Rajnish Prasad
हमारे झारखंड में कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने जल,जंगल,जमीन प्राकृतिक संपदा मानवता के हितों के लिए अपनी पूरी जीवन समर्पित कर दी. उनमें से एक हैं दयामणि बरला. गुमला जिले के कामडारा प्रखंड के बरहरा गांव में जन्मी दयामणि बरला आज झारखंड में एक अलग पहचान रखती हैं. दयामणि बारला की जिंदगी उतार-चढ़ाव से भरी रही. दयामणि बरला की जन्म की तारीख उनके माता-पिता को मालूम नहीं है. सर्टिफिकेट में दर्ज तिथि के अनुसार, उनका जन्म 11 दिसंबर 1962 हुआ. दरअसल, दयामणि बरला जब दसवीं कक्षा में थीं तब उनके पास परीक्षा फॉर्म भरने का पैसा नहीं था और वह पैसे की जुगाड़ में लगी हुई थीं. उसी वक्त उनके एक शिक्षक ने जन्म की यह तिथि फॉर्म में भर दी.
साहूकारों ने धोखे से छिन ली पिता की जमीन
दयामणि बरला के पिता जूला बरला गांव में ही खेती करते थे, और अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. वहीं एक साहूकार ने उनके अंगूठे का निशान एक कोरे कागज पर ले लिया और उनकी सारी जमीन अपने नाम कर ली. जब मामला कोर्ट गया तो सबूत और गवाहों के अभाव में उनकी जमीन चली गई. केस की वजह से घर के सारे सामान बिक गए. गाय,भैंस, बकरी जिनसे इनकी जीवन चलती थी वह सारे बिक गए. आर्थिक तंगी होने लगी. तब उनके पिता और एक भाई दूसरी जगह काम करने लगे. वहीं एक भाई और इनकी माता रांची में आकर काम करने लगीं. मां घरों में काम किया करती थी और भाई कुली का काम करते थे. आठवीं कक्षा पास करने के बाद दयामणि बरला आगे की पढ़ाई के लिए अपनी मां और भाई के पास रांची चली आई. अपनी पढ़ाई के दौरान घरों में बर्तन धोने का काम किया करती थीं. काफी संघर्ष के बाद इन्होंने एमकॉम की पढ़ाई की. इसके बाद पत्रकारिता की शुरुआत की.
पढ़ाई पूरी होने के बाद दयामणि बरला ने एक संस्थान में नौकरी करने लगीं. लेकिन परिवार के साथ हुआ अत्याचार इनके भीतर कहीं ना कहीं उबल रहा था और इन्होंने नौकरी छोड़ 1996 में जनक पत्रिका में कार्य करने लगीं. 1997 में प्रभात खबर में स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर लिखना आरंभ किया. दयामणि बरला ने झारखंड के कई मुद्दों पर लिखा. इसी बीच प्रभात खबर के तत्कालीन संपादक हरिवंश ने इन्हें अस्थायी तौर पर प्रभात खबर में पत्रकारिता करने को कहा, बारला ने उन्हें मना कर दिया. फिर इन्हें हिंदुस्तान के संपादक हरि नारायण सिंह ने अस्थायी रूप से हिंदुस्तान के लिए लिखने को कहा. उन्हें भी दयामणि ने मना कर दिया. हालांकि कई अखबारों में स्वतंत्र रूप से झारखंड के मुद्दों को लिखा करती थी.
नौकरी छोड़ आई आंदोलन में
दयामणि बारला ने नौकरी छोड़ सबसे पहले 1995 में कोयल कारू आंदोलन में भाग लिया. फिर धीरे-धीरे इन्होंने झारखंड के कई अहम मुद्दों पर अपनी लड़ाई जारी रखी. दयामणि बरला ने आर्सेलर और मित्तल की नगरी में जमीन अधिग्रहण के खिलाफ मोर्चा खोला. जबरा डैम बनने में कई गांव की जमीन जा रही थी दयामणि बरला ने इसे भी पूरे जोर-शोर से आंदोलन का रूप दिया. दयामणि बरला को 3 माह तक जेल में भी रहना पड़ा.
दयामणि बारला द्वारा लिखी पुस्तकें
- विस्थापन का दर्द
- इंच जमीन नहीं देंगे
- दो दुनिया
- किसानों की जमीन की लूट किसके लिए part-1 और पार्ट 2
- स्वीट पाइजन
- झारखंड में धर्मांतरण का सच
- कॉरपोरेट खेती नहीं, परंपरागत खेती किसानी को सशक्त करना है
दयामणि बारला की उपलब्धियां
- काउंटर मीडिया अवार्ड
- चिंगारी अवार्ड
- इंडीजीनस कल्चरल सर्वाइवल अवार्ड