Girish Malviya
कुछ महीने पहले हंगरी के 80 पत्रकारों ने जो वहां के न्यूज मीडिया में उच्च पदों पर बैठे हुए थे, एक साथ इस्तीफा दे दिया. “इंडेक्स” जो हंगरी का सबसे बड़ा मीडिया हाउस था, वहां एडिटर और रिपोर्टर्स की कुल संख्या 90 थी. और इनमें से 80 ने हमेशा के लिए उस मीडिया हाउस को छोड़ने का फैसला कर लिया. नौकरी छोड़ने से पहले एडिटोरियल बोर्ड ने इंडेक्स के वेबसाइट पर एक खुलापत्र भी प्रकाशित किया था. जिसमें कहा गया था कि हंगरी का यह एकलौता निष्पक्ष समाचार माध्यम था. पर अब यह ऐसा नहीं रहेगा क्योंकि यहाँ पर राजनैतिक दखलअंदाजी शुरू हो चुकी है. इसके बाद उनके पक्ष में बुडापेस्ट में हजारों लोगों ने सड़क पर उतरकर प्रदर्शन किया.
भारत के बड़े मीडिया हाउस में ऊंचे पदों पर बैठे पत्रकार हंगरी के पत्रकारों के जैसी हिम्मत क्यों नहीं दिखाते ?
भारत में भी अब सच्चे पत्रकारों पर हमले का नया दौर शुरू हो चुका है. अब जो पत्रकार सत्तासीन दल के निर्णयों से सहमति नहीं रख रहे, उनके खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं. अब उन पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही हो रही है. और जो मोदी सरकार के स्वर से स्वर मिला रहे हैं. उन्हें इनामों इकराम से नवाजा जा रहा है.
कल शनिवार की शाम सिंघु बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन को लेकर रिपोर्टिंग कर रहे दो युवा पत्रकार मनदीप पुनिया व धर्मेंद्र सिंह को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. धर्मेंद्र सिंह से बांड भरवाने के बाद पुलिस ने उसे छोड़ दिया है, लेकिन मनदीप को जेल भेज दिया गया है.
कुछ दिन पहले 26 जनवरी को एक प्रदर्शनकारी की मौत से जुड़ी घटना की रिपोर्टिंग करने, घटनाक्रम की जानकारी अपने निजी सोशल मीडिया हैंडल पर तथा अपने प्रकाशनों पर देने पर कुछ पत्रकारों को खासतौर पर निशाना बनाया गया. सांसद शशि थरूर, इंडिया टुडे के न्यूज एंकर राजदीप सरदेसाई, नेशनल हेराल्ड ग्रुप की वरिष्ठ संपादकीय सलाहकार मृणाल पांडेय, कौमी आवाज उर्दू समाचार पत्र के संपादक जफर आगा, कारवा पत्रिका के मुख्य संपादक प्रकाशक और मुद्रक परेशनाथ, कारवां पत्रिका के संपादक अनंतनाथ, कारवां पत्रिका के कार्यकारी संपादक विनोद के जोस के खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज किया गया.
आखिर एक पत्रकार क्या करता है? वह वही रिपोर्ट करता है, जो उसे प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा बताया जाता है. उसकी सूचना का प्राथमिक आधार वही होता है! अगर वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार करते रहे तो हो गयी रिपोर्टिंग ?
एडिटर्स गिल्ड ने इन 6 पत्रकारों के खिलाफ किये गये देशद्रोह के मुकदमों की कड़ी निंदा करते हुए जो कहा वह हमें ध्यान से समझना होगा. उसने कहा है कि “यह ध्यान रहे कि प्रदर्शन एवं कार्रवाई वाले दिन” घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों तथा पुलिस की ओर से अनेक सूचनाएं मिली. अत: पत्रकारों के लिए यह स्वाभाविक बात थी कि वे इन जानकारियों की रिपोर्ट करें. यह पत्रकारिता के स्थापित नियमों के अनुरूप ही था.
मनदीप पुनिया भी लगातार दो महीने से किसान आंदोलन को बेहद नजदीक से कवर कर रहे थे. आंदोलन को कमजोर करने के लिए हिंसा करने आये लोगों को वह लगातार बेनकाब कर रहे थे. इसलिए पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को इस सरकार में लगातार कुचला जा रहा है और हम यह तमाशा देखने को मजबूर हैं. क्योंकि पत्रकारो में भी बड़े पैमाने पर डिवाइडेशन हो गया है.
डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.
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