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समय निरंतर गतिशील है, उसके चलने की अपनी गति है. एक और वर्ष 2022 भी बीत गया. लेकिन बीतते हुए समय में कुछ लोग अपनी रचनात्मक गतिविधियों से समय की शिलाओं पर अपने हस्ताक्षर अंकित रहते हैं. हिंदी साहित्य की सेवा में निरत ऐसे ही रचनात्मक लोग की बड़ी संख्या झारखंड में भी है, जो हिंदी साहित्याकाश में इंद्रधनुषी छटा बिखेरते रहते हैं. जिन्होंने राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान लेखन के बल पर बनायी. गठन के 22 वर्ष बाद भी झारखंड में साहित्य अकादमी या उस जैसी किसी सरकारी संस्था का नहीं होना, यहां के साहित्यकारों के रचनात्मक विकास यात्रा में बाधक है. बावजूद इसके राज्य के साहित्यकार लगनशीलता के दम पर बड़ी उंचाइयों को छू रहे हैं. हिंदी साहित्य में निरंतर सार्थक हस्तक्षेप कर रहे हैं.
वरिष्ठ सृजन
राज्य में वैसे वरिष्ठ साहित्यकारों की भी बड़ी संख्या है जो उम्र की चुनौतियों को धता बताते हुए सतत सृजनशीलता में संलग्न हैं. इनमें ऋता शुक्ल, रविभूषण, विद्याभूषण, अशोक प्रियदर्शी, शांति सुमन, माया प्रसाद, हरेराम त्रिपाठी चेतन आदि का नाम महत्वपूर्ण है. सांस्कृतिक चेतना की अद्भुत शिल्पी एवं वरिष्ठ कथाकार ऋता शुक्ल का कथा संकलन “तुलसी दल गंगा जल”इसी वर्ष प्रकाशित हुआ. जनवादी तेवरों एवं प्रखर आलोचकीय दृष्टि के लिए सुपरिचित साहित्यकार विद्याभूषण का उपन्यास “न कोई मील ना कोई पत्थर” भी इसी वर्ष में प्रकाशित हुआ.
लब्ध प्रतिष्ठित आलोचक रविभूषण के आलोचना संबंधी लेख देश भर की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इस वर्ष भी हमें पढ़ने को मिले. उनके विचारोत्तेजक लेखों का संकलन “कहां आ गये हम वोट देते देते” इसी वर्ष प्रकाशित हुआ. कथाकार पंकज मित्र राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण एवं चर्चित कथाकार के रूप में पहचाने जाते हैं. उनका नवीनतम कथा संकलन “अच्छा आदमी” इस वर्ष प्रकाशित होकर आया, जिसकी व्यापक चर्चा साहित्य जगत में हुई. झारखंड की भावभूमि को लेखन का केंद्र बनाकर उसे राष्ट्रीय फलक पर ले जाने वाले कथाकार राकेश कुमार सिंह की तीन किताबें इस वर्ष प्रकाशित हुईं. पलामू के नायक नीलांबर पीतांबर के संघर्ष एवं बलिदान पर केंद्रित उपन्यास महासमर की सांझ, कथा संकलन “रूप नगर की रूप कथा” तथा संस्मरणों की पुस्तक “लो आज गुल्लक तोड़ता हूं”. महादेव टोप्पो, के लेखों का संग्रह “आदिवासी विश्व चेतना”भी इसी वर्ष आया.
झारखंड के हिस्से का सम्मान
इस वर्ष का ‘श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफ्को साहित्य सम्मान” जो हिन्दी साहित्य में बड़े पुरस्कारों में गिना जाता है. सुप्रसिद्ध कथाकार जयनंदन को देने की घोषणा की गयी. दो वर्ष पूर्व भी यह पुरस्कार झारखंड के सुप्रसिद्ध साहित्यकार रणेंद्र को प्रदान किया गया था. एक वर्ष के अंतराल पर दो बार एक बड़े पुरस्कार का झारखंड के हिस्से में आना प्रमाणित करता है कि यहां महत्वपूर्ण सृजन हो रहा है. रणेंद्र को इस वर्ष प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान देने की भी घोषणा की गयी.
सदन में साहित्यकार
हिंदी साहित्य के इतिहास में यह वर्ष इसलिए भी स्मरण किया जायेगा कि किसी साहित्यकार का राज्यसभा में मनोनीत होना तो पहले हुआ है. लेकिन किसी साहित्यकार का राज्य सभा में चुना जाना शायद पहली बार हुआ. कथाकार महुआ माजी झारखंड से राज्य सभा की सांसद चुनी गयीं. उनके राज्य सभा में चुने जाने से सूबे के साहित्यकारों के मन में यह आशा बलवती हुई है कि साहित्य अकादमी के स्थापना की चिर प्रतीक्षित मांग पूरी होगी.
यहां माटी की सोंधी गंध
झारखंड से बाहर रहकर सृजनरत साहित्यकार जिनकी रचनाओं में हमें अक्सर झारखंड धड़कता हुआ मिलता है, उनमें प्रियदर्शन का नाम महत्वपूर्ण है. उनका एक कविता संकलन “यह जो काया की माया है” एवं लेखों का एक संग्रह “भारत की घड़ी”इस वर्ष प्रकाशित हुए. इसके अतिरिक अनुराग अन्वेषी एवं राहुल राजेश महत्वपूर्ण नाम हैं जो स्मरण में आते हैं. इसी कड़ी में श्याम बिहारी श्यामल का नाम भी महत्वपूर्ण है, जिनकी पुस्तक “कंथा” बहु चर्चित हुई एवं जिन्हें इस वर्ष कई पुरस्कार भी मिले.
आधी आबादी की पताका
कविता विकास, रेणु मिश्र, नंदा पाण्डेय, गीता चौबे गूंज, सत्या शर्मा, नुपुर जायसवाल आदि सूबे की सक्रिय रचनाकार हैं. इस वर्ष विनीता परमार का कथा संकलन “तलछट की बेटियां, रश्मि शर्मा का संकलन बंद कोठारी, सारिका भूषण का एक कविता संकलन “मौन को मुखर होने दो”और जसिंता का कविता संकलन “ईश्वर और बाज़ार” प्रकाशित हुए. अनीता रश्मि का कविता संकलन “रास्ते बंद नहीं होते” एवं यात्रा वृतांत “एक मुट्ठी जलधर” भी आये. गीता चौबे गूँज की तीन किताबें आयीं. वीणा श्रीवास्तव, डॉली कुजारा टाक, सुजाता कुमारी, अर्पणा सिंह, मुक्ति शाहदेव आदि भी रचनात्मक रूप से निरंतर सक्रिय दिखीं.
इनकी भी मौजूदगी
इस वर्ष विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में जिन्हें पढ़ा उनमें शिरोमणि महतो, नीलोत्पल रमेश, सुशील कुमार, अशोक सिंह, अनवर शमीम, अनल अनलहातू अनिल किशोर सहाय, प्रकाश देवकुलिश, अमरेन्द्र सुमन, राजेश पाठक, हिमकर श्याम, चंद्रिका ठाकुर, मुकुंद रविदास, विनय सौरभ आदि प्रमुख हैं. कमलेश का कहानी संकलन “पत्थलगड़ी और अन्य कहानियां, प्रणव प्रियदर्शी का कविता संकलन “अछूत नहीं हूं मैं” और महेश केशरी का कविता संकलन “पश्चिम दिशा का लंबा इंतजार”और रामचंद्र ओझा का उपन्यास “विषहरिया भी इसी वर्ष प्रकाशित हुआ. इसके अतिरिक्त प्रवीण परिमल का कविता संकलन “जंगल से लौटकर” एवं उनके मगही कविताओं का संकलन “नरहन्नी, अजय यतीश का कविता संकलन “मुक्ति के लिए, ललन तिवारी की प्रतिनिधि कहानियाँ, गोपाल प्रसाद की सूर्पनखा, चांद मुंगेरी की “तलाश सूरज की”और झारखण्ड केन्द्रित पुस्तकों में विनय कुमार पाण्डेय की पुस्तक “झारखंड के वीर शहीद” एवं संजय कृष्ण की “झारखंड के 50 क्रांतिकारी” इस वर्ष प्रकाशित महत्वपूर्ण कृतियां हैं. मयंक मुरारी के आध्यात्मिक विषयक लेख वर्ष भर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे. उनके लेखों का संकलन “पुरुषोत्तम की पदयात्रा” एवं कविता संकलन “ओ मेरे जीवन के शाश्वत साथी” इसी वर्ष आए.
जमशेदपुर में सृजन
जमशेदपुर साहित्यिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र है. इस वर्ष यहां के सक्रिय साहित्यकारों में रागिनी भूषण, माधवी उपाध्याय, नरेश अग्रवाल, वसंत जमशेदपुरी, अंशुमन भगत, कुमार मनीष, डॉ संध्या सिन्हा, डॉ अनीता शर्मा, वीणा पांडे ‘भारती ‘, निवेदिता श्रीवास्तव आदि का नामोल्लेख महत्वपूर्ण है. अगर साहित्य से जुड़ी संस्थाओं की बात करें तो झारखंड में छोटी बड़ी कई संस्थाएं सक्रिय हैं . इस क्रम में सिंहभूम हिन्दी साहित्य समेलन जमशेदपुर का नाम लेना जरूरी है जो साहित्य के उन्नयन में महती भूमिका निभा रहा है. इस संस्था ने बच्चों को हिन्दी साहित्य से जोड़ने के लिए कार्यक्रमों का आयोजन किया एवं नियमित रूप से साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन किया. इस शृंखला में स्वभावतः अन्य कई लोग होंगे. लेकिन इन पंक्तियों के लेखक और लेख दोनों की अपनी सीमा है, परंतु इससे किसी का काम कम महत्वपूर्ण नहीं हो जाता है. जो भी व्यक्ति सृजनशील है वह महत्वपूर्ण है.