Ranchi : राजधानी स्थित हरमू नदी सौंदर्यीकरण योजना के काम को लेकर काफी राजनीति हुई है. हो भी क्यों न, आखिर एक नाले को पुनः नदी में तब्दील करने के नाम पर पूर्ववर्ती रघुवर सरकार के समय करीब 84 करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं. करोड़ों खर्च करने के बाद नदी जीर्णोद्धार और संरक्षण परियोजना से शहर के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के अध्ययन के लिए हेमंत सरकार अब 22 लाख (21.78 लाख) रुपये खर्च करेगी. इसके लिए सरकार नागपुर में स्थित राष्ट्रीय संस्थान राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिक अनुसंधान संस्थान (नीरी) की मदद लेगी.
इसे भी पढ़ें : कोडरमा: इनोवेटिव झारखंड योजना के तहत स्मार्ट क्लास शुरू, डिजिटल डिवाइस से पढ़ाई
विधानसभा चुनाव के दौरान बना था प्रमुख मुद्दा
बता दें कि हरमू नदी सौंदर्यीकरण योजना विधानसभा चुनाव के पहले राजनीतिक का प्रमुख मुद्दा बना था. तत्कालीन विपक्षी पार्टियां (जेएमएम व कांग्रेस) के नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर सरकार की इस ड्रीम योजना पर कई सवाल खड़े किये थे. वहीं उस समय की सत्तारूढ़ बीजेपी ने इसे अपनी एक प्रमुख उपलब्धि बताई थी.
अध्ययन में 22 लाख खर्च करने के प्रस्ताव को मिली स्वीकृति
हरमू नदी सौंदर्यीकरण योजना का काम नगर विकास विभाग की एजेंसी जुडको ने की थी. अब इस काम से पारिस्थिति और पर्यावरण पर पड़े प्रभाव का काम हेमंत सरकार कराएगी. गुरुवार को हुई कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव पर स्वीकृति दी गयी है. प्रस्ताव में कहा गया है कि रांची में स्थित हरमू नदी पर जुडको द्वारा पूर्ण कराया गया जीर्णोद्धार और संरक्षण परियोजना की रांची शहर की पर्यावरण अवस्था में हो रहे तकनीकी एवं पारिस्थितिक प्रभाव के अध्ययन का काम नीरी, (CSIR-NEERI) करेगा. इस पर रिपोर्ट तैयार करने और इस निमित्त परामर्शी शुल्क के रूप में कुल राशि 21,78,280 रुपये का भुगतान किया जाएगा.
lagatar.in वेब पोर्टल रिपोर्टर ने नदी के आसपास रहने वाले लोगों से पर्यावरण की वास्तविक स्थिति की जानकारी ली.
हरमू नदी वास्तव में मर गई है : रमेश साव
हरमू नदी के पास रहने वाले रमेश साव ने बताया कि हरमू नदी आज वास्तव में मर गयी है. आसपास सहित दूर के लोग भी अपने मरे पशु को रात को नदी में फेंक जाते हैं. बदबू से जीना बेहाल हो गया है.
बदबू से जीना मुहाल हो गया है : नरेंद्र सोनी
नरेंद्र प्रसाद सोनी ने बताया कि खुले हरमू नाले (हरमू नदी) से आती बदबू से आसपास का वातावरण प्रदूषित तो हो ही रहा है, हमारा तो जीना मुहाल हो गया है.
सौंदर्यीकरण में लगे अधिकतर पेड़-पौधे सूख गए हैं
नरेंद्र सोनी के मुताबिक ऊपर से सौंदर्यीकरण के नाम पर लगाए अधिकतर पेड़-पौधे सूख गये है. जब पेड़ ही नहीं रहेगा, तो पर्यावरण क्या शुद्ध होगा.
4-5 लाख में तो बिरसा कृषि विवि या बीआईटी कर लेता अध्ययन: नीतिश
पर्यावरणविद् नीतिश प्रियदर्शी ने भी सरकार के इस कदम पर आपत्ति जतायी है. उन्होंने कहा है कि हर कोई जानता है कि खुले हरमू नदी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ रहा है. नदी में शुद्ध पानी नहीं घर का गंदा पानी बहता है. चारों तरफ कूड़ा पड़ा हुआ है. इससे भूमिगत जल भी दुषित हो रहा है. ऊपर से यह पानी बहकर स्वर्णरेखा में मिलकर नदी को प्रभावित कर रहा है. यानी कुल मिलाकर हरमू नदी की स्थिति से पर्यावरण पर दुष्प्रभाव ही पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि 22 लाख रुपये देने की क्या जरूरत है. 4 से 5 लाख रुपये में तो बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची विवि या बीआईटी बेसरा ही यह अध्ययन कर लेता.
इसे भी पढ़ें : रांची: गोंदा में पति-पत्नी की धारदार हथियार से मारकर हत्या, छानबीन जारी