जमशेदपुर की सिख गुटबाजी में होता रहा है सीजीपीसी में उलटफेर
मुखे हुए मुखर, कहा- सीजीपीसी की बागडोर में मंटू व भगवान को छोड़ तीनों चेहरे विवादित
Jamshedpur : सेंट्रल गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की कुर्सी ही सिखों में खींचतान की मुख्य वजह है, जबकि यहां कुछ है नहीं. सिर्फ दो प्रकाश पर्व. भले ही अधीनस्थ कोल्हान के 34 गुरुद्वारे हों. नौजवान सभा या सिख स्त्री सत्संग सभा. सभी अपना काम करती हैं. आखिरकार सीजीपीसी की प्रधानगी पर ही बवंडर होता है. गुरुद्वारा कमेटियां केवल वोट बैंक मानी जाती हैं. क्योंकि जहां जिस गुट का प्रधान, सीजीपीसी की कुर्सी उसकी. इसके लिए सीजीपीसी में हमेशा उलटफेर होता रहा है.
गुटबाजी में बढ़ते गए फासले
सिखों में राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले शैलेन्द्र की प्रधानगी में सीजीपीसी चर्चा में आई. अच्छे काम विदेश तक गूंजे. वे तीन बार सर्वसम्मति से प्रधान बने. 2010 में साफ सुथरी छवि से मशहूर इंदरजीत ने प्रवेश किया. पाला उनका भारी रहा. 2017 में फिर शेलेन्द्र की चाणक्य नीति काम आई. लेकिन इस बीच मुखे का या तो काम नहीं बोला या फिर उनका वचन. सब अलग हो गए. फिलहाल, गुटबाजी मुखे को कुर्सी से उतारने पर हावी है. कहा जा सकता है कि मुखे पूरी तरह से अलग-थलग पड़े हुए हैं.
तो क्या रोमी को शैलेन्द्र करेंगे समर्थन
सीजीपीसी की वर्तमान बागडोर में तख्त पटना साहिब का हस्तक्षेप होता रहा है. शैलेन्द्र के उपाध्यक्ष रहने पर भी इंद्रजीत खेमे को भी नोटिस आए हैं, तब मुखे के समर्थक शैलेन्द्र सिंह थे. सभा के तत्कालीन प्रधान रोमी के विरोधी. क्या आज वे उन्हें समर्थन करेंगे. इसपर कई कमेटियों की नजर है. सब जानते हैं कि शैलेंद्र पर जब इंजरजीत गुट के सुरजीत, रोमी व अन्य हावी पड़े थे तो अपनी चाणक्य नीति का इस्तेमाल करते हुए मुखे को समाज की राजनीति में आगे बढ़ाया था.
तीन को बताया समाज का दोषी
मंगलवार की बयानबाजी पर खुद मुखे साफ कह रहे हैं कि पांच सदस्यीय कमेटी में साकची के मंटू और मानगो के भगवान को छोड़कर तीनों सदस्य विवादों में हैं. शैलेन्द्र पर इंद्रजीत कमेटी ने गबन का केस किया था. खुशीपुर टिनप्लेट गुरुद्वारा के रोमी सजायाफ्ता हैं. सभा का हिसाब भी लंबित है.
छात्रावास कैंटीन भी कुर्सी वाले की
सीजीपीसी के अधीन संचालित अल्पसंख्यक छात्रावास की कैंटीन पर अब तक कुर्सी वाले का कब्जा रहा है. शेलेन्द्र के समय राजा, इंद्रजीत के कार्यकाल में जोगी और अब मुखे के रिश्तेदार उसे संचालित कर रहे हैं. आगामी चुनाव में एक दावेदार इस गाढ़ी कमाई को सीजीपीसी के खाते में जोड़ने की चुनावी घोषणा दबी जुबान में कर चुके हैं, लेकिन यह चुनाव की बात है. आज सीजीपीसी में कुर्सी को लेकर किसकी गुटबाजी चलेगी ये देखने वाली बात है.