Satya Sharan Mishra
Ranchi : भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने झारखंड की 14 सीटों पर पार्टी का बेड़ा पार लगाने की जिम्मेदारी पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी के कंधे पर डाली है. बाबूलाल के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से ही झारखंड भाजपा में तेजी से स्थितियां बदल रही है. उनके सांगठनिक कौशल और उनके राजनीतिक अनुभव का असर दिखने लगा है. सबसे पहले उन्होंने कई गुट में बंटे प्रदेश भाजपा को एकजुट करने की कोशिश शुरू की है. इसके तहत उन्होंने अपने दो पुराने सहयोगियों केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और पूर्व सीएम रघुवर दास के साथ संबंधों को सुधारने की पहल शुरू कर दी है. जो तस्वीरें सामने आ रही है. उससे बाबूलाल मरांडी की इन दोनों नेताओं के साथ पैदा हुई सालों की दूरियां खत्म होती दिख रही है. उधर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश के साढ़े तीन साल के कार्यकाल में प्रवक्ताओं के बोलने पर लगे अघोषित बैन को भी खत्म कर दिया गया है. भाजपा ऑफिस से अब नियमित रूप से हर मुद्दे पर बयान जारी होने लगे हैं.
राजनीतिक परिस्थितियों के कारण एक-दूसरे से दूर होते गये तीनों नेता
झारखंड में भाजपा के तीन बड़े चेहरे हैं. इनमें बाबूलाल मरांडी के अलावा केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास शामिल हैं. बीते समय में कुछ ऐसी राजनीतिक परिस्थितियां पैदा हुई कि ये तीनों नेता एक-दूसरे से दूर होते चले गये. इससे भाजपा के अंदर बिखराव भी हुआ और चुनावों में भाजपा को नुकसान भी सहना पड़ा.
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2006 में टूटी राम-लक्ष्मण की जोड़ी
सबसे पहले 2006 में बाबूलाल और अर्जुन मुंडा के बीच दूरी बढ़ी थी. अर्जुन मुंडा उस वक्त मुख्यमंत्री थे. बाबूलाल मरांडी खुद को संगठन में उपेक्षित महूसस कर रहे थे. उन्होंने भाजपा से विद्रोह कर अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा बना ली. इसके साथ ही भाजपा में जनजातीय राजनीति के दो ध्रुव बन गये. प्रदीप यादव, रविंद्र राय, प्रवीण सिंह और दीपक प्रकाश जैसे नेता बाबूलाल के साथ चले गये. 2009 के विधानसभा चुनाव में झाविमो ने 25 सीटों पर चुनाव लड़ा. इनमें से 11 सीटें झाविमो जीत गयी. झाविमो से लड़ने वाले अधिकांश नेता भाजपा से आये हुए थे.
जब रघुवर ने बाबूलाल के 6 विधायक तोड़े, तब दोनों में बढ़ी दूरियां
2014 में बाबूलाल के साथ रघुवर दास की दूरियां बढ़नी शुरू हुई. बाबूलाल ने 2014 के विधानसभा चुनाव में झाविमो से 73 प्रत्याशी उतारे थे. उनमें से 6 ने चुनाव जीता था. चुनाव के बाद रघुवर दास ने झाविमो के 6 विधायकों को तोड़कर भाजपा में शामिल करा लिया. इसके बाद बाबूलाल और रघुवर के बीच 5 साल तक आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी रहा. इस बीच बाबूलाल ने राज्यसभा चुनाव में हॉर्स ट्रेडिंग मामले में रघुवर दास की ऑडियो सीडी का खुलासा किया. इसके बाद दोनों नेताओं की दूरियां और बढ़ गयी.
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मुंडा की नसीहतें और विरोधों ने बढ़ाई रघुवर से दूरी
2014 में मुख्यमंत्री बनने के बाद रघुवर दास और अर्जुन मुंडा में भी दूरी बढ़ी. अर्जुन मुंडा ने सरकार के कई फैसलों पर विरोध जताया और रघुवर दास को कई बार नसीहतें दी. इससे रघुवर मुंडा से चिढ़ गये थे. यह भी कहा जाता है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में जब सरयू राय का टिकट कटा और वे रघुवर दास के खिलाफ चुनाव लड़े, तब मुंडा गुट ने पर्दे के पीछे से सरयू राय की मदद की थी.
बाबूलाल ने गिले-शिकवे भूलकर बढ़ाया है दोस्ती का हाथ
बाबूलाल मरांडी को मालूम है कि संगठन में इन दोनों नेताओं की पकड़ मजबूत है. इन्हें साथ लिये बिना और सभी गुट को एक किये बिना 2024 में भाजपा का बेड़ा पार लगाना आसान नहीं होगा. यही वजह है कि उन्होंने पुराने-गिले शिकवे भुलाकर दोनों नेताओं की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है. 6 जुलाई को गुवाहाटी में भाजपा की बैठक के बाद बाबूलाल और रघुवर दास पूरी आत्मीयता से मिले. हंसते हुए एक दूसरे से हाथ मिलाया. इसके बाद 11 जुलाई को बाबूलाल ने दिल्ली में अर्जुन मुंडा से मुलाकात की और गले लगे. इन सभी नेताओं ने यह तस्वीर सोशल मीडिया पर भी डालकर “हम साथ-साथ हैं” का संदेश देने की कोशिश की है. यह तस्वीरें भाजपा कार्यकर्ताओं को भी सुखद एहसास करा रही है.
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