल्कि भाषा भी कमोवेश एक ही है. भारत की संप्रभुता की बात तमाम कलाकार और खिलाड़ी कर रहे हैं. तो क्या एक साथ एक ही तरह की सोच इनके दिमाग में आयी या फिर उसकर प्रेरणा कहीं और से मिली. बॉलीवुड हो या खेल जगत कुछ सालों से केंद्र सरकार के हर नीति और कदम के साथ खड़ा हो जाता है. उन नीतियों के साथ भी जिन्हें लेकर भारत के आमलोग सवाल उठाते हैं और प्रतिरोध के लिए मैदान में उतरते हैं. न तो भारत के और न ही दुनिया के किसी अन्य देश के नागरिक किसी भी देश में लोकतंत्र पर हमले और नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठाते रहे हैं. जब वियतनाम की जुग चल रही थी और अमेरिका की सेना वहां जुल्म ढा रही थी, तब भारत में ही लाखों लोग मेरा नाम वियतनाम तेरा नाम वियतनाम के नारों के साथ प्रदर्शन कर रहे थे.
किसानों संगठनों ने उन समर्थनों का स्वगत किया है, जो उन्हें दुनिया के अन्य देशों से मिल रहा है. एक प्रेस नोट में कहा गया है: संयुक्त किसान मोर्चा चल रहे किसान आंदोलन के प्रति अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तित्वों के समर्थन को स्वीकार करता है. एक तरफ, यह गर्व की बात है कि दुनिया की प्रख्यात हस्तियां किसानों के प्रति संवेदनशीलता प्रकट कर रही हैं. वहीं दूसरी ओर, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत सरकार किसानों के दर्द को समझ नहीं रही है और कुछ लोग शांतिपूर्ण किसानों को आतंकवादी भी कह रहे हैं.
सवाल यह नहीं होना चाहिए कि किसने समर्थन दिया. चर्चा तो इस बात की होनी चाहिए कि रिहाना सहित जिन लोगों ने भी सवाल उठाए हैं उनका महत्व है या नहीं. ट्रोल कर न तो दुनिया या भारत से उठ रही किसान समर्थन की आवाजों को दबाया जा सकता है और न ही आंदोलन के विस्तार को रोका जा जा सकता है. राजस्थान,पश्चिमी उत्तर प्रदेश हरियाणा के गावों में जिस तरह के महापंचायतों में भीड़ उमड़ रही है, वह कुछ और ही संदेश दे रही है. जिंद और कंडेला की महापंचायतों में तो अभूतपूर्व भीड़ उमड़ी. चौधरी राकेश टिकैत ने इन महापंचायतों में कहा कि किसान तब तक घर वापस नहीं जाएंगें. जब तक तीनों कानून निरस्त नहीं होंगें. उन्होंने यह भी कहा कि किसान यदि कानून वापसी के साथ सत्ता वापसी की मांग कर देंगे तो क्या होगा. टिकैत की इन बातों के गहरे अर्थ हैं.
टिकैत ने यह भी कहा कि किसान तो दिल्ली पुलिस के द्वारा लगाए गए नुकीले कांटों पर चल कर कामयाबी हासिल करेंगे. जब किसानों के लिए जलापूर्ति बंद कर दी गयी है. ऐसा तो युद्धकाल में युद्धबंदियों के साथ भी नहीं होता. हर युद्धबंदी के लिए कुछ अंतरराष्ट्रीय नियम हैं, जिनका पालन करना पड़ता है. लेकिन केंद्र और दिल्ली पुलिस की बाड़ेबंदी से पैदा हो रही मुसीबतों ने भी किसानों का हौसला तोड़ा नहीं है.
इस बीच अमेरिका की सरकार ने भी भारत के किसान आंदोलन के संदर्भ में बयान जारी किया है. अमेरिकी सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन लोकतंत्र की कसौटी है. हस्तियों के अलावे अमेरिकी सरकार की प्रतिक्रिया बता रही है कि विश्व जनमत किसानों के आंदोलन को पैनी नजर से देख रहा है.इसके पहले ब्रिटेन की संसद भी किसान आंदोलन पर चर्चा कर चुकी है और अनेक ब्रिटिश सांसदों ने किसानों के प्रति समर्थन जताया है. भारत के सरकार समर्थक सेलिब्रिटीज के लिए यह तो और भी परेशानी का सबब है.