Sourav Shukla
Ranchi: पिछले तीन साल से हम लोग मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री आवास तक दौड़ कर थक चुके हैं. अब तो मांडर से रांची आने का किराया भी नहीं जुटा पाती हूं. पति पहले से ही बीमार हैं. दो छोटे-छोटे बच्चे हैं. जिसके निवाले के लिए पड़ोसियों के कर्ज तले दब गयी हूं. ये बात कहते-कहते शीला की आंखें डबडबा जाती हैं. कहती हैं कि इस बरसात में सीएम आवास के बाहर एक बार फिर से उम्मीद लेकर आयी हूं. शायद हमलोगों को वापस नौकरी मिल जाए तो हमारी माली हालत बदल जाएगी. दरअसल, रांची सदर अस्पताल समेत जिले के सभी पीएचसी-सीएचसी में काम करने वाले 155 सुरक्षाकर्मियों को तत्कालीन रघवुर दास के कर्यकाल में काम से हटा दिया गया था. इनकी जगह पर अस्पताल की सुरक्षा की जिम्मेदारी होम गार्ड के जवानों के हाथों में सौंप दी गयी है, और आज तक सभी लोग वापस काम की मांग को लेकर दर-दर भटकने को मजबूर हैं.
क्या है मामला
आठ साल तक रांची जिले के सभी सामुदायिक स्वास्थ केंद्र और सदर अस्पताल में प्राइवेट एजेंसी के माध्यम से काम करने वाले सुरक्षाकर्मियों को हटा दिया गया है. इन्हें महज 6400 रुपये प्रति माह भुगतान किया जाता था. काम से हटाये जाने के बाद रांची जिला सुरक्षा कर्मचारी संघ के बैनर तले धरना-प्रदर्शन, आवेदन औऱ आश्वासन के बीच इनकी नौकरी सिमट कर रह गयी है. लेकिन नतीजा सिफर है.
हालांकि, 2019 के विधानसभा चुनाव के पूर्व महागठबंधन के सीएम उम्मीदवार घोषित हेमंत सोरेन ने कहा था कि हमारी सरकार आएगी तो सभी लोगों को काम पर रखा जाएगा, लेकिन सरकार बनने के बाद शायद सीएम अपनी बातों को भूल गए हैं. वहीं तत्कालीन स्वास्थ मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी से लेकर वर्तमान स्वास्थ मंत्री बन्ना गुप्ता ने भी इन्हें सिर्फ आश्वासन ही दिया है.
लोगों से बातचीत
-कांके रोड भीट्ठा के रहने वाले कृष्णा तिर्की ने कहा कि सदर अस्पताल में ड्यूटी करता था. अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभाता भी था, लेकिन हमें क्या पता था की जिम्मेदारी निभाने वाले लोगों का हौसला बढ़ाने की जगह काम से ही हटा दिया जाएगा. तीन सालों से कुछ काम नहीं कर रहा हूं. गरीब हूं, इसलिए हमारी परवाह किसी को नहीं है.
-ओरमंझी के रहने वाले सोहन महतो ने कहा कि ओरमंझी सीएचसी में हमारी ड्यूटी थी. अचानक सरकार का फैसला आता है कि अब हमें काम पर नहीं रखा जाएगा. यह सुनते ही परिवार की चिंता सताने लगी और आज तक उसी चिंता में दिन गुजर रहा है.
– रांची जिला सुरक्षा कर्मचारी संघ के अध्यक्ष मोबिन अंसारी ने कहा कि 155 सुरक्षाकर्मियों की लड़ाई पिछले तीन सालों से लड़ रहा हूं. तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी मिल चुका हूं, लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकल पाया है. एक बार फिर उम्मीदों के साथ आया हूं कि शायद सवा तीन करोड़ लोगों को अपना परिवार कहने वाले सीएम को हमारे परिवार पर तरस आ जाये.
– बुढ़मू के रहने वाले दिनेश कुमार साहू ने कहा कि बुढ़मू सीएचसी में ड्यूटी करता था. 6400 रुपये से घर का गुजारा किसी तरह चल जाता था, लेकिन तीन साल से खेती-बाड़ी ही परिवार का सहारा बन गया है. कोरोना काल में बीमारी के साथ आर्थिक तंगी ने कमर ऐसी तोड़ दी कि अब कुछ कहने के लिए बचा ही नहीं.
– रांची सदर अस्पताल में काम करने वाली गायत्री देवी ने कहा कि पैसे की तंगी के कारण बच्चों की पढ़ाई छूट गयी है. घर पर सास-ससुर हैं. पति प्रइवेट नैकरी करते हैं. किसी तरह घर का गुजारा हो रहा है. दोनों मिलकर कमाते थे तो परिवार अच्छे से चल जाता था.
– बुंडू के रहने वाले भीमा सिंह मुंडा ने कहा कि अनुमंडल अस्पताल में ड्यूटी करता था. हम सभी को काम से हटा दिया गया है. उन्होंने कहा कि हम सभी लोग सरकारी नौकरी नहीं मांग रहे हैं. हमें हमारी प्रइवेट नैकरी ही मिल जाये. हमलोग अपना गुजारा कर लेंगे.
– रातु के रहने वाले मसी प्रकाश तिर्की ने कहा कि रातु सीएचसी में हमारी नौकरी थी. आज काम पर नहीं हूं. किसी तरह घर चल रहा है. पैसे की तंगी के कारण कहीं आना-जाना भी बंद कर दिया हूं, ताकि फिजूलखर्ची न हो.
– बेड़े सीएचसी में सुरक्षाकर्मी का काम करने वाले सुरेंद्र लोहरा ने कहा कि अधिकारियों और मंत्रियों का दरवाजा खटखटा कर थक गया हूं. लेकिन हिम्म्त नहीं हारा हूं. गरीब हूं, लेकिन लड़ाई जारी रखूंगा, जब तक नौकरी नहीं मिल जाती है.