Dr. Mayank Murari
दीर्घायु जीवन हरेक व्यक्ति की आकांक्षा होती है, लेकिन चिरकाल तक युवा रहने की जिद ने मानव सभ्यता के विकास पर सवाल खड़ा कर दिया है, सिलिकॉन वैली के 47 वर्षीय ब्रायन जॉनसन खुद को 18 साल के युवा बनाने को तत्पर है. ऐसे में भारतीय सभ्यता के ययाति याद आते हैं, जिन्होंने भौतिक सुख के लिए अपने पुत्र का यौवन प्राप्त किया था. आज दीर्घायु जीवन पर दुनियाभर में रिसर्च चला रही है. इस पर 27 अरब डॉलर यानी दो हजार करोड़ से अधिक निवेश करने की संभावना है. इसके लिए पश्चिम में सिंगुलरिटी मूवमेंट यानी विशिष्टता आंदोलन चलाया जा रहा है. वहां लोगों का विश्वास है कि एक समय के बाद मनुष्य और मशीन एक हो जायेंगे. अमेजॉन, ओपन एआई और गूगल तथा अल्फाबेट के संस्थापक इस होड़ में शामिल हो गये हैं, तब सवाल है कि क्या व्यक्ति अमर हो सकता है.
अमरता की तलाश नया नहीं है. मानव की चिरंतन सुख और समृद्धि की ललक की यह पराकाष्ठा है. व्यक्ति अगर अमर हो गया तो इस सभ्यता का और समूचे जगत की स्वाभाविक गतिशीलता का क्या होगा?
जीन थेरेपी का प्रयोग कर कोई व्यक्ति डेढ़ या दौ सौ साल जीवित रह सकता है, लेकिन अमर होने की जिद में कहीं हम इस मानव सभ्यता को ही संकट में नहीं डाल रहे हैं. पृथ्वी पर पहले जो विनाश आया, उसका कारण डायनासोर थे, लेकिन भविष्य में विनाश की वजह मानव सभ्यता बनेगी. चिरयौवन का आकर्षण इतना ज्यादा है कि भारत भी इसमें पीछे नहीं है. भारत में एम्स के जेरियाट्रिकक डिपार्टमेंट ने “प्रोजेक्ट लॉन्गेविटी” शुरू किया है.
परिवर्तन स्वभाविक प्रक्रिया है. यूनानी दार्शनिकों ने कहा है कि प्रकृति में हो रहे सभी परिवर्तनों के पीछे एक अदृश्य कारण बना रहता है. ऐसी कोई चीज है, जिससे और जिसके कारण चीजें प्रकट होती हैं, पुनः वापस उसी में लौट जाती है. उस कोई चीज की खोज हजारों साल से जारी है. आज भी वैज्ञानिक उस ईश्वरीय पार्टिकिल को जानने में लगे हैं, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा है. उसी प्रकार यह अमरता की तलाश है. यूनानी कथाओं में भारतीय जीवन में अश्वत्थामा के अनवरत कष्ट और दुख का वर्णन है. शरीर अमर होगा, लेकिन उसमें स्थित आत्मा का क्या? उसको नूतन और नवीन बनाने का कोई तरीका विज्ञान के पास है? कदाचित नहीं!
मनुष्य की भौतिक इच्छाओं का अंत नहीं है. इस कारण उसकी चिरयौवन की लिप्सा भी खत्म नहीं होनेवाली है. ययाति को उसके पुत्र पुरु ने अपना यौवन दे दिया और अपने पिता का बुढ़ापा ले लिया. इसके बाद भी ययाति का यौवन का एक दिन अंत हुआ. भीष्म के पिता शांतनु का भी धीवर कन्या सत्यवती के प्रति ऐसा आकर्षण जागा कि उन्होंने अन्न-जल ग्रहण करना भी छोड़ दिया. अंततः पुत्र भीष्म को पिता के सुख की खातिर आजीवन ब्रह्मचर्य पालन का व्रत लेना पड़ा. कठोपनिषद में नचिकेता और यम का संवाद है. इसमें मृत्यु और जीवन पर चिंतन है. यक्ष-युधिष्ठिर संवाद में सबसे बड़ा आश्चर्य पर सवाल उठता है, तो युधिष्ठिर कहते हैं कि मृत्यु शाश्वत सत्य है. इसके बाद भी लोग अपनी अमरता की तलाश करते हैं. जब राम नहीं रहे, कृष्ण भी धरा को छोड़ चले गये. तब आम लोगों की क्या बिसात है. कुछ दिन पूर्व माइकल जैक्सन ने भी ब्रायन जॉनसन की तरह ही चिर यौवन रहने के लिए हरसंभव प्रयास किया. फिर भी इस धरती को छोड़कर जाना पड़ा.
ग्रीक साहित्य में सिसिफस की कहानी है, जिसने मृत्यु को कैद कर लिया था. परिणाम. व्यक्ति एक समय के बाद जरा-जीर्ण हुआ, चलना, खाना-पीना बंद, लेकिन मृत्यु नहीं आयी. पेड़ सूखे नहीं, फूल झड़े नहीं! नये पेड़ और फूल तथा फल का आना बंद हो गया. प्रकृति में हाहाकार हो गया. लोगों ने अमरता के अनंत जीवन की त्रासदी की अनुभूति कर ली थी. चहुंओर लोग हाथ उठाकर मृत्यु की मांग करने लगे. मृत्यु, मृत्यु! लोगों को एहसास हो गया मृत्यु की आवश्यकता और अनिवार्यता का. एक सार्थक और सफल जीवन के बाद विराम का. मृत्यु का. पुनः शक्ति से भरपूर नये जीवन की शुरुआत का. अनंत जीवन की यातना से अच्छी है जीवन की पूर्णता के बाद मृत्यु. देवराज जीयस की आज्ञा से एटीज ने पराक्रम दिखाया और सिसिफस को पराजित कर बंदीगृह में डाल दिया. राजा प्लूटो ने सजा दी.
हेडीज घाटी के नीचे पड़े विशाल संगमरमर के चट्टान को सिसिफस ठेल कर गिरि-शृंग के शीर्ष पर ले जायेगा. इसके बाद वह चट्टान पुनः नीचे फेंक दिया जायेगा और सिसिफस उसे शीर्ष पर लाने का क्रम करता रहेगा. ऐसा करते सिसिफस को बतीस हजार साल बीत गये. धरती पर अमरता लाने का अपराधी खुद अमर होने के बाद भी अर्थहीन दंड भोगने को अभिशप्त. यातना भोगते-भोगते पाषाण बन गया. कदाचित अश्वत्थामा की तरह. प्राकृतिक व्यवस्था को पलटने की कोशिश में सिसिफस भी विफल रहा और अश्वथामा भी. और दोनों अभिशप्त जीवन भोगने को लाचार. सिसिफस की चट्टान तृण विहीन है, तो मृत्यु भय को जीतने वाले महात्मा बुद्ध की सीख से इस धरती के मानव का जीवन हराभरा हो रहा है.
भारतीय चिंतन में मानव काया में अमरत्व को लेकर चिंतन किया गया है. व्यक्ति अपने कर्म और चरित्र से कैसे अमर हो. राम अमर हैं या देवत्व धारण किये हैं, तो उनका चरित्र है. ऐसे चरित्र इस धरती पर अनगिनत हैं, लेकिन हम काया में नहीं, शरीर में अमरता की तलाश कर रहे हैं. जीवन का अर्थ अनंनता या अमरता में नहीं है. पीड़ादायी शरीर के साथ अमर रहनेवाला अश्वत्थामा होने से अच्छा है कि घटोत्कच की तरह धर्म के लिए अपनी अनंत शक्ति को समर्पित कर दें. अमरता में जीवन की सार्थकता है तो वह अमरता हनुमान की होनी चाहिए. जो हर पल समाज के लिए खुद को प्रस्तुत करने को तत्पर रहे. संजीवनी बूटी वाले विशाल द्रोणाचल पहाड़ को हाथ पर उठाये रखने वाले हनुमान भी यातना भोग रहे है, लेकिन लोकोपकार के खातिर. उनका द्रोणाचल जीवन को अर्थ देनेवाले औषधियों से भरा-पूरा है.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
Leave a Reply