Faisal Anurag
बंगाल की राजनीति में नंदीग्राम एक बड़ा प्रतीक है. ममता बनर्जी नंदीग्राम को अपने लिए भाग्यशाली मानती है. नंद्रीग्राम में एक बड़ी जनसभा में उन्होंने कहा कि नंदीग्राम उनके लिए सौभाग्यशाली है. 2016 में विधानसभा का चुनाव अभियान यहीं से शुरू किया था. नंदीग्राम ही वह इलाका है, जहां वामफ्रंट के लंबे शासन का सूर्यास्त हुआ था. 2011 के चुनाव में ममता बनर्जी ने कांग्रेस और एसयूसीआई के साथ मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ा और कामयाब हुई.
इसकी पृष्ठभूमि नंदीग्राम के किसान आंदोलन ने ही तैयार किया था. ममता बनर्जी ने एक बार फिर किसानों के सवाल को 2021 के चुनाव में प्रमुखता से उठाने का फैसला किया है. नंदीग्राम की रैली से यह साफ है. भारतीय जनता पार्टी की रणनीति भी नंदीग्राम केंद्रित है. सुवेंदु अधिकारी को पार्टी में शामिल कर इस रणनीति को ही अंजाम देने की कोशिश की गयी है. लेकिन तीन कृषि कानून भाजपा के लिए बंगाल में भी फांस बनकर उभर रहा है.
बंगाल में उद्योगीकरण की नयी लहर लाने के वामफ्रंट का 2006 का फैसला ही उसके राजनीतिक पराभव का कारण बना. बुद्धदेव भट्टाचार्य ने इस नीति के तहत नंदीग्राम में ही एक इंडस्ट्रीयल जोन बनाने का फैसला किया था. किसानों की जमीन के अधिगहण के सवाल ने सिंगुर के बाद नंदीग्राम में एक बड़े आंदोलन को जन्म दिया. इस आंदोलन की शुरूआत तो माओवादियों ने की थी.
लेकिन जल्द ही तृणमूल कांग्रेस ने उसे अपने नियंत्रण में ले लिया. नंदीग्राम तीन महीने तक एक ऐसा मुक्त क्षेत्र बना रहा, जहां पुलिस प्रवेश नहीं कर सकती थी. लेकिन 14 लोगों के जनसंहार के बाद पूरा परिदृश्य बदल गया. सुवेंदु सेन इसी दौर में मिदनापुर के नेता बन कर उभरे. पूरबी मिदनापुर और पश्चिमी मिदनापुर के 34 विधानसभा सीटों से एक लहर उठी और 1977 के बाद से चली आ रही वामपंथी सरकार का पतन हो गया.
भाजपा इसी इतिहास को दुहराने के लिए नंदीग्राम के प्रतीक का इस्तेमाल अधिकारी के बहाने कर रही है. लेकिन ममता बनर्जी ने नंदीग्राम से ही चुनाव लड़ने का एलान कर पूरे संदर्भ को बदलने का प्रयास किया है. सुवेदु अधिकारी जिस दिन भाजपा में शामिल हो रहे थे, उनकी सभा में दस से प्रद्रह हजार लोग शामिल हुए थे.
बंगाल की मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस सभा की तुलना में ममता बनर्जी की सभा में उपस्थिती दो लाख से अधिक की भीड़ जुटी. मीडिया खबरों के अनुसार, मिदनापुर के तृणमूल कार्यकर्ताओं में कोई बड़ा बिखराव भी नहीं दिखा है.
किसानों के सवाल बंगाल की राजनीति को प्रभावित करते रहे हैं. 1977 में वामफ्रंट की जीत में भी किसानों की बड़ी भूमिका थी. बंगाल में ही नक्सलबाड़ी है. जहां के किसान आंदोलन ने एक नए तरह का विमर्श पैदा किया. ऑपरेशन बर्गा के नाम से हुए भूमि सुधारों ने बंगाल की राजनीति में 34 सालों तक वामफ्रंट के किले को दरकने नहीं दिया. लेकिन भूमिसुधारों से लाभान्वितों की दूसरी पीढ़ी के लोगों के सवाल जुदा थे और इसे वामफ्रंट ने ठीक से संबोधित नहीं किया. कॉरपारेट घरानों को उद्योग के लिए जमीन देने की रणनीति उसके लिए घातक साबित हुई.
इसका एक बड़ा कारण तो यही है कि 1977 के बाद जिन किसानों को जमीन के अधिकार हासिल हुए, वे किसी भी सूरत में जमीन से बंदखल होने को तैयार नहीं हैं. नए कृषि कानूनों का संदर्भ भी इससे जोड़कर देखा जा सकता है.
ममता बनर्जी भाजपा के खिलाफ इन्हीं कानूनों को हथियार बनाकर चुनावी जंग में उतरने जा रही है.
वैसे तो बंगाल में लडाई ममता बनाम नरेंद्र मोदी ही नहीं है. एक तीसरा खेमा लेफ्ट व कांग्रेस का भी है. इसे खारिज नहीं किया जा सकता. इसका एक बड़ा कारण तो यही है कि 2016 के बाद से लगातार लेफ्ट लोगों के बीच सक्रिय है. वैसे परसेप्शन बनाने की कोशिश की जा रही है कि लड़ाई को भाजपा बनाम तृणमूल ही दिखाया जाए. लेकिन राजनीतिक जानकार इसे एक भूल मान रहे हैं.
2019 के लोकसभा के चुनाव में भाजपा की दमदार उपस्थिति के पीछे लेफ्ट कांग्रेस के वोट प्रतिशत में खासा गिरावट था. लेकिन 2021 की कहानी 2019 जैसी ही होगी, यह बंगाल के जानकार नहीं मान रहे हैं. हालांकि भाजपा के महत्व को कोई भी नजरअंदाज नहीं कर रहा. लेकिन त्रिपुरा जैसे हालात की उम्मीद भी आसानी से नहीं की जा सकती है. मजबूत दिखते लेफ्टफ्रंट को त्रिपुरा में भाजपा के हाथों सत्ता गंवाना पड़ा था.
बंगाल की राजनीति में जिस तरह घुपैठियों के सवाल को भाजपा प्रमुखता दे रही है. उसे लेकर भी बंगाल मीडिया विभाजित राय दे रहा है. तृणमूल छोड़कर भाजपा में गए नेताओं के लिए भी यह सवाल उतना सहज स्वीकार्य होगा कहना मुश्किल है. बंगाल के जानकारों के अनुसार, 2021 के चुनाव में यदि किसानों के सवाल फिर से हावी होने की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता.
भाजपा मिदनापुर के 34 विधानसभा सीटों पर अधिकारी परिवार के भरोसे जीतना चाहती है. जबकि ममता बनर्जी की निगाह नंदीग्राम में चुनाव लड़कर बंगाल के उन 180 सीटों पर है. जिसमें किसान बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं.