Faisal Anurag
अमरजीत सिंह दूसरे व्यक्ति हैं जिन्होने किसानों की परेशानी से तंग आ कर आत्महत्या कर लिया है. इसके पहले सिख संत बाबा राम सिंह ने आत्महत्या कर ली थी. अमरजीत सिंह पंजाब के किसान हैं. उन्होने अपने सुसाइड नोट में लिखा है कि नरेंद्र मोदी जी किसान, मजदूर और आम आदमी की रोटी मत छीनये. इस नोट का उन्होने शीर्षक दिया है तानाशाह मोदी को पत्र. दोनों की आत्महत्याएं सामान्य घटना नहीं हैं. दोनों के राजनैतिक संदेश है. दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में नेताओं के लिए आत्महत्या करने की घटनाओं से यह बहुत भिन्न है. यह भक्ति नहीं बल्कि प्रतिरोध है और इस की आवाज को अनसुना करना आत्मघाती कदम है. महीने भर से ज्यादा हो गये किसान दिल्ली को चारों ओर के संपर्क रास्तों पर डटे हुए हैं. किसानों के सवाल पर एमडीए से राजस्थान के एक सांसद से अपनी पार्टी करो अलग कर लिया है और वे भी दिल्ली के रास्ते पर धरना दे रहे हैं. भारत सरकार के प्रचारयुद्ध के बावजूद किसानों का आंदोलन न केवल तेवर में बल्कि संख्या में भी बढता ही जा रहा है. पिछले माह भर से देश में पहली बार किसानों के सवाल और कृषि संकट के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा हो रही है. देश दुनिया के जाने माने बुद्धिजीवी भी किसानों के समर्थन में बाते कर रहे हैं.
केंद्र के पत्र के जबाव में किसानों ने केंद्र को ठोस एजेंडा और बातचीत की तारीख का प्रस्ताव भेजा है. इस पर केंद्र सरकार ने कोई साफ राय नहीं बतायी है. कहां जा सकता है कि केंद्र का रूख नजरअंदाज के मोड में है. किसानों ने बातचीत के लिए 29 दिसंबर की तारीख रखी है और चार सूत्री एजेंडा भी रखा है. सभी किसान संगठनों ने एक मत से यह प्रस्ताव केंद्र को भेजा है. कृषि मंत्री के मौखिक और कृषि सचिव के लिखित आमंत्रण के जवाब में किसानों का पत्र है. इस पत्र का संदेश साफ है. क्या किसानों के एजेंडा को केंद्र सरकार बातचीत का आधार मानेगी? नरेंद्र मोदी सहित केंद्र के तमाम मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के अब तक के रूख को देखते हुए कहा है कि शायद ही वह इन शर्तो पर बात करे. केंद्र को भेजे गए प्रस्ताव में किसानों ने चार पाइंट रखा है. किसानों का एजेंडा है बातचीत इस बात पर हो कि तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए क्या क्रियाविधि होगी. साथ ही खरीदारी के लिए न्यूनतम साझा मूल्य की गारंटी का कानून बने. तीसरा पाइंट है वायु गुणवत्ता आयोग के प्रस्तावों को रद्द किया जाये और चौथा पाइंट हो कि बिजली कानून के प्रपोजल को रद्द किया जाये.
मोदी सरकार बारबार कह रही है कि किसान भ्रमित हैं और कानूनों में कुछ संशोधन तो किये जा सकते हैं लेकिन उन्हें वापस नहीं लिया जायेगा. किसानों ने कहा है कि जब तक कानून रद्द नहीं होगी वे भी वापस नहीं जायेंगे. नरेंद्र मोदी सहित तमाम मंत्री एमएसपी के जारी रहने की बात तो दुहरा रहे हैं लेकिन केंद्र इसे ले कर किसी कानूनी प्रावधान के लिए अब तक तैयार नहीं है. इससे केंद्र की मंशा पर किसानों में सवाल उठना लाजमी ही है. आखिर केंद्र यदि एमएसपी जारी रखने करे तैयार है तो उसे कानूनी गारंटी देने के लिए तैयार क्यों नहीं दिख रही है. वास्तविकता तो यह है कि जिन आर्थिक सुधारों की बात मोदी सरकार कर रही है उसमें किसी भी तरह से ढील दिये जाने के पक्ष में वह नहीं है. एमएसपी का सवाल उतना सहज नहीं है जितना की भाषणों में कहा जा रहा है. तीनों कृषि कानून एक दूसरे के पूरक हैं और वे जिस आर्थिक सुधार की बुनियाद की बात कर रहे हैं उसमें एमएसपी एक बडी बाधा है. कृषि के क्षेत्र में कारपारेट का प्रवेश उसकी शतों के पर ही होता है न कि किसानों के कल्याण या लाभ के नजरिए से किसान आंदोलन के नेता इस खतरे को समझ रहे हैं और इसीलिए वे जोर दे रहे हैं कि सरकार न केवल स्वीमनाथन आयोग और कृषि आयोगों के सुझावों के अनुरूप किसानों के हितों की बात करे. बल्कि उन काननूों के पीछे छुपे भविष्य की आशंकाओं को हमेशा के लिए दूर करे.
केंद्र सरकार चाहती है कि किसान नेता कानूनों को लेकर सरकार के रूख से सहमत हों. इसीलिए बारबार कहा जा रहा है कि किसान भ्रम के शिकार हैं और विपक्ष उन्हें भ्रमित कर रहा है. किसानों ने आंदोलन से विपक्ष के तामा दलों को दूर ही रखा है. उनकी साफ कोशिश है कि यह पूरी तरह किसानों के नेतृत्व वाला किसान आंदोलन ही रहे. केंद्र की दुविधा यह है कि वह इस तथ्य को जानबूझ कर ही नजरअंदाज कर रही है. ऐसी स्थिति में बातचीत के होने या उससे किसी सार्थक राह निकलने की संभावना ही धूमिल हो रही है.