Ranchi: आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि वही हुआ, जो होना था. पहले नियोजन नीति फूस हुई और अब 1932 खतियान वाली स्थानीयता नीति लटक गई. हमने पहले ही कहा था कि 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति कभी लागू नहीं हो सकती है. इसलिए वैकल्पिक व्यवस्था के तहत प्रखंडवार नियोजन नीति बने. जिसकी लिखित दस्तावेज हमने 23 अगस्त 2013 को हेमंत सोरेन को सुपुर्द किया था. जब वे प्रथम बार सीएम बने थे.परंतु उनका ईमानदार प्रयास कभी नहीं होता है. तब पांच बार पिता- पुत्र के सीएम बनने से भी झारखंड के आदिवासी और मूलवासी को कोई फायदा अब तक नहीं हो सका है. आगे भी असंभव है. अब ख़ातियानी जोहार यात्रा का अंजाम क्या होगा ये देखना होगा. सोरेन खानदान के पतन के बगैर झारखंड के आदिवासी – मूलवासी का उत्थान असंभव है.
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चूंकि झारखंड हित में स्थानीयता नीति, आरक्षण नीति, नियोजन नीति, विस्थापन, पलायन के स्थान पर पुनर्वास नीति, झारखंडी भाषा नीति, शिक्षा- स्वास्थ्य नीति, विकास नीति आदि के निर्धारण के लिए सोरेन खानदान के पास सक्षमता, ईमानदारी और निष्ठा की कमी है. इसीलिए अब तक कोई भी नीति निर्धारण सफल नहीं हो सका है. सोरेन खानदान ने झारखंडी जन को अबतक बहुत निराश किया है, और अब आगे इन पर भरोसा करना अपने आपको धोखा देने जैसा है. उन्होंने कहा कि सोरेन खानदान हटाओ, झारखंड बचाओ के नारे के साथ आदिवासी सेंगेल अभियान झारखंड बचाने के लिए बाध्य है. न मरांग बुरू बचेगा, ना सरना धर्म कोड मिलेगा. ना ही आदिवासी-मूलवासी बचेंगे.
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